मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मोदी - मुसलमान और उर्दू

                                            देश में पता नहीं लोगों की सोच को क्या होता जा रहा है क्योंकि नरेंन्द्र मोदी की उर्दू वेबसाइट के फ़िल्म जगत कि मशहूर हस्ती सलीम खान द्वारा लोकार्पण किये जाने के बाद जिस तरह से बयानबाज़ी शुरू की गयी है उसका कोई मतलब नहीं बनता है. आज भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह उभर रहे देश के सबसे विवादास्पद नेता नरेंद्र मोदी यदि लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उर्दू भाषा का सहारा ले रहे हैं तो इसका सभी तरफ से स्वागत ही होना चाहिए क्योंकि इससे उनके उन विरोधियों को भी उनके बारे में अधिक जानने को मिलेगा जो अभी तक सबके सामने नहीं आ पाया है. देश का संविधान सभी भाषाओँ की प्रगति के लिए निरंतर ही प्रयास किये जाने की बात करता है पर इस तरह से यदि देश में अधिकांश उर्दू शिक्षित मुसलमानों की आबादी तक अपनी बात पहुँचाने के लिए मोदी द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है तो इसके विरोध का कोई मतलब नहीं बनता है क्योंकि जिन लोगों को यह लगता है की उर्दू की इस साइट से मोदी को वोट मिल जायेंगें वे भ्रम में जी रहे हैं.
                                           देश के नेताओं की पहुँच यदि देश की भाषाओँ में ही आम लोगों तक होती रहे तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता है क्योंकि जिन लोगों में आपसी विश्वास की कमी है वे अपनी बात यदि एक दूसरे की भाषा में करने में सक्षम हो जाएँ तो देश की बहुत बड़ी समस्या को भी आसानी से सुलझाया जा सकता है. आज भी जिस तरह से भाषा के नाम पर विवाद किये जाते हैं उनका कोई मतलब नहीं होता है पर कुछ लोगों को मोदी के साथ सलीम और सलमान खान का इस तरह से जुड़ना भी रास नहीं आ रहा है ? इस मुद्दे पर सलीम खान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस साइट ले लोकार्पण को उनका भाजपा को समर्थन न समझा जाये वे कांग्रेस के वोटर रहे हैं और अच्छा प्रत्याशी होने पर वे उसके लिए फिर से वोट भी करेंगें, वे उर्दू की तरक्की के लिए सदैव प्रयासरत रहे हैं और मोदी की इस साइट के लोकार्पण का केवल उनका यदि मक़सद था फिर भी कुछ लोगों को यह सलीम खान का गलत कदम ही लग रहा है. देश का हर नागरिक अपने अनुसार किसी भी धर्म भाषा और राजनैतिक विचारधारा से जुड़ने को स्वतंत्र है और यदि सलीम या सलमान खान को मोदी के गुणों से लगाव या अपने सम्बन्ध हैं तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ?
                                          मोदी एक तरफ जितने विवादित रहे हैं दूसरी तरफ उतने ही लोकप्रिय भी हैं पर एक बात तो तय ही है कि उन्होंने यह साइट कुछ चुनावी लाभ के लिए ही जारी की है क्योंकि वे जितने वर्षों से सत्ता में हैं तो यह काम वे पहले भी कर सकते थे पर जिस तरह से उन्होंने इसका समय चुना है तो विरोधियों को उन पर हमला करने का अवसर भी मिल गया है. गौर से यदि देखा जाये तो मोदी के काम करने की शैली सदैव से ही ऐसी रही है कि वे सही काम भी ऐसे समय के साथ करते हैं जिसमें कुछ अनावश्यक और निरर्थक विवाद भी हो जिससे उनके बारे में चर्चा होती रहे. ऐसे में यदि वे इस साइट के उद्घाटन के लिए सलीम खान का चुनाव करते हैं तो इसमें कोई नयी बात नहीं है. फ़िल्म उद्योग द्वारा भी इस बारे में जिस तरह से प्रतिक्रियां दिखाई जा रही हैं वे भी अनावश्यक ही हैं क्योंकि भले ही किसी भी मंशा के साथ यह साइट शुरू की गयी है उससे मोदी के रणनीतिकारों में भी इस भाषा की महत्ता समझ में आने वाली बात ही अधिक परिलक्षित होती है उर्दू को इस तरह से महत्व दिए जाने से एक बार फिर से भारत की सामान्य बोलचाल की भाषाएँ अपनी जीवंतता को सिद्ध करने की तरफ ही अग्रसर होती लगती हैं.    
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