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शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक समिति विवाद कोर्ट में

                                                                                       पिछले महीने हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणा के सिखों की मांग पर प्रदेश के गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए अलग समिति बनाने के लिए कानून में किये गए संशोधन को लेकर सड़कों पर जारी संघर्ष अब सुप्रीम कोर्ट के पास पहुँच चुका है. इस मामले में हरियाणा सरकार के साथ जिस तरह से वहां के सिख नेता और आम सिख खड़े नज़र आ रहे हैं उससे यही लगता है कि आने वाले समय में इसके अस्तित्व में आने से कोई भी नहीं रोक सकता है. दरअसल यह पूरा मामला धार्मिक कम और राजनैतिक अधिक है क्योंकि अभी तक अविभाजित पंजाब के सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति अमृतसर द्वारा ही किया जाता रहा है जबकि कानूनी रूप से हरियाणा के बनाये जाते समय इस बात का उल्लेख किया गया था कि आने वाले समय में राज्य के स्तर पर इस तरह की कानूनी मान्यता मिलने के बाद अलग गुरुद्वारा प्रबंधक समिति बनायीं जा सकती है पर अभी तक इसके लिए हरियाणा के सिखों द्वारा कोई मांग नहीं उठाई गयी तो मामला सामने नहीं आ पाया था.
                                                              पिछले कुछ समय से हरियाणा में अलग गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी और हरियाणा के इस सिख समूह का मुख्य समिति पर यह आरोप है कि उन्हें यहाँ के गुरुद्वारों से लगभग १०० करोड़ रूपये मिलते हैं पर जब विकास कार्यों और अन्य सुविधाओं को बढ़ाये जाने की मांग की जाती है तो उस पर मुख्य समिति कोई त्वरित निर्णय नहीं लेती है जिससे राज्य में स्थित गुरुद्वारों के विकास में बाधा पड़ती है. वैसे कानूनी तौर पर यदि देखा जाये तो हरियाणा सरकार को इस तरह के कानून को बनाने का अधिकार प्राप्त है पर पंजाब में अकालियों के साथ सरकार में शामिल भाजपा की केंद्र सरकार भी इस मसले पर अकालियों का साथ देने का मन बनाये बैठी है. यदि राज्यों के स्तर पर गरुद्वारों के प्रबंधन की बात की जाती है तो उसमें कुछ भी बुरा नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया में सिखों का गुरुद्वारा प्रबंधन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन की सर्वश्रेष्ठ मिसाल है तो उनके विकेंद्रीकरण से कोई धार्मिक समस्या सामने नहीं आने वाली है.
                                                        इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कम से कम एक बात तो साफ़ हो गयी है कि जब तक कानून की वैधता पर निर्णय नहीं हो जाता है तब तक हरियाणा में इस तरह का अनावश्यक आपसी संघर्ष रोका जा सका है. नीतियों के बारे में चाहे जो भी फैसला कोर्ट की तरफ से किया जाये पर अब गुरुद्वारों पर कब्ज़े की लड़ाई कम से सड़कों पर नहीं दिखाई देने वाली है. कोर्ट का यह आदेश भी बहुत महत्वपूर्ण है कि हर परिस्थिति में कानून व्यवस्था को भी सुनिश्चित किया जाये क्योंकि अभी तक इस मसले पर काफी संघर्ष भी किया जा चुका है. इस मामले में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति को भी अपनी कार्यशैली पर पुनर्विचार करने की ज़रुरत की तरफ सोचने को मजबूर किया है क्योंकि अभी तक वह मनमाने तरीके से ही समितियों का सञ्चालन किया करती है और उसके प्रभावशाली सिख नेता अपने अनुसार ही सारे निर्णय लिया करते हैं. इस बहाने से कम से कम समिति को आत्ममंथन की ज़रुरत भी महसूस होगी और आशा है कि बिना किसी बड़े विवाद के मामले का हल निकल आएगा.       
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