मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

स्वदेशी नौवहन की आवश्यकता

                                       इसरो ने एक बार फिर जिस तरह से भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (ईआरएनएसएस) के दूसरे उपग्रह को सफलता पूर्वक कक्षा में स्थापित किया उससे भारत के अंतरिक्ष विज्ञान में आगे बढ़ते हुए क़दमों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है. देश की भौगोलिक परिस्थितियों के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विशेष रूप से तैयार किये गए इस पूरे तंत्र को स्थापित करने के लिए २०१५ की समय सीमा निर्धारित कि गयी है और जिस तरह से सारा कार्यक्रम अपनी सही गति से चल भी रहा है तो उससे यही लगता है कि देश जल्दी ही यह पूरी सुविधा अपने वैज्ञानिकों के दम पर पा लेगा. देश में आज प्राकृतिक आपदा या अन्य आवश्यक कामों के लिए जिस तरह से एक सम्पूर्ण प्रणाली की आवश्यकता है उसे यह क्षेत्रीय नौवहन तंत्र पूरा करने में सफल होगा. उत्तराखंड में पिछले वर्ष आयी जल प्रलय के समय जिस तरह से परिस्थितियों का सही आंकलन लगाने में प्रारंभिक स्तर पर हमारी नाकामी सामने आयी उस तरह की परिस्थितियों में ऐसा तंत्र हमारी कुशलता को बढ़ाने का काम कर सकता है.
                                     इस तरह से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ ही पीएसएलवी श्रेणी के प्रक्षेपकों की श्रंखला में भी भारत द्वारा महारत हासिल की जा रही है पीएसएलवी २४सी नामक प्रक्षेपक से इस उपग्रह को केवल १९ मिनट बाद ही सटीक कक्षा में स्थापित कर उसका नियंत्रण हासिल कर सौर पैनेल को खोल दिया गया वह भारतीय वैज्ञानिकों की कुशलता को भी दर्शाता है. इसरो के वैज्ञानिक जिस तेज़ी के साथ देश की हर तरह की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संकल्पित दिखायी देते हैं उस स्थिति में अब देश के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं लगता है. तकनीक के बेहतर प्रबंधन से जहाँ भारतीय उपग्रहों की लागत भी कम होती है वहीं उनकी कुशलता पर अब कोई संदेह भी करने की स्थिति में नहीं रह गया है. इस सफलता से भारत ने अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान के बाद यह स्थान हासिल किया है जिसके पास पूरा स्वदेशी नौवहन तंत्र होगा जिससे आने वाले समय में विदेशी उपग्रहों पर देश के महत्वपूर्ण कामों की निर्भरता भी कम हो जायेगी.
                                    देश के अंदर और समुद्री सीमा के १५०० किमी तक काम करने वाली इस पूरी प्रणाली के २०१५ तक स्थापित हो जाने से जहाँ सेनाओं के लिए निगरानी का काम आसान हो जाने वाला है वहीं नागरिक प्रशासन को भी इससे सही स्थलीय जानकारी हासिल करने और उसके अनुसार काम करने में सरलता होने वाली है. हमारे वैज्ञानिक अपने काम में पूरी तरह से मुस्तैद हैं और आज तक उन्हें जो भी काम सौंपे गए हैं उन्होंने उनको पूरा कर देश का मान सदैव ही बढ़ाया है. ऐसी स्थिति में अब सरकार को देश में बेहतर वैज्ञानिक अनुसन्धान और परीक्षणों के लिए माहौल तैयार करने की कोशिशें करनी चाहिए जिससे आने वाले समय में पूरे देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देश को विदेशों की तरफ न ताकना पड़े और हमारी विलक्षण प्रतिभा जो आज भी पलायन कर दूसरे देशों में काम कर रही है वह अपने देश में ही रुक सके. देश में हर तरह की दीर्घकालिक नीतियों में अब यह भी शामिल क्या जाना चाहिए कि आगामी वर्षों में हमारी आवश्यकताएं कहाँ तक बढ़ने वाली हैं और उनको पाने के लिए एक रोडमैप भी देश के पास होना ही चाहिए.         
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