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सोमवार, 19 मई 2014

कांग्रेस कार्यसमिति बैठक और यथार्थ

                                               आम चुनावों में भाजपा के हाथों बुरी तरह से हरने के बाद परिणामों पर विचार करने और वर्तमान स्थितियों की समीक्षा करने के लिए आज नई दिल्ली में कांग्रेस कार्यसमिति की पहली बैठक हो रही है. पार्टी के यूपीए-१ के सफल सञ्चालन के बाद पांच वर्ष पूर्व जनता ने कांग्रेस को उसकी पिछली स्थिति से मज़बूत करते हुए यूपीए-२ के लिए फिर से सत्ता सौंपने का काम किया था उसके सञ्चालन में आखिर उसकी तरफ से क्या गलतियां हुई हैं अब उन पर सही तरह से विचार किये जाने की आवश्यकता भी है. लोकतंत्र का यही सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण पहलू है कि राजनैतिक दल जीतने के बाद चाहे जो करने के लिए स्वतंत्र तो हैं पर उनके लिए अंतिम फैसला जनता की अदालत में ही हुआ करता है जिससे पूरे माहौल राजनैतिक माहौल को सुधारे रखने में मदद मिला करती है फिर भी कई बार राजनैतिक रूप से शक्ति मिल जाने के बाद सरकार चलाने वाले दल अपने वर्तमान स्वरुप को भूलकर मनमानी करने पर उतर आते हैं.
                                               कांग्रेस के पास सीटों के लिहाज़ से भले ही कुछ ख़ास न बचा हो पर आज भी उसके पास पूरे देश में बीस प्रतिशत से अधिक वोट मौजूद हैं जो कि उसकी धरातल पर उस वोट शक्ति को दिखाते हैं जिनके दम पर वह आने वाले समय में फिर से पूरी शक्ति के साथ वापसी कर सकती है पर इस सबके लिए उसे जिस दृढ इच्छाशक्ति को दिखाने की आवश्यकता है संभवतः उसमें वह अभी दिखाई नहीं देती है. अच्छा हो कि देश के अच्छे भविष्य और पार्टी की स्थिति बेहतर करने के लिए अब समिति में केवल वही निर्णय लिए जाएँ जिनसे धरातल पर परिवर्तन को आम जनता भी महसूस कर सके और आने वाले समय में पार्टी पर भरोसा दिखाने की हिम्मत भी कर सके. एक समय था जब कांग्रेस सर्व समाज की पार्टी ही हुआ करती थी और उसके नेता भी वर्गहित से बढ़कर जनहित के बारे में अधिक सोचा करते थे पर जिस तरह से अस्सी के दशक में जाति वर्ग की राजनीति से जुड़े हुए नेताओं ने कांग्रेस के सम्पूर्ण वोट बैंक से अपने अपने हिस्से निकालने में सफलता पायी उसके बाद पार्टी ने भी उसी राह को पकड़ा जो कि उसके लिए बहुत घातक सिद्ध हुई.
                                            अच्छा होगा कि आज की बैठक में आरोप प्रत्यारोपों के स्थान पर सही आत्म मंथन किया जाये और जिन महत्वपूर्ण कारणों से पार्टी को जनता ने नकार दिया है अब उसको फिर से ठीक करने के बारे में प्रयास शुरू किये जाएँ. आज देश में तेज़ी से बढ़ता हुआ युवा वर्ग बड़े वोट समूह के रूप में सामने आ चुका है और आने वाले समय में इसकी स्थिति में कोई ख़ास परिवर्तन होने की सम्भावना नहीं है तो कांग्रेस ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में शामिल सभी दलों के लिए यह आवश्यक होने वाला है कि वे समाज के कुछ वर्गों के स्थान पर पूरे समाज के लिए काम करने की शुरुवात करें. हर चुनाव में स्थानीय या राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी रहा करते हैं जिससे हर पार्टी के प्रदर्शन पर उनका असर पड़े बिना नहीं रह पाता है. आज भी कांग्रेस के पास पूरे देश में केवल यूपी, बिहार, प० बंगाल और तमिलनाडू को छोड़कर एक अच्छा खास कैडर भी है तो लगभग २०० सीटों वाले इन बड़े राज्यों में पार्टी को सही तरह से अपनी पहुँच बनाये रखने के लिए यहाँ धरातल पर अपने कदम फिर से ज़माने के बारे में सोचना ही होगा. अब जब देश में संख्या की दृष्टि से एक मज़बूत केंद्र सरकार सत्ता सँभालने जा रही है तो अपने सीमित सांसदों के माध्यम से कांग्रेस को सदन में रचनात्मक विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए. पार्टी प्रवक्ताओं की भीड़ के स्थान पर सुलझे हुए लोगों को पार्टी का मत जनता के सामने रखने के लिए आगे करना चाहिए.    
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