मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 20 मार्च 2014

यूपी-संवेदनशीलता और सोशल मीडिया

                                           एक बार फिर से चुनाव के माहौल में समाज विरोधी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया के दुरूपयोग करने से यूपी पुलिस के लिए बहुत बड़ी समस्या सामने आ रही है क्योंकि कवाल कांड के बाद से ही जिस तरह से पश्चिमी यूपी में अभी तक माहौल शांत नहीं हो पाया है उसके बीच किसी भी तरह के नफरत फ़ैलाने के काम से उभरने वाले उन्माद को रोकने के लिए अब पुलिस के पास क्या रास्ते बचते हैं इस पर गहन चर्चा चल रही है तथा यूपी पुलिस ने केंद्रीय एजेंसियों से भी इस मामले को देखते हुए मदद करने की गुहार लगायी है. चुनावी माहौल में जहाँ विकास और शिक्षा के प्रसार की तमाम अच्छी बातें होने के बाद भी जिस तरह से समाज के दुश्मनों को कुछ भी करने का मौका मिल जाता है यह अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती ही है क्योंकि जब तक नागरिक खुद ही ज़िम्मेदारी से अपना कर्त्तव्य नहीं निभाएंगें तब तक केवल पुलिस या प्रशासन सारा कुछ कैसे सम्भाल सकते हैं ? उन्मादियों ने एक बार फिर से चुनाव में लाभ उठाने के लिए जिस तरह से एक वीडिओ को व्हाट्स एप पर सर्कुलेट किया है उससे उनकी मंशा पता ही चल जाती है और कई बार लोग इसे आगे भेजते रहते हैं जिससे उनका काम आसान भी हो जाता है.
                                            आज सूचना क्रांति के बाद जिस तरह से हर व्यक्ति के हाथ तक यह सेवा पहुँच चुकी है तो भारतीय परिस्थिति में इस पर कड़ा नियंत्रण भी आवश्यक ही है क्योंकि जब तक हम अपने कर्तव्यों को जाने बिना ही केवल अधिकारों की ही बात करने से नहीं चूकेंगे तब तक समाज में सही दिशा में प्रगति नहीं हो सकती है. समाज में हम जिस तरह की सामग्री का विरोध करते हैं उसे ही अपने निजी मित्रों के साथ साझा करने से नहीं चूकते हैं क्योंकि उसे हम अपने मित्रों के साथ साझा करना ज़रूरी समझते हैं भले ही वह कितना भी विवादित या आपत्तिजनक क्यों न हो ? इस तरह की दोहरी मानसिकता के साथ जीने वाले समाज में यदि भाई चारा और सद्भाव जैसे दिखावे किये जा रहे हैं तो उस पर किसी को भी संदेह नहीं होता है क्या जागरूक नागरिक के रूप में हमारी यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि हम अपने समाज को बचाये रखने के लिए सरकार और पुलिस का साथ देने की दिशा में सोचें जिससे हमारे समाज में कोई नफरत का सौदागर किसी भी तरह से अपनी दुकान न लगाने पाये ?
                                             आज के कानून में जिस तरह से ऐसी वीडिओ को भेजने या फॉरवर्ड करने के लिए एक जैसा अपराध ही निर्धारित किया गया है जबकि इसमें आज सुधार की आवश्यकता है क्योंकि पुलिस और साइबर विशेषज्ञों को इसे आगे भेजने वाले और शुरू करने वाले में अंतर करना ही होगा क्योंकि बहुत बार लोग केवल मज़े के लिए ही ऐसी सामग्री को आगे बढ़ाते रहते हैं. आज पुलिस को चिंतित होने के स्थान पर टीवी, रेडियो, प्रिंट मीडिया के माध्यम से लोगों को यह बताना चाहिए कि वे अनजाने में इसे आगे भेजकर कितने बड़े अपराध के भागीदार बन रहे हैं क्योंकि आम लोग यह जानते ही नहीं हैं कि भारत में भी काफी कड़े साइबर कानून अस्तित्व में हैं और इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है. पुलिस की चिंता केवल इसे रोकने भर की है जबकि उसे लोगों को इस बारे में दूसरी तरह से काम करना चाहिए और लोगों को यह बताना चाहिए कि कोई भी उन्माद बढ़ाने की सामग्री भेजने वाले कानून के दायरे में आ सकते हैं और उनको इससे बचने के क्या उपाय करने चाहिए ? जो भी व्यक्ति ऐसी सामग्री को पाये यदि वह पुलिस को सूचित करे या फिर पुलिस अपना कोई ऐसा नम्बर जारी करे जिस पर यह फॉरवर्ड किया जा सके तो पुलिस को भी यह पता चल जायेगा कि क्या चल रहा है साथ ही सूचना देने वाले को किसी भी तरह कि कानूनी कार्यवाही से भी मुक्त किया जाना चाहिए.
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