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शनिवार, 24 मई 2014

मुलायम की चिंता और सदन

                                                                      कल मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी की समीक्षा बैठक के बाद जिस तरह से इस बात पर चिंता व्यक्त की और यह खबर भी सामने आई कि उन्होंने अखिलेश से यह भी पूछा कि सदन में अब मोदी का मुक़ाबला कौन करेगा तो यह सवाल एक तरफ प्रासंगिक होने के साथ दूसरी तरफ अनावश्यक भी लगता है. आज सदन में सत्ता पक्ष की जो भी स्थिति में और विपक्ष में जिस तरह से कोई बड़ा समूह नहीं है और भाजपा छोड़ सभी दलों के बड़े नेता चुनाव हार चुके हैं तो सदन में विपक्ष की आवाज़ कुछ कम ही सुनाई देने वाली है. जिस तरह से भाजपा के अधिकतर अनुभवी और तेज़ तर्रार नेता सदन में पहुँच चुके हैं तो नरेंद्र मोदी के लिए सदन में अपनी बात प्रभावी ढंग से खुद रखने के साथ ही सार्थक मुद्दों पर बहस करवाने का मार्ग सदैव ही खुला रहने वाला है. पिछले कुछ दशकों से जिस तरह से सदन के विधायी काम-काज के घंटो के साथ उसकी गुणवत्ता में कमी आती चली गयी है आज देश के लिए यह भी चिंता की बात है.
                                                                   मनोनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जिस तरह से गुजरात विधानसभा के सत्रों को लम्बे समय तक चलाये रखने के पक्ष में कभी भी नहीं रहा करते थे तो उस परस्थिति में अब यह भी देखना होगा कि संसद के सत्र कितने लम्बे और कितने प्रभावी हो पाते हैं. आज सदन में भाजपा के सभी दिग्गज मौजूद हैं तो उनके अनुभवों का लाभ उठाते हुए नरेंद्र मोदी किस तरह से सदन से काम लेते हैं यह भी देखना दिलचस्प ही होने वाला है. मुलायम ने जिस तरह से अपनी चिंता व्यक्त की है उससे यही संकेत मिलते हैं कि इस बार सदन में विपक्ष की स्थिति क्या रहने वाली है क्योंकि प्रभावी विपक्षी नेताओं की संख्या और अनुभव कम होने से जहाँ सरकार के लिए सदन में काम करना आसान ही रहना वाला है वहीं सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा समय समय पर यूपी के मसलों पर सदन को बंधक बनाये जाने जैसी परिस्थितियां अब देखने को नहीं मिलने वाली है जिससे सदन के काम की गुणवत्ता में सुधार की आशा भी की जा सकती है. सदन में जयललिता और ममता के समूह अपने राज्यों से बाहर की कोई सोच रखते ही नहीं हैं तो उनसे केवल अराजकता की आशा ही की जा सकती है. वर्तमान परिस्थितियों में बीजू जनता दल अवश्य ओडिशा के हितों को देखते हुए शांति पूर्वक अपना काम करने की तरफ ही दिखाई देने वाला है क्योंकि उसकी सोच सदन में आज तक कभी भी अराजक नहीं रही है. 
                                                                    पिछले दो बार से जिस तरह से सदन में लगभग ४५ सांसद लेकर यूपी की दोनों पार्टियां सैप-बसपा अपनी राजनीति के तहत संसद में भी एक दूसरे पर हमले किया करती थीं इस बार वह नहीं दिखाई देने वाला है और इस बात को मुलायम को भी समझना ही होगा कि सरकार को काम करने के अवसर दिए बिना उसे घेरने की रणनीति बहुत कारगर नहीं रहने वाली है. संख्या बल पर सरकार पर दबाव बनाने की कोई भी रणनीति इस बार किसी भी तरह से प्रभावी नहीं रहने वाली है तो विपक्ष को मुद्दों के आधार पर अपनी बात को प्रभावशाली और संसदीय तरीके से उठाने की तरफ सोचना ही होगा. सदन में अराजकता और बंधक बनाकर की जाने वाली राजनीति को इस बार जनता ने नकार दिया है और यह बात यूपी की सपा समेत सभी क्षेत्रीय दलों समझनी ही होगी. नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से सरकार के कील कांटे दुरुस्त करने का काम शुरू करने के संकेत दे भी दिए हैं तो अब विपक्ष द्वारा कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं होने वाला है. बेहतर होगा कि मुलायम और सदन में अन्य विपक्षी नेता अपने कौशल का प्रयोग अनावश्यक रूप से सरकार को घेरने के स्थान पर देश हित के मुद्दों के आधार पर करें तो ही जनता में सकारात्मक सन्देश जा सकता है.    
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