मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 12 मार्च 2014

आंतरिक सुरक्षा और नक्सल आंदोलन

                                    छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से माओवादियों ने अपना खूनी खेल खेला है और इस बार उन्होंने चुनावों से पहले इस तरह के हमले से यह भी साबित करने की कोशिश भी की है कि नेता भले ही कम हिंसक घटनाओं से राज्य को सुरक्षित और नक्सलियों को कमज़ोर मानते हों पर वास्तव में ऐसा बिलकुल भी नहीं है वे आज भी जहाँ चाहें वहाँ हमला करके अपनी उपस्थिति दिखाने भर की शक्ति रखते हैं. इस बार जिस तरह फिर से नक्सलियों ने बहुत ही क्रूरता के साथ अपने घिनौने काम को अंजाम दिया है उससे यही लगता है कि आज भी कुछ ऐसा है जो सरकार और नक्सलियों के बीच में सेतु का काम करता है और उन्हें सुरक्षा बलों के हर कदम की जानकारी मिलती रहती है ? हर बार की तरह इस बार भी यह देखने में आ रहा है कि तीन दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुरक्षा सम्बन्धी एडवाइसरी जारी की थी जिसमें इस तरह के किसी सम्भावित हमले के बारे में जानकारी भी दी गयी थी पर आखिर ऐसा क्या होता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस तरह के इनपुट्स की सदैव ही इस तरह से अनदेखी की जाती है और इतने बड़े अनावश्यक नुक्सान को झेल जाता है ?
                                  चुनाव आचार संहिता लागू होने से जहाँ राज्य सरकार इस बारे में कुछ भी बोलना नहीं चाहेगी वहीं आम लोगों की सुरक्षा की वाजिब चिंताएं एक बार फिर सामने आकर हमारे सुरक्षित होने के दम्भ का मान मर्दन करती रहेंगी. इतने प्रयासों के बाद भी जिस तरह से माओवादियों ने उत्तर के बिहार से सुदूर दक्षिण के आंध्र प्रदेश तक पूरा लाल गलियारा बनाने में सफलता पायी है उसके पीछे के कारणों के बारे में आखिर देश क्यों नहीं सोचना चाहता है ? ऐसा भी नहीं है कि सरकारों को कुछ पता ही नहीं होता है फिर भी इस मसले पर जिस तरह से सरकारों को सोचना चाहिए उस पर कुछ भी ठोस नहीं हो पाता है तो उससे समय-समय पर कई बार नक्सली तो कई बार हमारे सुरक्षा बल इसी तरह से घात लगाकर किये गए हमलों का शिकार होते रहते हैं. इस वैचारिक रूप से हिंसक आंदोलन से निपटने के लिए सबसे पहले इन क्षेत्रों तक विकास की किरणें पहुँचाने की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक इन आदिवासी क्षेत्रों में विकास और सुविधाएँ नहीं होंगीं तब तक नक्सलियों के लिए काम करना आसान ही रहने वाला है.
                                 सरकार को बल प्रयोग के साथ किसी न किसी स्तर पर अब विकास के सही आयामों को इन गांवों तक पहुँचाने के ठोस प्रयास करने ही होंगें भले ही इसके लिए एक एक ब्लाक को क्रम वार प्राथमिकता में क्यों न लेना पड़े क्योंकि जब तक विकास के पूरे मानदंडों को आदिवासियों तक नहीं पहुँचाया जायेगा उनके मन में उपेक्षा के भाव पनपते ही रहेंगें जिसका माओवादी अपने अनुसार लाभ उठाने का पूरा प्रयास भी करेंगे. राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने ही होंगें और हर राज्य में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पूर्ण सुरक्षा के बीच आम लोगों तक सामान्य सुविधाएँ अविलम्ब पहुंचनी होंगी क्योंकि तभी इन नक्सलियों के दुष्प्रचार से निपटने में सहायता मिल पायेगी. साथ ही एक बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि पूरी सुरक्षा के बीच लोगों के बेहतर प्रशसन के बारे में समझाना भी होगा जिससे वे सरकार को केवल भारी सुरक्षा बंदोबस्त के समय केवल चुनाव का हिस्सा ही न समझने लगें ? आज भी इन नक्सल प्रभावित सभी राज्यों के दुर्गम क्षेत्रों में आने जाने के लिए उचित मार्ग भी नहीं है तो ऐसे में सबसे पहले सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए इन स्थानों तक सडकों का जाल बिछाया जाये जिससे कम से कम सरकार और सुरक्षा बलों की आसान पहुँच तो हो सके और विकास के बारे में अगले क़दमों पर विचार शुरू किया जा सके.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें