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सोमवार, 31 मार्च 2014

चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और आयोग

                                        चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार के कानून मंत्रालय के उस प्रस्ताव पर अपना जवाब भेजते हुए कहा है कि वह संविधान में उसे मिले अधिकार का उपयोग कर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगाने का काम नहीं करने जा रहा है जिससे इस बार भी इन सर्वेक्षणों पर किसी भी तरह की रोक लग पाने की सम्भावना क्षीण ही हो गयी है. कानून मंत्रालय ने इस मसले पर आयोग से अनुच्छेद ३२४ के अंतर्गत मिले अधिकारों का उपयोग कर इन सर्वेक्षणों पर रोक लगाने की बात कही गयी थी पर इस मसले पर जिस तरह से आयोग का जवाब है उससे यही पता चलता है कि भारतीय चुनाव आयोग कितनी परिपक्वता के साथ काम करता है और वह विधायिका की किसी भी शक्ति का अतिक्रमण भी नहीं करना चाहता है पर आज भी उसे विधायिका से वह सब नहीं मिल पा रहा है जिसके माध्यम से आयोग और भी पारदर्शी तरीके से निष्पक्ष चुनाव करवा पाने में सफल हो सकता है. आयोग ने स्पष्ट रूप से सरकार को यह कह दिया है कि यदि वो इन पर रोक लगाना चाहती है तो इसके लिए कानून में संशोधन किया जाना चाहिए.
                                      लम्बे समय से यह विवाद का विषय रहा ही कि ये सर्वेक्षण किस तरह से किये जाते हैं और अधिकांश बार ये केवल कल्पना ही साबित होते हैं और लोगों को भ्रमित करने का काम भी करते हैं. इसी क्रम में चुनाव शुरू हो जाने के बाद किये जाने वाले एग्जिट पोल पर पहले से ही बैन लग चुका है जबकि पहले हर चरण की वोटिंग होने के बाद उनके रुझानों को दिखने से वोटर्स को प्रभावित किये जाने का काम देश में बहुत दिनों तक चलता रहा है. आज जब उस पर रोक लग चुकी है तो कोई भी उसका विरोध नहीं कर रहा है और उससे जनता को अपना मन बनाने में भी मदद मिल रही है. आयोग ने इसी तर्ज़ पर कानून में संशोधन की बात सरकार से की है कि एग्जिट पोल्स की तरह चुनाव शुरू हो जाने के बाद किसी भी तरह के सर्वेक्षणों को करने पर ही रोक लगा दी जानी चाहिए. आयोग चाहे तो इस काम को कर सकता है पर वह यही चाहता है कि यह काम नेताओं की स्वीकृति से ही हो जिससे उसे किसी तरह के कानूनी पचड़े में न घसीटा जा सके.
                                     आयोग का यह कहना बिलकुल सही है कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने पर अंतिम चरण के मतदान के होने तक किसी भी तरह के सर्वेक्षण पर पूरी रोक लगायी जानी चाहिए पर यह काम वह नहीं करेगा क्योंकि वह एक संवैधानिक संस्था है और उसका काम कानून बनाना या उसका परिस्थितियों के अनुसार दुरूपयोग करना नहीं है. देश के राजनैतिक दलों के नेता जिस तरह से कानून का लाभ उठाकर अपने को आगे बढ़ाने का काम किया करते हैं उस परिस्थिति में उनके लिए कुछ भी करना शेष नहीं रह जाता है साथ ही देश भर में उनकी साख भी घटती जाती है. कानून का अपने हितों में दुरूपयोग करने में हर दल का नेता माहिर है तो वह यही चाहता है कि उसे कोई कानून न बनाना पड़े और चुनाव आयोग ही अपने दम पर सर्वेक्षणों को रोकने के आदेश जारी कर दे ? एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने पर किसी भी तरह से किसी भी सर्वेक्षण को रोकने का काम तो अब होना ही चाहिए क्योंकि जिस तरह से अब सर्वेक्षणों में भी धांधली की बाते सामने आयी हैं तो यह भी पेड़ न्यूज़ की तरह का मसला बनता जा रहा है. 
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