मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 2 नवंबर 2014

चीन की दस्तक लंका तक

                                                                           भारत सरकार द्वारा जिस तरह से चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाये जाने की एकतरफा कोशिशें की जा रही हैं उसी खबर के बीच चीन और भारत का लगभग हर क्षेत्र में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. अभी तक मुख्य रूप से चीन के साथ लगते लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में ही समस्या रहा करती थी पर भारत में सरकार बदलने के बाद से भी जिस तरह से चीन ने अपनी नीतियों में कोई परिवर्तन न करते हुए अपनी पुरानी स्थिति को ही आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है वह किसी भी दशा में भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए सही नहीं कहा जा सकता है. चीन ने भारत के हर विरोध को अनसुना करते हुए जिस तरह से श्रीलंका में अपनी आधुनिकतम दूसरी पनडुब्बी की तैनाती की है उसके बाद यही लगाने लगा है कि भारत के साथ उसका यह संघर्ष लम्बा खिंचने वाला है और आने वाले समय में इसमें कटुता बढ़ने की संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता है. चीन ने अपने राष्टपति के भारत दौरे के समय जिस तरह से चुमार और डैमचुक में घुसपैठ की वह उसकी मानसिकता को ही दर्शाता है.
                                                भारत के वियतनाम से बढ़ते हुए सम्बन्ध चीन को संप्रग सरकार के समय से रास नहीं आ रहे हैं जिससे अब भारत वियतनाम के साथ जिस तरह से चीनी क्षेत्र में दीर्घकालिक नीति के तहत अपनी व्यापारिक उपस्थिति बढ़ा रहा है चीन भी उतना ही श्रीलंका और बांग्लादेश के समुद्री क्षेत्रों तक पहुँचने की कोशिशें करने में लग चुका है. भारत को वियतनाम से विभिन्न समझौतों के माध्यम से व्यापारिक और लम्बे समय में सामरिक लाभ भी मिल सकते हैं पर आज जिस तरह से चीन भारत से बहुत आगे सोचते हुए हमारे बहुत पास तक दस्तक देने में लगा हुआ है उसके परिणामों से सचेत रहने की भी आवश्यकता है क्योंकि सैन्य क्षमता में आज के समय चीन हमसे बहुत आगे है और भारतीय रक्षा परिदृश्य भी चीन के मुकाबले बहुत सी अन्य बड़ी समस्याओं से घिरा हुआ लगता है यद्यपि देश में रक्षा उत्पादों को बढ़ाने और इस मामले में आत्मनिर्भर होने की कोशिशें भी लगातार ज़ारी हैं पर समस्या उतनी कम भी नहीं है.
                                              आज भारत के पास अपनी क्षमता दिखाने के स्थान पर कूटनैतिक स्तर पर प्रयास किये जाने की अधिक आवश्यकता है क्योंकि चीन की सोच पाकिस्तान जैसी नहीं है और वह हर मामले में हमसे आगे ही है तो उसके साथ पाक जैसी नीति के तहत आगे नहीं बढ़ा जा सकता है. भारत को अपनी आर्थिक बाज़ार मज़बूती के माध्यम से ही चीन को दबाना सीखना होगा क्योंकि पिछले कुछ दिनों में भारतीय पक्ष ने जितनी उग्रता भरे बयान चीन के सम्बन्ध में दिए हैं अब चीन श्रीलंका में अाकर भारत सरकार की इन नीतियों को खुलेआम चुनौती भी दे रहा है. भारत को शांतिपूर्वक अपने क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने की अपनी कोशिशों को जारी रखना चाहिए जिससे आने वाले समय में हमारा ढांचा सुदृढ़ होता रहे और उसको लेकर अनावश्यक बयानबाज़ी से भी बचा जाये. पूर्वोत्तर मामलों के मंत्री सिंह के साथ गृह राज्य मंत्री रिजूजू के बयानों के सन्दर्भ में यदि देखा जाये तो भारत के लिए अभी और भी बड़ी चुनौतियाँ सामने आने वाली हैं पर अपने को सामरिक रूप से मज़बूत किये बिना चीन के साथ इस तरह से आगे बढ़ना कितना कारगर या खतरनाक होगा यह तो समय ही बताएगा.      
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