मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 25 अगस्त 2014

कश्मीर आज के परिप्रेक्ष्य में

                                                                                केंद्र में राजग सरकार बनने के बाद से जहाँ कश्मीर से जुड़े हुए लोगों और विश्लेषकों के सामने एक बड़ा मुद्दा यह भी था कि क्या अपनी पूर्ववर्ती राजग सरकार की तरह यह सरकार भी कश्मीर नीति पर कोई बड़ी पहल करने की तरफ बढ़ती हुई दिखाई देगी या फिर उसकी नीति भी संप्रग सरकार की तरह ही स्थितियों के सामान्य होने तक कोई बातचीत न करने की नीति तक ही सीमित रहने वाली है. शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह से सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर पीएम ने एक बड़ी पहल करते हुए अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी थी उसके बाद लोगों को लगने लगा था कि संभवतः मोदी अटल सरकार से आगे जाकर कुछ नया प्रयास भी कर सकते हैं. २५ अगस्त से भारत-पाक विदेश सचिव स्तरीय वार्ता के रूप में इस प्रयास को एक बार फिर से शुरू करने की तरफ दोनों देशों ने बढ़ना शुरू कर ही दिया था पर अभी तक कश्मीर मसले पर पाक से बातचीत करने से पहले जिस तरह से घाटी के अलगाववादी पाक उच्चायुक्त से मिलते रहे हैं इस बार उनके मिलने पर पूरी बातचीत ही रद्द कर दी गयी है.
                                                                  कश्मीर में जिस सेना और अर्धसैनिक बलों की वापसी की मांग वहां के अलगाववादी ही किया करते हों शायद वे यह भूल गए हैं कि कश्मीर में बाहर से आकर काम करने वाले भाड़े के आतंकियों ने कितने कश्मीरियों को मौत के घाट उतारा है जिसमें कई धर्मिक और राजनैतिक लोग भी शामिल हैं तो क्या भारत की सुरक्षा एजेंसियों के साये में जीने वाले ये लोग बिना भारतीय बलों के अपने को सुरक्षित रख पायेंगें ? पिछले तीन दशकों में जिस तरह से पाक से लगती पूरी सीमा पर कांटेदार बाड़ लगायी गयी है उसके बाद से ही घाटी में बाहर से आकर हमले करने वाले आतंकियों की संख्या में काफी गिरावट आई है और साल भर में मई से लगाकर सितम्बर तक जिस तरह से मौसम का लाभ उठाकर पाक आतंकी घुसपैठ को समर्थन किया करता है वह आज भी जारी है. भारत की तरफ से बातचीत रद्द होने के बाद इन घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है जिससे यह पता चलता है कि पाक भी इस मुद्दे को इसी तरह से ज़िंदा रखकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इधर भी आकृष्ट करते रहने की नीति पर चल रहा है.
                                                               अभी तक भारत सरकार का यही रुख रहा है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इस पर केवल पाक से ही शिमला समझौते के तहत बातचीत हो सकती है पर पाक इसमें कश्मीरी नेताओं को शामिल करने की नीति से ही उनसे भारत और भारत के बाहर मिलते रहने की नीति पर ही चलता रहता है. मोदी सरकार के कड़े रुख के बाद अब विदेशों में भी इस तरह की मुलाकात करने पर इन कश्मीरी नेताओं की विदेश यात्राओं पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं क्योंकि इनके पाक से बात करने को वर्तमान सरकार शिमला समझौते का उल्लंघन ही मानती है और वह उसमें कोई ढील देने के मूड में भी नहीं दिखती है. भारत सरकार का एक और स्पष्ट सन्देश भी इससे सामने आया है कि आर्थिक और अन्य मुद्दों पर बातचीत तो संभव है पर कश्मीर पर किसी भी तीसरे पक्ष को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है. पिछले २५ वर्षों से सभी भारतीय सरकारों ने इस नीति पर चलते हुए कश्मीरी नेताओं को पाक उच्चायुक्त से बात करने को कोई ख़ास महत्व नहीं दिया था पर इस बार पूरा माहौल बदला हुआ है और पाक को भी यह स्पष्ट हो गया है कि अब या तो वह कश्मीरी नेताओं से बात कर सकता है या फिर भारत सरकार से.     
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