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मंगलवार, 20 मई 2014

मानसून और भारतीय कृषि

                                             अभी तक अल नीनो प्रभाव के कारण मानसून के कमज़ोर या अलग तरीके से व्यवहार करने के अनुमानों को गलत साबित करते हुए जिस तरह से बंगाल की खाड़ी से मानसून ने अपनी सामान्य गतिविधियाँ शुरू कर दी हैं और मौसम वैज्ञानिक उसकी प्रगति पूरी तरह सही बता रहे हैं वह देश के कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी उत्साहजनक खबर है. आज भी भारतीय कृषि का अधिकतर हिस्सा मानसून पर ही आधारित है तथा उसके किसी भी तरह से कमज़ोर या अलग व्यवहार करने भारतीय अर्थ व्यवस्था पर उसका कुप्रभाव आसानी से ही पड़ जाया करता है. आज भारतीय मौसम वैज्ञानिकों के पास पहले के मुकाबले मौसम की अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने की क्षमता आ चुकी है तो उस परिस्थिति में अब कृषि से जुडी योजनाएं बनाने और किसी भी विपरीत परिस्थिति से निपटने के मामलों में देश पहले के मुकाबले अधिक आत्म निर्भर हो चुका है. इस परिदृश्य को अभी और भी सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि कृषि भारतीय अर्थ व्यवस्था की रीढ़ सदैव ही बनी रहने वाली है.
                                            भारत ने मौसम के क्षेत्र में जिस तरह से पूर्वानुमान लगाने की तकनीक में धीरे धीरे महारत हासिल करने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं उसका ही असर है कि आज देश में लोगों को मौसम विभाग पर भरोसा होने लगा है फिर भी रोज़ ही इस सम्बन्ध में आने वाली तकनीकी पर देश को विचार करने और उनकी स्थापना के बारे में सोचने की आवश्यकता भी है. केंद्रीय स्तर पर जो सफलता मौसम विभाग को मिल रही है अब विकसित देशों की तरह उन सूचनाओं को सही तरह से उपयोग में लाने की कला का विकास भी देश को सीखना ही होगा क्योंकि केंद्र सरकार या केन्दीय मौसम विभाग के पास केवल इस तरह के अनुमानों को लगाने की क्षमता ही है और उसका धरातल पर क्रियान्वयन राज्यों को ही करना होता है. राज्य सरकारों को भी अब अपने यहाँ के कृषि वैज्ञानिकों के साथ केंद्रीय स्तर से मिलने वाली सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकारी योजनाओं पर अमल करने की आवश्यकता है. देश के विकास में अब केंद्र और राज्यों के समवेत प्रयासों की आवश्यकता है पर दुर्भाग्य से इन दोनों सत्ता केन्द्रों के बीच अभी तलवारें ही खिंची रहा करती हैं.
                                            आज जब मानसून पूरी भारतीय अर्थ व्यवस्था के साथ दक्षिण एशिया की आर्थिक गतिविधियों का सञ्चालन भी करता है तो उसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ नागरिकों को भी बेहतर सूचनाएँ देने की व्यवस्था की जानी चाहिए. इस पूरी कवायद में आज तेज़ी से आगे बढ़ते हुए टेलीकॉम उद्योग को भी अपनी निशुल्क सेवाएं देनी चाहिए और मौसम से जुड़े विभिन्न अलर्ट नि:शुल्क सभी मोबाइल उपभोक्ताओं को हफ्ते में एक बार तो जारी ही करने चाहिए. इसके अतिरिक्त यदि मौसम में किसी बड़े परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया जा रहा हो तो उसको सभी मोबाइल कम्पनियों के लिए उपभोक्ताओं को भेजा जाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए जिससे जहाँ सरकार को नागरिकों तक सूचनाएं भेजने का एक और विकल्प मिल जायेगा वहीं नागरिकों को भी इससे काफी अधिक सुविधा होगी. केंद्रीय मौसम विभाग के पूर्वानुमानों को मानने के लिए राज्यों के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश भी होने चाहिए क्योंकि जनता से जुड़े किसी भी मुद्दे पर केंद्र और राज्य की घटिया राजनीति को बीच में लाने की कोई आवश्यकता नहीं है. साथ ही जिला स्तर पर जिला कृषि अधिकारी को इसका नोडल अधिकारी बनाया जाना चाहिए जो मौसम की गतिविधियों के साथ किसानों के साथ समन्वय बनाये रख सकें.
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