मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

केजरीवाल, राजनीति और उद्योग

                                           जिस तरह से दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल बिना कुछ सोचे समझे ही हर मामले में अपनी राय देने और आरोप लगाने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि वे वास्तव में सरकार चलाने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि जब किसी भी नए दल को इस तरह से अप्रत्याशित रूप से सरकार चलाने का अवसर मिलता है तो वह खुद कुछ समय तक सरकार चलाने की बारीकियों को समझना चाहता है और उसके बाद ही अन्य तरीकों से अपनी सुविधा और मंशा के अनुसार सरकार चलाने की कोशिश भी करता है. असोम गण परिषद् इसका बड़ा उदाहरण है क्योंकि वह भी जिस तरह से राजनैतिक शून्यता में उपजा हुआ दल था और उसके पास भी युवा चेहरे भरपूर मात्रा में थे पर क्या वह अपने को राजनीति के सही तौर तरीकों में ढाल पाया और आज एक ज़माने में बहुत मज़बूत दिख रहा उसका नेतृत्व किस हाल में है यह भी विचार करने की ज़रुरत है. सड़कों पर आंदोलन करने और सत्ता के गलियारों में बैठकर जनहित के निर्णय लेना बहुत ही अलग अलग बातें हैं पर अति उत्साह से लबरेज़ आप और केजरीवाल अभी भी वास्तविकता को समझ नहीं पा रहे हैं ?
                                          राजनेताओं पर हमला करते करते उन्होंने जिस तरह से अचानक ही अपने हमले को रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की तरफ मोड़ दिया है उससे उनको केवल सनसनी के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है क्योंकि वे पूरे देश में केवल खुद को ही पाक साफ़ घोषित कर हर दूसरे को बेईमान बताने में लगे हुए हैं जबकि वास्तविकता यह है कि वीरप्पा मोइली जैसे नेता पर आरोप लगाना बिलकुल गलत है क्योंकि उनका सार्वजनिक जीवन पूरी तरह से निरापद ही रहा है. पेट्रोलियम क्षेत्र में सुधारों को लागू करवाने और अन्य मुद्दों को उन्होंने जितनी तेज़ी से निपटाया है उससे तेल क्षेत्र को नयी दिशा भी मिली है पर केजरीवाल केवल वाम दलों के तर्कों से प्रभावित होकर ही इतने बड़े आरोप लगाने में लगे हुए हैं ? इस बारे में किरण बेदी जो खुद भी भ्रष्टाचार पर प्रहार करने से नहीं चूकती हैं उनका भी यही कहना है कि केजरीवाल को गवर्नेंस नहीं आती है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. अभी केजरीवाल की सरकार दिल्ली की समस्याओं से निपट नहीं पा रही है तो वह जनता के ध्यान अन्य मुद्दों की तरफ भटकाने की कोशिश करने में लगी हुई है.
                                         देश के बड़े उद्योगपतियों टाटा और अम्बानी समूह पर जिस तरह से केजरीवाल सरकार ने पहले बिजली को लेकर आरोप लगाये और उसके बाद अब एशिया के सबसे बड़े तेल शोधक संयंत्र को संचालित करने वाले रिलायंस के तेल क्षेत्र पर सवाल लगाये हैं उसका असर देश के आर्थिक परिदृश्य पर पड़ना अवश्यम्भावी ही है क्योंकि कोई भी उद्योगपति इस तरह के माहौल में काम नहीं कर सकता है जहाँ पर उनके हर फैसले को कटघरे में खड़ा किया जाने लगे. बांग्लादेश को गैस निर्यात करने की बात और गैस की कीमत निर्धारित करने में अंतर होने पर केजरीवाल की जानकारी केवल सनसनी फ़ैलाने तक ही है दुनिया में इसी गैस की कीमत भारत के वर्त्तमान मूल्य से कई गुना अधिक है और जापान में पांच गुनी है तो सम्भव है कि किसी दिन केजरीवाल जापान पर भी आरोप लगा दें कि उसके कारण ही दुनिया भर में गैस मंहगी बिक रही है क्योंकि वो इतने ऊंचे दामों पर इसे खरीद रहा है ? पेट्रोलियम क्षेत्र में अनुसंधान और उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होती है और उसकी कीमत भी उत्पादों में शामिल ही होती है अब इतने बड़े अधिकारी के पद से राजनीति में आने वाले केजरीवाल को भी यदि यह समझ नहीं है तो देश के लिए कम शिक्षित नेता भी आखिर क्या बुरे हैं ?
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