मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 17 मई 2014

नरेंद्र मोदी का युग

                                              देश ने आम चुनावों में जिस तरह से मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ अन्य दलों के लिए एक बड़ा सबक भी छोड़ा है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में देश की राजनीति में परिवर्तन आने की संभावनाएं सामने आने लगी हैं. अभी तक जिस तरह से परंपरागत तरीके से वोट मांगने और अपनी गोटियां बिठाने का काम सभी राजनैतिक दल किया करते थे उसके बाद विकास और बदलाव के नाम पर वोट मांगना और देना काम महत्वपूर्ण नहीं रहा करता था. देश के राजनैतिक दृश्य में जिस तरह से भाजपा ने परंपरागत चुनावी तरीकों के साथ विकास को भी महत्व दिया और गुजरात के विकास को एक मॉडल के रूप में जनता के सामने रखने में सफलता भी पायी उससे यही लगता है कि अब जनता में बढ़ने वाले युवा वोटर्स की नज़रें सभी पर रहा करती हैं और वे उन मुद्दों पर भी गंभीरता के साथ विचार कर सकते हैं अभी तक जिन्हें भारतीय राजनीति में केवल पर्दे के पीछे ही स्थान मिला करता था.
                            इस चुनाव के बाद राजनैतिक विश्लेषक जहाँ अपने स्तर से मुद्दों को तलाशने वाले हैं वहीं पूर्वाग्रह से ग्रसित कुछ लोग अपने आप में अभी से भाजपा और नरेंद्र मोदी पर हमले करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. देश में लोकतंत्र सर्वोपरि है और यह भी सही है कि कुछ दलों द्वारा सदैव लोगों की भावनाओं का शोषण करके ही वोट बटोरने की प्रक्रिया को संपन्न किया जाता रहा है पर इस बार जिस तरह से स्थानीय और अगड़े पिछड़ों के साथ अन्य समीकरण भी मोदी के आगे छोटे पड़ते चले गए उनसे भारतीय जनमानस में परिवर्तन की चाह भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. देश में आज भी बहुत से ऐसे राजनैतिक दल हैं जो अपनी मौजूदगी को दूसरे दल पर केवल हमलावर रहकर ही बचाने की कोशिशें किया करते हैं और इस स्थिति में जब तक सकारात्मक राजनीति को बढ़ावा नहीं दिया जायेगा तब तक माहौल को सुधारने में मदद नहीं मिल सकती है.
                            अभी तो मोदी ने भाजपा को सत्ता तक पहुँचाया ही है और उनके पास अपनी पारी शुरू कर काम करने का पूरा अवसर भी है तो अभी से उन पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों को नैतिक रूप से इसका कोई अधिकार नहीं मिला हुआ है क्योंकि जनता ने मोदी के बारे में सब कुछ जानते हुए ही उन्हें इतना प्रचंड बहुमत सौंपा है तो लोकतंत्र में जनता के फैसले पर सवाल लगाने का अधिकार किसी को भी नहीं है. जनता ने इस परिवर्तन को जिस चाह से किया है अब उसे भी धरातल पर परिवर्तन महसूस होने के लिए प्रतीक्षा की आवश्यकता है क्योंकि देश राष्ट्र और समाज से जुड़े किसी भी मसले पर स्थायी परिवर्तन दिखने में समय लगा करता है. मोदी को पहले सरकार बनाकर अपनी प्राथमिकताएं और स्वयं की तरफ से उसकी समय सीमा निर्धारित करने के बाद ही उन पर किसी मसले को लेकर विरोध करने का मतलब बनता है. खुद मोदी की तरफ से यह सकारात्मक संकेत दिए जा चुके हैं कि वे सरकार चलाने में सभी का सकारात्मक सहयोग चाहते हैं तो किसी पूर्वाग्रह से उन पर हमले का कोई मतलब नहीं बनता है और अब जब लोकसभा में कोई आधिकारिक विपक्षी दल नहीं होगा तो उस स्थिति में सदन के नेता होने के नाते मोदी पर सदन की गरिमा बनाये रखने की और भी ज़िम्मेदारी आने वाली है. जनता ने उन्हें समय दिया है तो देशहित में विरोधी दल के नेताओं को भी सदन के अंदर और बाहर भी शालीनता से उनके युग को समझने का प्रयास करना चाहिए.
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