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सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

नीति आयोग और सञ्चालन परिषद

                                                    नीति आयोग की सञ्चालन परिषद की पहली बैठक में जिस तरह से केंद्र ने इसे काम काज को लेकर एक नयी दिशा की तरफ राज्यों का ध्यान खींचा है और राज्यों को केंद्रीय सहायता के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए कहा है वह अपने आप में नीतिगत स्तर पर अच्छा लग सकता है पर इसे धरातल पर उतारने में देश को अभी बहुत लम्बा समय तय करना है. राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उन ६६ महत्वपूर्ण केंद्रीय योजनाओं के भविष्य के बारे में विचार करने के लिए एक उप समूह बनाया गया है जो इस बारे में अपनी राय नीति आयोग को देने वाला है और इसके अतिरिक्त जिन और उपसमूहों की बात की जा रही है वे मानव संसाधन और स्वच्छ भारत से जुडी हुई बातों पर विचार करने वाला है. इसके साथ ही राज्यों से गरीबी उन्मूलन और कृषि के लिए अपने स्तर से समूह बनाने के लिए भी कहा गया है जिससे देश की आर्थिक और सम्पूर्ण गति को तेज़ किया जा सके. इतने समूहों और समितियों के साथ काम करने वाले इस आयोग का स्वरुप क्या पिछ्ले१५ वर्षों में काम करने वाले मंत्रियों के समूहों से कुछ इतर होने वाला है जिनको मोदी सरकार ने समाप्त कर दिया है ?
                                इस आयोग की पहली बैठक में जिस तरह से भीड़ भरे माहौल में काम करने को प्राथमिकता दी जाने वाली है उसका कोई औचित्य नहीं है क्योंकि योजनाएं हर राज्य के अनुसार अलग अलग ही बनायीं जाने वाली हैं तो पुरानी प्रक्रिया की कमियों को दूर कर आगे बढ़ने के बारे में सोचा जाना चाहिए था जबकि उसके बाद केवल नए नाम से वही सारी कवायदें ही की जाने वाली हैं जिनसे कितनी तेज़ी से आगे बढ़ा जा सकेगा यह तो समय ही बताएगा क्योंकि पूरे देश से मुख्यमंत्रियों की राय कर उनके समूह से ४५ दिनों में एक राय ले पाना कठिन काम ही होने वाला है. इससे निपटने के लिए इस काम को ऑनलाइन कर दिया जाना चाहिए जिससे आम लोगों को भी सरकार के राज्य के बारे में केंद्र को की जाने वाली सिफारिशों और मांगों के बारे में पता चल सके तथा हर बार मुख्यमंत्रियों को दिल्ली बुलाये जाने और विमर्श करने की आवश्यकता से भी बचा जा सके. हर राज्य में अलग तरह की परिस्थितियां रहा करती हैं तो उस स्थिति में बार बार इनके नेताओं को दिल्ली बुलाने से विकास को किस तरह से तेज़ किया जा सकता है ? इसके स्थान पर दिल्ली में इन राज्यों के स्थायी प्रतिनिधियों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए जिससे राज्यों की सही आवश्यकता को समझा जा सके.
                                        इस बारे में केंद्र सरकार को राज्यों से अपने एक अधिकारी और मंत्री को नीति आयोग का स्थायी प्रतिनिधि बनाये जाने के लिए कहना चाहिए क्योंकि हर बार की बैठक में सभी मुख्यमंत्रियों का पहुंचना संभव नहीं लगता है तो उन राज्यों के बारे में नीतिगत फैसले लेने में समस्या भी हो सकती है. इस आयोग को आवश्यकतानुसार काम करने के स्थान पर शुरू के वर्षों में इस तरह के एक स्थायी ढांचे के अंतर्गत काम करने की छूट मिलनी चाहिए. इसके काम को ऑनलाइन करने से राज्यों के नेताओं की अनावश्यक दिल्ली दौड़ बच सकती है वहीं दूसरी तरफ कार्य कुशलता बढ़ाये जाने में मदद भी मिल सकती है राज्यों के साथ समन्वय यदि आयोग की पहली बैठक में आवश्यक लग रहा है तो इस समन्वय के लिए एक स्थायी ढांचा भी होना चाहिए जिससे इसकी हर बैठक में राज्यों की सही रिपोर्ट मिलती रही. किसी भी उपसमूह के लिए काम कर पाना इसलिए भी बहुत कठिन होने वाला है क्योंकि आज देेश के अधिकांश राज्यों के पास इस तरह से काम करने और समन्वय बढ़ाने के लिए कोई अनुभव नहीं है. भाजपा शासित राज्य पीएम की बात से सहमत नज़र आ सकते हैं वहीं अन्य दलों में उन मुद्दों पर मतभेद भी हो सकता है तो आयोग और उपसमूहों के लिए काम करना मुश्किल ही होने वाला है सम्भावना है कि आगामी कुछ महीनों में इन व्यावहारिक कठिनाइयों के चलते नीति आयोग को इस दिशा में कुछ सोचना पड़ेगा और उसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आयेंगें.    
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