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रविवार, 30 मार्च 2014

इमरान मसूद और आचार संहिता

                                   देश के नेताओं में जिस तरह से किसी भी बात पर कुछ भी कह देने की आदत पनपती जा रही है उसका ताज़ा उदाहरण सहारनपुर से कॉंग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद के एक बयान के रूप में सामने आया है. इस बयान में वे भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को ललकारते हुए जो कुछ भी कह रहे हैं सभ्य समाज में उसका कोई मतलब नहीं बनता है पर जिस तरह से चुनावी माहौल में यह सामने आया है तो उसकी छानबीन भी शुरू की जा चुकी है और जेल भेजे जा चुके मसूद का कहना है कि यह पुराना बयान है और उन्हें इस तरह का नहीं देना चाहिए था. कॉंग्रेस ने भी जिस तरह से उनके इस बयान से पीछा छुड़ाया है उसके बाद यही लगता है कि इस मसले पर मसूद को अब अकेले ही जूझना होगा क्योंकि हर एक राजनैतिक दल अपने लाभ हानि का जुगाड़ देखने के ही अपने कदमों को आगे बढ़ाना चाहता है. मसूद ने जब यह बयान दिया था तब भी ऐसा नहीं है कि यूपी की सपा सरकार को इसका पता न चला हो पर तब वे सपा में थे और अब उससे बागी होकर कॉंग्रेस में जा चुके हैं तो उसके लिए उन पर तुरंत कड़ी कार्यवाही करने का मौका भी उपलब्ध हो गया है.
                                    ठीक इस तरह से सपा के एक प्रत्याशी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में एक बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है पर सपा से नाता होने के कारण अब उस पर अखिलेश सरकार केवल चुनाव आयोग के आदेशों की प्रतीक्षा कर रही है जबकि वे बयान इतने घटिया और बेहूदे हैं कि उन्हें दोहराने में भी शर्म का एहसास होता है. क्या सपा सरकार के लिए अपने नेताओं और दूसरे दलों के नेताओं के बीच कोई बड़ा अन्तर रखना आज की मजबूरी है या फिर वे किसी इतने अनजान है कि एक पुराने मामले में तो वे ही कानूनी कार्यवाही करते हैं पर दूसरे में वे चुनाव आयोग के आदेशों की प्रतीक्षा करने लगते हैं ? इस तरह की बढ़ते हुए विद्वेषपूर्ण बयानों के बीच आखिर अब क्या रास्ता हो सकता है कि जिसके माध्यम से देश में चुनावी माहौल को सही रखा जा सके और नेताओं को किसी भी परिस्थिति में इस तरह के बयानों से रोकने के लिए कड़े कदम भी उठाये जा सकें क्योंकि अब यह मामला केवल आचार संहिता का उल्लंघन ही नहीं है अल्कि उससे आगे भी जाता हुआ दिखने लगा है.
                                     इस बारे में चुनाव आयोग को स्पष्ट रूप से जनप्रतिनिधित्व कानून के बारे में आगे बढ़कर कड़े कदम उठाने ही होंगें और किसी भी नेता के खिलाफ चाहे कितने भी नए या पुराने मसले हों पर उनके सामने आने पर कोई बहानेबाज़ी नहीं चलनी चाहिए. इस तरह के व्यक्तिगत या सामाजिक विद्वेष बढ़ाने वाले किसी भी बयान देने वाले नेता को तुरंत ही चुनाव लड़ने से हमेशा के लिए रोकने का प्रबंध किया जाना चाहिए और उनको देश में मिलने वाली हर सुविधा से भी वंचित कर दिया जाना चाहिए यदि वे पहले किसी सदन के सदस्य के रूप में पेंशन आदि के हक़दार हैं तो उस पर भी तत्काल ही रोक लगा दी जानी चाहिए. इसके लिए अब आयोग को सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से पहल करवानी चाहिए क्योंकि अपने वोटों के लालच में कोई नेता अपने लिए इतने कड़े प्रावधानों को कभी भी मूर्त रूप लेते हुए नहीं देखना चाहेगा. देश में पहले से ही समस्याएं खड़ी करने वालों की कोई कमी नहीं है फिर भी लोग अपने लाभ के लिए कुछ भी बोलने से परहेज़ नहीं करते हैं जिसका सीधा असर पूरी व्यवस्था पर ही पड़ता दिखायी देता है और पिछले चुनावों में इसी तरह के बयान देकर वरुण गांधी बच निकले थे और कुछ समय बाद इमरान मसूद भी इससे बरी हो ही जायेंगें पर देश का कितना नुकसान होगा यह किसी को दिखायी नहीं दे रहा है.    
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