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मंगलवार, 19 मई 2015

इस्लाम-जिहाद और आतंक

                                 सारी दुनिया में इस्लाम के नाम पर बने संभवतः पहले देश पाकिस्तान ने अपने धार्मिक आधार पर बंटवारे और जन्म की अवधारणा को उसी समय झुठला दिया था जब इस्लाम के नाम पर वह पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से बांग्लादेश को अपने से अलग होने से नहीं रोक पाया था. फिर भी भारत के साथ लगातार जिस तरह से पाक के नेताओं और सैन्य शासकों ने दोहरा रवैया अपनाये रखा है वह भी कहीं न कहीं से उसकी मानसिकता को ही प्रदर्शित किया करता है. आतंक के वैश्विक निर्यातक के रूप में इस्लाम के प्रचार प्रसार की भारत से शुरुवात करने की कोशिश में लगे रहने के बाद जिस तरह से पाक को कश्मीर में जिहाद के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भरपूर मदद मिलने लगी थी संभवतः उसके चलते ही उसने विश्व भर में जेहादी गतिविधियों को सहायता देना शुरू कर दिया था. इसी क्रम में पाक ने जहाँ अपने यहाँ हर तरह एक चरमपंथी गुटों को आगे बढ़ने में भरपूर मदद की आज वह उसके लिए खुद ही एक बड़ी समस्या बन चुके हैं क्योंकि वे पाक की किसी भी सरकार या सेना को नहीं मानते हैं और आज उनकी मज़बूती ही पाक के लिए अपने वजूद को बचाये रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है.
                                                        अभी तक भारत के खिलाफ कश्मीर से शुरू किये गए जिहाद से पूरे पाकिस्तान की सेहत पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा करता था बस कश्मीर उनके लिए एक भावनात्मक मुद्दा ही अधिक रहा है जिसके कारण लाहौर से करांची तक आतंकी और चरमपंथियों ने मदरसों और मस्जिदों का खुले पैमाने पर दुरूपयोग किया है. आज जब इस्लाम के इस चेहरे से इस्लाम के मानने वाले पूरी दुनिया में संदेह की दृष्टि से देखे जाने लगे हैं और उनका विकास एक तरह से रुक ही गया है. इस स्थिति को देखते हुए पाक स्थिति इस्लाम के विभिन्न फिरकों के लगभग २०० धर्म गुरुओं द्वारा सामूहिक रूप से यह फतवा जारी कर कहा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, अलकायदा, आईएस, बोको हरम, अल शबाब और इस तरह के अन्य जिहादी संगठनों की विचारधारा गुमराह करने वाली है, उनके काम गैर इस्लामी हैं और सोच इस्लाम के कम ज्ञान पर आधारित है। इन संगठनों की जिहाद की अवधारणा इस्लामी शर्तों के खिलाफ है और जातीय नरसंहार में शामिल तत्व 'फसाद' (हिंसा) के दोषी हैं, क्योंकि इस्लाम जाति या धर्म के नाम पर कत्लेआम की इजाजत नहीं देता। इस तरह के विद्रोहियों को कुचलना इस्लामी सरकारों की जिम्मेदारी है। फतवे में यह भी ऐलान किया गया कि पोलियोरोधी अभियान का विरोध करने वाले लोग और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की हत्या करने वाले 'सबसे बड़े अपराधी' हैं। फतवे में यह भी कहा गया कि गैर मुसलमानों के धर्म स्थलों पर हमला करना सबसे बड़ा पाप और जघन्य अपराध है, जबकि गैर मुसलमानों की रक्षा करना किसी भी इस्लामी देश के लिए अनिवार्य है।
                                 अच्छा ही है कि पहली बार पाकिस्तान जैसे इस्लामी देश से इस तरह के स्वर सुनाई दे रहे हैं और इस बारे में जिस तरह से बातें की गयी हैं यदि उन पर लेशमात्र भी अमल किया जा सके तो आने वाले दिनों में धर्म के नाम पर चल रही यह मार-काट काफी हद तक बंद भी हो सकती है. फतवे में जिस तरह से इस्लामी देशों की सरकारों से इस तरह के संगठनों को कुचलने के लिए कहा गया है वह भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि इस तरह की कोई भी कोशिश गैर इस्लामी सरकारों द्वारा की जाएगी तो ये चरमपंथी इसे सीधे इस्लाम पर हमला बताने से नहीं चूकने वाले हैं और उस समय स्थिति फिर से आतंकियों के अनुसार ही ढल सकती है. पश्चिमी दुनिया के देशों को इस तरह की भावना को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए और चरमपंथियों को खुद ही सबक सिखाने के स्थान पर इस तरह से संकट ग्रस्त देशों की सेनाओं को उचित ट्रेनिंग आदि की व्यवस्था करने के बारे में सोचना चाहिए. जिस तरह से अफगानिस्तान और इराक में वहां की सेनाओं और पुलिस को दोबारा खड़ा किया है आज उसे मज़बूत किये जाने की आवश्यकता भी है. फतवे में जो कुछ भी कहा गया है वह इस्लाम के अनुसार सही है फिर इन आतंकी संगठनों ने इस्लाम की आज कौन सी परिभाषा पर काम करना शुरू कर दिया है इसके बारे में इन मौलानाओं को ही आगे बढ़कर आम लोगों को समझाना होगा जिससे इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया में खून खराबा रोका जा सके. इस फतवे के अनुसार तो कश्मीर में जो कुछ भी इन लोगों ने किया वह सब इस्लाम के खिलाफ ही था पर आज भी संभवतः पाक के लोगों की अपनी मजबूरी के चलते किसी कश्मीर आतंकी संगठन का नाम इस फतवे में नहीं शामिल किया जा सका है ? 
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