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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

राजमार्ग और टोल प्लाजा

                                             पिछले पंद्रह वर्षों में जिस तरह से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने देश के महत्वपूर्ण राजमार्गों की व्यवस्था सुधारने के लिए इस क्षेत्र में पीपीपी मॉडल को लागू किया और उसके माध्यम से जहाँ देश के राजमार्गों की दशा में बड़ा परिवर्तन आया वहीं हर थोड़ी दूर पर बनाये गए टोल प्लाजा के माध्यम से जिस तरह से सड़कों के यातायात में रुकावट आने लगी तो उससे भी नयी तरह की समस्याएं सामने आई हैं. अब इनसे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक प्रस्ताव के माध्यम से १२५ ऐसे प्लाजा हटाने का प्रस्ताव किया है जिससे इन मार्गों पर यातायात को सुचारू रूप से चलने में मदद मिल सके. इसके साथ ही सरकार उन प्रोजेक्ट्स को भी चिन्हित करवाने का प्रयास कर रही हैं जिनकी कॉस्ट रिकवरी हो चुकी है पर विभिन्न कारणों से अभी तक वहां के टोल प्लाजा हटाये नहीं गए हैं क्योंकि यह मुद्दा विशुद्ध रूप से प्रशासनिक है इसलिए इसके लिए उसी स्तर पर कड़े निर्णयों से परिस्थितियों को सुधारने का काम किया जाना वाला है. अपनी लगत को वसूल किये जाने के बाद भी बड़े पैमाने पर टोल प्लाजा काम करने में लगे हुए हैं जो कि पूरी तरह से अनुचित है.
                                    केंद्र सरकार को इस तरह के प्रयास में अपने संसाधनों के सही प्रयोग के बाद तय करने का पूरा अधिकार है कि किस मार्ग की लागत वसूली जा चुकी है या फिर उस पर कब तक इस तरह से टोल टैक्स लिया जा सकता है. अभी तक देश में सबसे बड़ी समस्या यही रहा करती है कि सड़क विकास और बेहतर परिवहन के लिए घोषित किये जाने वाले महत्वपूर्ण कामों में उसकी घोषणा और धरातल में उतरने पर बहुत अंतर होता है जिससे पूरे प्रोजेक्ट की कीमत भी बढ़ जाया करती है इस तरह की परिस्थिति में सरकार के पास इन योजनाओं पर उस तरह से नज़र रखने का कोई अन्य विकल्प अभी तक नहीं है जिसके माध्यम से वह इन पर पूरा नियंत्रण भी रख सके. बढ़ी हुई परियोजना लागत की इसी तरह से अवैध वसूली सदैव ही अधिकांश मार्गों पर प्रपत्रों में हेरफेर करके की जाती रहती है. किसी भी परियोजना को समय से पूरा करने के लिए अब राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच बेहतर समन्वय पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसके माध्यम से ही इनकी लागत और वसूली पर समुचित नियंत्रण रखा जा सकेगा.
                                  पिछले कुछ वर्षों से मालवाहक गाड़ियों के लिए ई टोल का सिस्टम शुरू किया जा रहा है इससे टोल प्लाजा पर एक अनुमान के अनुसार ८८,००० करोड़ रूपये के ईंधन की बर्बादी को रोकने में सहायता मिलने वाली है. इन सभी स्थानों पर किसी भी वाहन चालक को भी यह पता नहीं चल पाता है कि उसे कितनी देर में इससे निकल पाने में सफलता मिलेगी तो अधिकांश लोग अपनी गाड़ियों को चालू ही रखा करते हैं जिससे ईंधन की बड़े पैमाने पर बर्बादी होती रहती है. अब विकास के इस तरह के स्वरूपों को आवश्यकता के अनुरूप किये जाने के बारे में सोचना शुरू करने का समय आ गया है और अच्छी बात यह भी है कि अब मंत्रालय स्तर पर इस कोशिश को आगे बढ़ाया जा रहा है. महाराष्ट्र चूंकि मंत्री नितिन गडकरी का गृह राज्य भी है इसलिए वहां की अच्छी जानकारी होने के कारण ही वे इसकी शुरुवात दिल्ली मुंबई मार्ग से कर रहे हैं और आने वाले समय में इसे पूरे देश में लागू किये जाने की आशा बलवती होने लगी है. देश में विकास की रफ़्तार के साथ आर्थिक पहलू को ध्यान में रखने से जहाँ किसी भी तरह की बर्बादी को रोकने में सहायता मिलने वाली है वहीं आम लोगों को हर स्तर पर बेहतर यात्रा का आनंद भी मिलने वाला है.          
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