मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

हठ, सुधार और केजरीवाल

                                                दिल्ली के लोगों ने जिस आशा और विश्वास के साथ केजरीवाल की पार्टी को परिवर्तन के लिए बड़े पैमाने पर वोट दिया उसका आज जो हश्र हो रहा है उसे देखकर उसके वोटर अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि जिन सामान्य उम्मीदों पर सरकार अपने कठोर परन्तु कानून सम्मत नियमों के माध्यम से खरी उतर सकती थी उसने अपनी ज़िद में वह अवसर गँवा दिया है और अब केजरीवाल राजनीति की उस दौड़ में शामिल अन्य मुख्यमंत्रियों जैसे ही दिखायी देने लगे हैं जो किसी भी तरह से कह तो कुछ और रहे हैं पर कर कुछ और रहे हैं ? यह भी सही है कि जिन जन आकाँक्षाओं के बूते उन्हें इतना समर्थन मिला था आज वे उसको संभाल कर रख पाने में पूरी तरह से असफल नज़र आ रहे हैं क्योंकि उन्हें दिल्ली में अपनी सफलता कुछ ऐसी लग रही है जैसे अगले आम चुनाव में वो सौ सीटों का आंकड़ा पार करने जा रहे हैं और यही ग़लतफ़हमी उनके दिल्ली में प्रदर्शन को हर स्तर पर रोकने का काम भी कर रही है ?
                                   दिल्ली की शीला सरकार ने निसंदेह दिल्ली को अच्छा शहर बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया था पर साथ ही जनता की नब्ज़ को सही तरीके से न समझ पाने और भ्रष्टाचार के आरोपों पर चुप रहने के कारण उन्हें भी राजनीति से निर्वासित ही होना पड़ा है तो यह बात आप को अच्छे से समझनी भी चाहिए थी कि जनता उनसे किसी बहुत बड़े परिवर्तन की आस लगाकर नहीं बैठी हुई है उसे सिर्फ उन क्षेत्रों में सरकार की उपस्थिति मात्र चाहिए थी जहाँ पर केवल अधिकारी ही दिखायी देते रहते हैं और किसी भी अन्य तरह से पूरी व्यवस्था में आम लोगों की भागीदारी नहीं दिखायी देती है ? दिल्ली के लोगों को सामान्य प्रशासन में परिवर्तन के नाम पर केवल इतना ही चाहिए था कि जन सुनवाई सही तरीके से हो पाये और अनावश्यक रूप से जनता को नेताओं के घरों के चक्कर न काटने पड़ें पर इस सब राजनैतिक आपा-धापी और खुद को शहीद करवाकर दिल्ली को फिर से चुनावों की तरफ बढ़ाने के केजरीवाल के कदम को दिल्ली का समर्थन किस हद तक मिल पायेगा यह तो समय ही बताएगा.
                                   पुलिस के नियंत्रण और जन लोकपाल के मसले पर जिस तरह से केजरीवाल विद्रोह करने पर आमादा हैं उसका कोई मतलब नहीं बनता है क्योंकि आज वे खुद सरकार हैं कोई प्रदर्शनकारी नहीं तो उन्हें सरकार को सनसनी से दूर कर सामान्य तरीक से चलाने के प्रयास करने चाहिए जिससे दिल्ली के लोगों को वास्तविक परिवर्तन का आभास हो सके. जब दिल्ली की सरकार को इस तरह से पुलिस और महत्वपूर्ण कानून बनाने से रोकने का प्रावधान किया गया था तो उसका महत्व आज समझ में आ रहा है क्योंकि पूरी स्वतंत्रता के साथ सरकार में आयी आप सरकार देश की राष्ट्रीय सरकार के लिए कितनी समस्या खडी कर सकती थी ? इस हिसाब से देखा जाये तो दिल्ली की पुलिस व्यवस्था को सँभालने के लिए गृह मंत्रालय में एक राज्य मंत्री की नियुक्ति होनी चाहिए जो दिल्ली सरकार की आवश्यकताओं के अनुसार समन्वय स्थापित कर सके और जनलोकपाल पर केंद्रीय लोकपाल की तर्ज़ पर कानून सम्मत प्रयास किये जाने चाहिए क्योंकि किसी भी कानून से कुछ भी नहीं होता है जब तक उसका अनुपालन कराने वाले सही तरीके से काम न कर सकें ? दिल्ली सरकार अपने भ्रष्टाचार विवरण संगठन को मज़बूत कर दिल्ली में इसे कम करने का प्रयास तो अपने दम पर कर ही सकती थी पर उसे छोड़कर आज वह अनावश्यक रूप से अपनी शक्ति को गंवाकर अनावश्यक संघर्ष की तरफ जा रही है.
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