मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

मेरी सेना तेरी सेना

                                                                    नेताओं के पास अपनी करनी पर जब कुछ भी कहने के लिए नहीं बचता है तो वे जानबूझकर ऐसे बयान देना शुरू कर देते हैं जिससे सभी का ध्यान मूल मुद्दों से भटककर दूसरी तरफ हो जाये और मामला शांत होने पर लोग असली मुद्दे को भूल ही जाएँ. इसी क्रम में ताज़ा उदाहरण यूपी के चिर विवादित ताकतवर मंत्री आज़म खान का वह बयान है जिसमें उन्होंने कारगिल के युद्ध में मुसलमान सैनिकों के बारे में टिप्पणी की है कि कारगिल की लड़ाई मुसलमान सैनिकों ने ही लड़ी थी. वैसे तो आमतौर पर हर वो परिवार, गाँव, शहर या मोहल्ला और पूरा देश अपने उस महान सपूत पर गर्व करता है जो अपने कर्तव्य को निभाते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है पर जिस तरह से आज़म खान ने अपने बयान को केवल राजनैतिक लाभ के लिए ही दिया उससे कई तरह की बातें सामने आयी हैं और स्वयं चुनाव आयोग ने भी इस बात पर उन्हें नोटिस जारी कर दिया है. आज भी हमारे देश के नेता चाहे वे किसी भी दल के हों अपने छोटे लाभ के लिए कुछ भी कहने से नहीं चूकते हैं भले ही उसके लिए उन्हें कुछ भी कहा जाये.
                                                         भारतीय सेना का अपना एक बेहद गौरवशाली और समृद्ध इतिहास रहा है और उस गरिमा को जिस तरह से आज़म या अन्य किसी भी दल के नेता अपने स्वार्थ के लिए दुरूपयोग करना शुरू कर देते हैं उससे उनकी मासिकता का ही पता चलता है. खेमकरण के युद्ध में जिन वीर अब्दुल हमीद ने अमेरिकी वर्चस्व के स्तम्भ और पाकिस्तानी सेना के मुख्य हथियार पैटर्न टैंकों की धज्जियाँ अपने साहस के दम पर उड़ाई थीं क्या उन्होंने कभी यह सोचा होगा कि वे एक मुसलमान सैनिक हैं ? यह तो एक नाम भर है आज भी देश के अंदर और सीमाओं में सुरक्षा कार्यों में लगे हुए हर धर्म के सैनिक मोर्चा सम्भाले हुए हैं क्या वे कभी यह सोचते हैं कि वे पहले क्या हैं और उन्हें किस तरह से काम करना चाहिए ? अच्छा होता कि आज़म इस तरह के हक़ जताने के स्थान पर देश के युवाओं को यह सन्देश देते कि भारतीय सैनिकों में मुस्लिम भी सीमाओं पर कंधे से कन्धा मिलकर लड़ रहे हैं भले ही सामने दुश्मन के रूप में आतंकी हो या पाकिस्तानी सैनिक ?
                                                        आज़ादी से पहले अंग्रेज़ों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए जातियों पर आधारित रेजिमेंट बना रखी थीं और वे उनका अपने स्वार्थ के अनुसार दुरूपयोग भी किया करते थे. उस समय ऐसा भी नहीं था कि किसी जाति वाली रेजिमेंट में अन्य जातियों के लोगों को भर्ती नहीं किया जाता था पर मुख्य भूमिका में केवल जाति विशेष के लोग ही उसमें शामिल किये जाते थे. आज़ादी के बाद सरकार ने एक नीति के तहत जाति आधारित नयी रेजिमेंट बनाये जाने की नीति को ख़त्म कर दिया पर उसने सेना की सहमति से उन पुरानी रेजिमेंटों के नाम उसी तरह रहने दिए जो जातियों पर आधारित थे. आज कहने के लिए ही ये जाति विशेष के लिए हैं पर इनमें सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल किये जाते हैं. सम्भवतः किसी दिन कोई नेता देश में मुस्लिम, ब्राम्हण और दलित रेजिमेंट की मांग भी कर दे और केवल वोटों के लिए कुछ भी कहना शुरू कर दे ? आज भी भारतीय सेना में पारदर्शिता के साथ सभी नागरिकों को योग्यतानुसार हर भर्ती में शामिल होने की पूरी छूट देश का संविधान देता है इसलिए सेना के नाम पर किसी भी तरह के राजनैतिक दुरूपयोग को दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए.    
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