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रविवार, 7 दिसंबर 2014

योजना आयोग का विकल्प

                                            १५ अगस्त लालकिले से की गयी अपनी घोषणा के सन्दर्भ में आज पीएम योजना आयोग के विकल्प के तौर पर काम करने वाली संस्था पर विचार करने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने जा रहे हैं. यह सही है कि अभी तक योजना आयोग अपने आप में राज्यों और केंद्र के बीच धन आवंटन का बहुत बड़ा साधन रहा है पर इसमें भी संभवतः उस तरह की गुंजाईश बची हुई थी कि जिसके माध्यम से सरकार पूरी व्यवस्था को एक बार फिर से दुरुस्त करने की तरफ बढ़ सकती है. देश में आज़ादी के बाद से अभी तक चल रहे योजना आयोग के बारे में सब कुछ ही गड़बड़ हो ऐसा भी नहीं है पर आज देश की आवश्यकताएं पहले के मुकाबले बहुत बदल गयी हैं और योजनगत मामलों में देश को एक बार फिर से नए सिरे से सोचने के लिए ही यह पूरी कवायद की जा रही है. इस मामले में केंद्र की तरफ से पहल की जा चुकी है और आने वाले समय में इसके नए स्वरूप के सामने आने की आशा भी है.  
                            जिस तरह से पिछले चुनाव के बाद से ही मोदी और अन्य राजनैतिक दलों के बीच कटुता का माहौल बना हुआ है उसे देखते हुए आज की बैठक महत्वपूर्ण होने वाली है क्योंकि केवल चुनावों के समय विरोधियों पर हमलावर रहने वाले मोदी भी राज्यों के प्रशासनिक मामलों में कोई दखल नहीं देते हैं जिससे आज की बैठक में माहौल के अच्छा रहने की आशा की जा सकती है.यूपी और बंगाल के मुख्यमंत्रियों की तरफ से जिस तरह के बयान आये हैं उससे लगता है कि इन राज्यों की तरफ से किसी भी सकारात्मक राजनीति और परिवर्तन का स्वागत ही किया जायेगा. इस प्रक्रिया में गैर भाजपाई राज्य तो अपनी बात मुखरता के साथ रख ही देंगें पर साथ ही भाजपा के मुख्यमंत्रियों को सम्मलेन में मोदी की छाया से बाहर आकर बात करने की ज़रुरत रहेगी क्योंकि लम्बे समय से सत्ता में बैठे हुए ये नेता भी अपने आप में बेहतर सोच के साथ अच्छे विकल्प पर चर्चा कर बैठक को सफल बनाने की तरफ बढ़ सकते हैं. अब यह सम्मलेन के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि इस मामले में सरकार की पहल को ये राज्य किस तरह से लेते हैं.
                            अभी तक आयोग के द्वारा जिस तरह से केंद्रीय राशियों का आवंटन किया जाता रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में राज्यों द्वारा अपने हिस्से में और भी अधिक बढ़ोत्तरी की मांग भी की जा सकती है. राज्यों को आबादी के अनुसार वित्तीय आवंटन होने से किसी को कोई दिक्कत नहीं है पर जब इस आवंटन का आज के समय में दुरूपयोग किया जाता है तो केंद्र या योजना आयोग के पास कोई ऐसा प्रावधान स्पष्ट रूप से नहीं है जिसके माध्यम से वह राज्यों को आर्थिक आधार पर दण्डित भी कर सके. देश के संसाधनों के बारे में किसी भी तरह की लापरवाही और बर्बादी के बारे में सचेत न रहने वाले राज्यों के लिए अब एक सबक भी तैयार होना चाहिए कि यदि उनके प्रदर्शन में आशातीत सुधार नहीं दिखाई देगा तो उनको मिलने वाली केंद्रीय सहायता पर पुनर्विचार और रोक लगाने के बारे में भी सोचा जा सकता है. केंद्रीय धन के आवंटन के बाद नयी बनने वाली संस्था के पास ऐसे अधिकार भी होने चाहिए कि वह राज्यों के सांसदों की एक समिति बनाकर अपने स्तर से आवंटित धन की देखरेख भी कर सके जिससे राज्यों की शिकायत को भी पूरी तरह से समझा और दूर किया जा सके.       
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