मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 27 मार्च 2014

मुज़फ्फरनगर दंगे और कोर्ट

                                                            कवाल गाँव में हुई छेड़छाड़ की घटना में यूपी की सपा सरकार के प्रभावशाली नेताओं के चलते किस तरह से पश्चिमी यूपी हिंसा की चपेट में आ गया था इस बात के लेकर सपा और अखिलेश सरकार आज तक कोई ठोस सफाई नहीं दे पाये हैं इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी जिस तरह से दंगों को रोकने में नाकाम रहने पर यूपी सरकार को ज़िम्मेदार बताया है उससे चुनावी मौसम में सपा के लिए और भी नयी तरह की मुश्किलें सामने आ सकती हैं. पहले से ही दंगों से निपटने में नाकाम रहने पर सपा अपना राजनैतिक वजूद काफी हद तक गवां चुकी है और इस तरह की टिप्पणियों के बाद उसके लिए अपने को सही साबित करने में और भी अधिक समस्या आने वाली है. आशा के अनूपप इसका चुनावी लाभ उठाने के लिए कांगेस, बसपा और भाजपा ने बिना देरी किये ही अपने वक्तव्य जारी कर दिए हैं जिनमें सरकार के बने रहने के नैतिक आधार पर ही प्रश्न लगाये गए हैं. दंगों से पूरे समाज का नुक्सान ही सदैव होता है पर नेता अपने तात्कालिक लाभ के लिए इससे भी लाभ उठाने से नहीं चूकते हैं.
                                                            सुप्रीम कोर्ट भले ही कहता या न कहता पर जिस तरह से सपा के स्थानीय नेताओं ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एक पक्षीय कार्यवाही की उसके बाद से यह तो तय ही था कि उसने अपनी राजनीति को बचाने के लिए पूरे क्षेत्र को एक बड़े संकट की तरफ धकेल दिया है. क्या प्रदेश में माहौल इतना खराब है कि कोसी में पानी पीने पिलाने को लेकर दंगा होने की बात को स्वीकार किया जा सकता है ? यह तो सभी जानते हैं कि प्रदेश में सपा नेताओं के पुलिस और प्रशासन पर हावी होने के कारण ही अधिकारी निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर पाते हैं और जब भी कोई बड़ी समस्या इन नेताओं द्वारा खड़ी की जाती है तो उसके बाद में अधिकारियों के स्थानांतरण के साथ ही समस्या को समाप्त मान लिया जाता है जबकि नेताओं के स्थानीय होने के काऱण समस्या कभी भी ख़त्म नहीं होती है तथा सत्ताधारी दल के नेताओं पर हाथ डालने में पुलिस के हाथ पैर वैसे ही फूले रहते हैं. इन नेताओं के द्वारा जिस तरह से काम किया जाता है वह किसी से भी छिपा नहीं है और सपा सरकार इनसे निपटने में सदैव ही विफल रहा करती है.
                                                        इस मामले में सबसे अधिक आवश्यकता केवल इस बात की ही है कि नेताओं को कानून के दायरे में लाने पर सोचा जाये और किसी भी विद्वेष भड़काने वाली कार्यवाही में चाहे किसी भी दल, जाति या धर्म के नेता हों उनके विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्यवाही करने के लिए पुलिस और प्रशासन को मुक्त कर दिया जाये तो पूरे प्रदेश क्या पूरे देश में कहीं से भी कोई ऐसी घटना नहीं होने पायेगी. देश को नेताओं से पहले रखने के कोशिशें अब हम सभी को करनी ही होंगी तभी देश में सही बदलाव लाये जा सकते हैं. अभी तक अधिकारी जिस तरह से राज्य सरकारों के दबाव में रहा करते हैं उस परिस्थिति में बड़े अधिकारियों के तबादले के लिए सरकार पर नियंत्रण लगाने के नए केंद्रीय कानून से जहाँ व्यवस्था में सुधार आएगा वहीं दूसरी तरफ़ इन अधिकारियों के मनोबल पर भी अच्छा असर पड़ेगा. देश को बेहतर अधिकारी चाहिए पर जिस तरह से अभी भी हर बात में नेतागिरी हावी रहा करती है तो उसमें अब इस तरह के सुधार हो पाने में लम्बा समय लगने वाला है. फिलहाल तो ढीले और एक तरफ़ शासन के जो भी नुक्सान हो सकते हैं यूपी उनसे ही दो चार हो रहा है.      
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