मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 19 जुलाई 2014

एसजीपीसी की राजनीति

                                                                  हरियाणा में जिस तरह सिख समुदाय द्वारा लम्बे समय से अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी बनाये जाने के कानून बनने को लेकर राजनैतिक विवाद शुरू हुआ है उससे किसी को भी कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है अलबत्ता आने वाले समय में पूर्व एकीकृत पंजाब के वर्तमान राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सिख राजनीति में अनावश्यक विवाद बढ़ने की संभावनाएं भी दिखाई देने लगी हैं. अकाली दल जिसकी आज तक की राजनीति केवल पंथ के इर्दगिर्द ही घूमती रही है वर्तमान समय में अपने बेहद बुरे दौर से गुज़र रहा है और हरियाणा के सिखों द्वारा पंजाब में उसकी सरकार के रहते हुए जिस तरह से अलग कमिटी का गठन करने में सफलता पायी है उससे भी उसे बहुत धक्का लगा है. इस मामले में श्री अकाल तख़्त साहिब के माध्यम से हरियाणा के अलग कमिटी के पैरोकार सिख नेताओं को तनखैया घोषित कर माफ़ी मांगने का हुक्म सुनाया जा चुका है.
                                                     इस मामले में केंद्र सरकार ने जिस तरह से बदल के सामने घुटने टेकते हुए हरियाणा सरकार के इस काम में दखल दिया है और राज्यपाल से इस बिल को वापस किये जाने की बात कही है उससे संवैधानिक संकट भी सामने आ सकता है क्योंकि किसी भी राज्य विधान सभा द्वारा पारित प्रस्ताव पर अभी तक केंद्र सरकार द्वारा इस तरह की चिट्ठी भेजने की कोई परंपरा नहीं रही है और राज्य के मामले को निर्धारित करने की पूरी छूट राज्य की निर्वाचित सरकार को संविधान द्वारा मिली हुई है. राज्य सरकार के पक्ष में एक सबसे मज़बूत बात यह भी है कि १९६६ के पंजाब पुनर्गठन विधेयक में इस बात का उल्लेख किया गया था कि हरियाणा में अलग से एसजीपीसी का गठन किया जा सकता है और अब यदि सरकार हरियाणा के सिखों की इस मांग को पूरा कर रही है तो पंजाब के अकाली नेताओं को १०० करोड़ की आमदनी के ख़त्म होने से परेशानी का अनुभव हो रहा है और सीएम बादल केंद्र सरकार पर अनावश्यक दबाव बनाने में लगे हुए हैं.
                                                    बादल को पता नहीं हरियाणा सरकार का यह रवैया क्यों नहीं समझ में आ रहा है क्योंकि वे एक तरफ तो केंद्र से यह मांग करते हैं कि एक राज्य को दूसरे राज्य के धार्मिक और सामाजिक कार्यों में दखल देने से रोकने के लिए एक कड़ा केंद्रीय कानून बनाया जाये वहीं दूसरी तरफ वे हरियाणा के इसी तरह के धार्मिक और सामाजिक कार्यों से जुड़े इस मामले पूरी तरह से दखल देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं ? केंद्र की मज़बूत बहुमत वाली सरकार भी पता नहीं क्यों बादल की इस तरह की धमकी के सामने झुकी जा रही है जबकि कानूनी तौर पर हरियाणा को ऐसे कानून बनाने से कोई रोक नहीं लगायी जा सकती है. धार्मिक मामलों में इस तरह की राजनैतिक घुसपैठ का नतीजा पंजाब अस्सी के दशक में भुगत भी चुका है और अब केंद्र सरकार फिर से कानूनी रूप से सही हरियाणा को अलग थलग करने की कोशिश में लग चुकी है. पूरे विश्व में गुरुद्वारों का प्रबंधन वैसे भी बहुत अच्छी तरह से होता है तो उसके लिए किसी कमिटी का योगदान अपनी जगह है पर आम सिख श्रद्धालुओं के समर्पण के कारण यह सब अच्छे से अधिक चलता है. केंद्र को वैसे तो इस मामले से अपने को अलग रखना चाहिए पर वर्तमान परिस्थितियों में यह मुश्किल ही लग रहा है.             
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