मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 16 मई 2014

जीत-हार और संयम

                                         देश के आम चुनाव आज एक लम्बे दौर के बाद अपने परिणाम को प्राप्त करने वाले हैं जिसके बाद नयी सरकार बनाने की कवायद शुरू होने वाली है. इस बार के चुनाव में जिस तरह से राष्ट्रीय और स्थानीय कारकों के चलते मतदान में ध्रुवीकरण की काफी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं उस स्थिति में चुनाव आयोग का यह निर्देश बिलकुल सही ही है कि विजयी प्रत्याशियों को किसी भी सूरत में विजय जलूस निकालने से रोक जाये क्योंकि जीते हुए प्रत्याशियों और हारे हुए प्रत्याशियों के समर्थकों के बीच किसी भी तरह के टकराव को रोकने के लिए यह बहुत आवश्यक है और इसके बिना किसी भी तरह से पूरी शांति नहीं रखी जा सकती है. ख़ुफ़िया रिपोर्टों में भी जिस तरह से देश के विभिन्न स्थानों पर आतंकियों द्वारा हमले किये जाने की आशंकाएं व्यक्त की गयी हैं उनसे भी यही लगता है कि इस बार आने वाले कुछ दिनों तक पुलिस और प्रशासन को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता होने वाली है.
                                        वैसे देखा जाये तो इस मामले में सबसे अधिक सहायता केवल जिला प्रशासन ही कर सकता है क्योंकि यदि वह पहले से ही चौकन्ना रहे तो किसी भी स्थान विशेष पर लोगों के बड़े जमावड़े को रोका जा सकता है और विजयी प्रत्याशी को पूरी सुरक्षा के बीच उसके निवास या फिर सरकारी अतिथि भवन में जहाँ भी उचित रहे पहुँचाने का काम भी किया जा सकता है क्योंकि इन दोनों परिस्थितियों में जहाँ लोगों को विजयी प्रत्याशी के पक्ष में समर्थकों को इकठ्ठा करने से रोकने में मदद मिलने वाली है वहीं किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति से भी बचा जा सकता है. इस सबमें यदि प्रशासन अपने कर्तव्य का अनुपालन सही ढंग से राज्य सरकारों के दबाव में आये बिना करे तो उससे स्थितियां पूरी तरह से नियंत्रण में रह सकती है और यह प्रशासनिक समझ अगले कई दिनों तक बनाये रखने की आवश्यकता भी रहने वाली है क्योंकि समाज विरोधी तत्व माहौल बिगाड़ने के अपने मंसूबे आसानी से नहीं छोड़ने वाले हैं.
                                        किसी भी स्थान पर माहौल को सही रखने का ज़िम्मा पूरी तरह से प्रत्याशियों पर भी डाला जाना चाहिए क्योंकि विजय जलूस निकालने के स्थान पर यदि सभी चुनावी बातों को भूलकर लोकतंत्र में जनता के फैसले को ही सर्वोपरि मानते हुए अपने समर्थकों को शांत रखने की कोशिशें करें तो सब कुछ सामान्य रह सकता है क्योंकि बड़े स्तर के नेताओं में नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली ने भी मनमोहन की तारीफ कर माहौल को हल्का करने का प्रयास शुरू भी कर दिया है और संसद में बैठने लायक माहौल बनाने के लिए अब हर दल को चुनावी कड़वाहट भूलकर देश को आगे बढ़ाने की बातों के लिए बेहतर सामंजस्य बिठाने की ज़रुरत पड़ने वाली है. बड़े नेता तो यह सब आसानी से कर पाने में सफल हो जाते हैं पर छोटे स्तर के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए जीत या हार को पचा पाना बहुत ही कठिन हुआ करता है. देश की जनता को भी यह समझना चाहिए कि आम चुनाव लोकतंत्र के एक पर्व की तरह हैं जिसमें हर बार जनता को अपने पसंद की सरकार चुनने का अवसर मिला करता है.     
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