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शनिवार, 21 जून 2014

रेल किराया और राजनीति

                                           देश की राजनीति में जिस तरह से आर्थिक मुद्दों को भी घटिया राजनीति में घसीटे जाने की परंपरा लम्बे समय से चली आ रही है उसका कोई विकल्प नहीं दिखाई देता है. कुछ मामलों में सरकार को यह लगता है कि यदि वह अपना आर्थिक समर्थन वापस लेगी तो जनता में नाराज़गी बढ़ जाएगी जबकि देश की विशुद्ध आर्थिक सेहत के लिए यह कड़े कदम उठाने की आवश्यकता सभी दल लम्बे समय से महसूस कर रहे हैं. रेल किराया भी उन सभी मुद्दों पर राजनीति का बड़ा कारण है जिस पर सभी दल सच्चाई जानते हुए भी सरकार का विरोध करने से बाज़ नहीं आते हैं. इस बार जिस तरह से अपने पहले आम और रेल बजट से पहले ही संसद को दरकिनार करते हुए राजग सरकार ने रेल किराये में काफी वृद्धि कर दी है उस पर भी राजनीति शुरू हो चुकी है. किसी भी सरकार के लिए कड़े आर्थिक निर्णय लेना मुश्किल होता है पर जब उसको छोटे मार्ग से किया जाता है तो उसका विरोध होना ही चाहिए.
                                             सरकार द्वारा इसके समर्थन में जिस तरह से बचकाना बयान जारी किया उसका कोई मतलब नहीं था क्योंकि यदि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की रेल सम्बंधित नीति में फ्यूल एडजेस्टमेंट कंपोनेंट (एफएसी) सही था तो सरकार को उस बात को भी कहना चाहिए था. संप्रग सरकार ने जिस तरह से रेल किराये को भी डीज़ल के मूल्यों स सीधे जोड़ने की बात की थी वह रेल के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि राजनैतिक कारणों से रेलवे की आर्थिक हालत पहले ही बिगड़ी पड़ी है. भाजपा की तरह कांग्रेस ने इस मूल्य वृद्धि की उतनी आलोचना न कर एक तरह से यह संकेत दे ही दिया है कि वह देश के आर्थिक हितों पर कोई राजनीति नहीं करने जा रही है और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी सरकार के कड़े क़दमों का समर्थन कर इस बात की पुष्टि कर दी हैं कि अब भाजपा की तरह कांग्रेस विपक्ष में होने के बाद भी उस घटिया राजनीति से खुद को दूर रखने वाली है.
                                            रेल किराये खर्चे के अनुसार बढ़ें इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है पर जिस तरह से राजग सरकार ने संसद की अनदेखी करते हुए यह निर्णय लिया है उसका भरपूर विरोध होना भी चाहिए क्योंकि जब एक नयी सरकार सत्ता में आई है तो उसे संसदीय परम्पराओं का अधिक ध्यान रखना ही चाहिए. मोदी ने ७ मार्च २०१२ को खुद इसी तरह से एक बार संसद की बैठक से पहले संप्रग सरकार द्वारा किराये बढ़ाये जाने की तीखी आलोचना करते हुए खुद पीएम को पत्र तक लिखा था पर इस बार उन्होंने भी वही रास्ता अपनाया जो पिछली सरकार किया करती थी ? अब मोदी को यह समझना होगा कि वे देश के पीएम हैं गुजरात के सीएम नहीं और देश में स्थापित परम्पराओं को जहाँ भी किसी पूर्ववर्ती सरकार द्वारा सम्मान नहीं दिया गया था अब उसे प्रतिस्थापित करने की ज़िम्मेदारी भी वर्तमान सरकार पर ही आती है. मोदी के पास स्पष्ट बहुमत है और इस तरह के फैसलों पर कांग्रेस कभी भी सरकार का विरोध सदन में नहीं करने वाली है फिर भी लोकसभा के बजट सत्र से पहले इतने बड़े निर्णय को करने के फैसले से सहमत नहीं हुआ जा सकता.
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