मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

रेल पटरी पर

                                                काफी लम्बे समय के बाद बिना किसी सहयोगी के दबाव में चलने वाली स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के रेल मंत्री किस तरह का परिणाम दे सकते हैं यह इस रेल बजट से स्पष्ट हो चुका है. कुछ बेहतर करने की कोशिश जिस तरह से कांग्रेस के पवन बंसल द्वारा भी की गयी थी यह उसका एक बड़ा स्वरुप ही है क्योंकि रेल को सुचारू ढंग से चलाने के लिए उसका आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है और यदि खुद रेलवे को हर बार अपने संसाधनों के लिए कुछ धनराशि लगातार चाहिए तो उसे अपने खर्चों को नियंत्रण में रखते हुए आमदनी को बढ़ाने के बारे में सोचना ही होगा. पता नहीं क्यों रेल बजट को नयी ट्रेन घोषित किये जाने जैसी घोषणाओं से ही मापा जाता है जबकि उसे उसकी क्षमता और उसके सही दोहन से ही आगे बढ़ाने की कोशिशों को ही प्राथमिकता में रखना चाहिए. जो भी अच्छे काम रेलवे द्वारा पिछले वर्षों में शुरू किये गए हैं उनसे सीखते हुए उनकी कमियों को दूर करते हुए ही इसे सही दिशा में आगे बढ़ाने की ठोस कल्पना की जा सकती है वर्ना किसी भी नेता द्वारा अपने राज्य के लिए किये जाने वाले प्रयासों से रेल का कभी भी भला नहीं हो सकता है.
                                    सबसे पहले नयी रेलगाड़ियों के बारे में एक स्पष्ट नीति की घोषणा होनी चाहिए जिससे किसी भी राज्य द्वारा अनावश्यक रूप से कुछ भी आशा न की जाये और जिन मार्गों पर रेलवे के पास लम्बी दूरियों की गाड़ियों में अधिक भीड़ रहा करती है उन मार्गों पर २०० से ४०० किमी तक फ़ास्ट पैसेंजर ट्रेनों को भी यात्रियों की सुविधानुसार चलाये जाने की तरफ सोचा जाना चाहिए जिससे इन लम्बी दूरी की गाड़ियों की कुशलता को बढ़ाया जा सके और उनके परिचालन को भी सही किया जा सके. आज बड़े शहरों के पास आने जाने वाली गाड़ियों में चेन खींचे जाने की समस्या आम है क्योंकि उनमें दैनिक यात्रियों के "गिरोह" यात्रा करते हैं और किसी भी श्रेणी में घुसकर वे समस्या को बढ़ाने का काम ही करते हैं. इस तरह की व्यापक समस्या को भविष्य में सुलझाने की तरफ रेलमंत्री का ध्यान अवश्य ही जायेगा ऐसी आशा की जा सकती है. सांसदों की निधि के द्वारा भी रेल के विकास को आगे बढ़ाने की योजना भी कारगर साबित हो सकती है क्योंकि इनसे कम से कम टिकट वितरण प्रणाली जैसे बड़े काम को आसानी से धन उपलब्ध हो सकता है और मार्ग विशेष पर सुविधाएँ बढ़ाने के लिए उस मार्ग के सभी सांसदों की निधि का हिस्सा लगाकर भी रेलवे के लिए कुछ सौ कररोड रूपये जुटाने की कोशिश बेहतर परिणाम दे सकती है.
                                  हर व्यक्ति के घर के सामने रेल नहीं चलायी जा सकती है इस बात को अब नेताओं और जनता को समझना ही होगा और यदि लम्बे समय भारतीय रेल को गतिमान रखना है तो इसके बड़े स्वरुप का सही तरीके से दोहन कर इसे पुनर्जीवन दिया जा सकता है. आमतौर पर रेलवे स्टेशन शहर के महत्वपूर्ण स्थानों में ही होते हैं यदि हर स्टेशन के बाहर और आसपास की अप्रयोज्य भूमि का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाये तो पूरे देश में एक समानांतर व्यवस्था हो सकती है साथ ही सीमेंट, लोहा आदि क्षेत्रों को बड़ा कारोबार भी मिल सकता है. रेलटेल के माध्यम से उच्च गति से काम करने वाले इंटरनेट कैफ़े की स्थापना हर स्टेशन पर की जा सकती है और साथ ही प्रायोगिक तौर पर किसी क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को देखते हुए ट्रेन के कोचों या पूरे रेलमार्ग पर भी उच्च गति की इंटरनेट सेवा मामूली शुल्क के साथ दी जा सकती है. रेलमंत्री इस बारे में आगे बढ़ रहे हैं यह दिखाई भी दे रहा है पर जब तक पूरी व्यवस्था को नीतिगत सुधार के माध्यम से पटरी पर लाने कोशिशें नहीं की जायेंगीं तब तक सारे प्रयास अधूरे ही रहने वाले हैं.          
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