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शनिवार, 1 नवंबर 2014

धार्मिक कार्यक्रम और गीत-संगीत

                                                                              मुंबई के जुहू बीच पर चल रहे छठ पूजा के कार्यक्रम में बुधवार को जिस तरह से मुंबई पुलिस ने मशहूर गायक सोनू निगम को कुर्बान फिल्म का एक गाना गाने से रोक दिया उसका कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि अधिकतर धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर इस तरह के लोकप्रिय गीत गाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से देश में बढ़ता ही जा रहा है. पुलिस का स्टेज पर जाकर गाने को बीच में रोकने के लिए कहना और साथ ही यह भी कहना कि यह धार्मिक कार्यक्रम है इसमें आप भजन या देशभक्ति के गीत ही गा सकते हैं कहीं न कहीं से सोनू की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला ही है क्योंकि आयोजकों ने उनसे जिस तरह का गीत गाने के लिए कहा होगा वे उसी तरह से कार्यक्रम को चला रहे होंगें. यदि पुलिस को गाने को रोकने के लिए जनता से कुछ आपत्तियां मिली थीं तो उसे इस मसले पर आयोजकों को सूचित करने चाहिए था जिसके बाद सोनू को शालीनता के साथ भी इस तरह के गाने गाने से रोका जा सकता था.
                                                               आज पूरे देश में धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर जिस तरह से अराजकता का बोलबाला बढ़ता जा रहा है उससे निपटने के लिए सरकार और आयोजकों के पास कोई रास्ता नहीं बचा है क्योंकि रात भर चलने वाले माता के जगराते हों या अन्य कोई कार्यक्रम उनमें जिस तरह से फ़िल्मी गीतों की पैरोडी पर धार्मिक गीतों को गाने का चलन बढ़ता जा रहा है उस पर रोक लगाने के लिए पुलिस की नहीं बल्कि आयोजकों की मानसिकता को सुधारने की आवश्यकता है. जब आयोजकों द्वारा इस बात का प्रचार किया जाता है कि किसी कार्यक्रम में कौन बड़ा गायक आ रहा है तो इसी बात पर कार्यक्रम की सफलता टिक जाती है तो इसमें धर्म का कोई स्वरुप बचता ही कहाँ है ? पुलिस को यदि इस तरह के मामले में कुछ भी आपत्तिजनक लगता है तो उसे इसके लिए गायक के स्थान पर आयोजकों के लिए पहले से ही स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर देने चाहिए जिससे आयोजक और आने वाले कलाकारों को यह स्पष्ट हो सके कि स्थिति क्या है.
                                                             यह बात बिलकुल सही है कि धार्मिक आयोजनों से इस तरह के गीत संगीत के कार्यक्रम को अलग ही रखना चाहिए पर इसी बहाने से स्थानीय नेता और सामाजिक संस्थाएं अपने कार्यक्रम को सफल बना कर अगले वर्ष के लिए आयोजकों का जुगाड़ किया करती हैं. जब यह विशुद्ध आर्थिक मामला है तो इसको धर्म से जोड़ने वालों के हितों को पुलिस द्वारा जांचा जाना चाहिए जिससे आने वाले समय में इस तरह की स्थिति न उत्पन्न होने पाये. धार्मिक कार्यक्रमों की गरिमा बनाये रखने की ज़िम्मेदारी पुलिस से अधिक आयोजकों पर होती है जिससे किसी भी तरह से इंकार नहीं किया जा सकता है. कलाकार पर इसी तरह की प्रस्तुति करने का दबाव होता है जिससे वह भीड़ को बांधकर रख सके. यदि पुलिस को यह लगता है कि धार्मिक कार्यक्रम में शालीनता होनी चाहिए तो उसे आने वाले वर्षों से इसके लिए एक स्पष्ट आचार संहिता के अनुपालन की शर्त भी आयोजकों के सामने रखनी चाहिए और इस तरह के अशालीन तरीके से कार्यक्रम को रोकने से बचना भी चाहिए.   
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