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शुक्रवार, 12 जून 2015

बीएसएनएल - फ्री रोमिंग और ट्राई

                                          केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने देश में सार्वजनिक क्षेत्र की दूर संचार कम्पनियों की तरफ से १५ जून १५ से फ्री इनकमिंग रोमिंग का जिस तरह से एलान किया गया था था उसके बाद यह लग रहा था कि आने वाले समय में देश को रोमिंग मुक्त करने की यह एक बेहतर शुरुवात हो सकती है पर निजी दूरसंचार कम्पनियों द्वारा ट्राई के मध्यम से जिस तरह से बीएसएनएल/ एमटीएनएल की इस कोशिश को रोकने की घटिया कोशिश की जा रही है वह अपने आप में कानून के दुरूपयोग का बहुत ही बुरा उदाहरण है. केंद्र सरकार पिछले कई वर्षों से देश में रोमिंग ख़त्म कर एक देश एक नंबर की योजना पर काम करने के बारे में सोच रही है और इस बारे में पिछली और वर्तमान सरकार की मंशा एकदम स्पष्ट है पर ट्राई जिसका गठन ही देश में दूरसंचार कम्पनियों पर नज़र रखने के लिए किया गया था उसकी तरफ से कई बार ऐसे निर्णय भी लिए जाते रहे हैं जो कहीं से भी उपभोक्ताओं के हित में नहीं दिखाई देते हैं तो इस आयोग के गठन और इसकी कार्यप्रणाली पर संदेह होने लगता है.
                    पहले भी कई बार बीएसएनएल की तरफ से उपभोक्ताओं के लिए लायी गयी किसी भी अच्छी योजना में निजी क्षेत्र की कंपनियां टांग अडाती रही हैं और सरकार तथा संचार निगम चाहकर भी इसके लिए कुछ नहीं कर पाते हैं. क्या ऐसे नियामक आयोग कि देश को आवश्यकता भी है जो कहीं से भी आम उपभोक्ताओं के हितों की व्यापक तौर पर रक्षा न कर पा रहा हो ? बेशक ट्राई के पास इस तरह की शिकायतें आती ही रहती हैं पर हमेशा सार्वजनिक क्षेत्र के लिए ही रास्ता रोकने के कामों में उसका दुरूपयोग क्यों किया जाये यह भी सोचने की बात है क्योंकि एक समय जब देश की संचार सेवाओं पर निगम का पूरा आधिपत्य था तो उसके हितों पर ट्राई के माध्यम से कानून के पीछे छिपकर निजी कम्पनियों ने बहुत हमले किये और आज निगम की इस हालत के लिए कहीं न कहीं से ट्राई भी ज़िम्मेदार है. जहाँ निजी कंपनियां केवल लाभकारी शहरी क्षेत्रों में ही अपनी सेवाएं देने के बारे में सोचती हैं वहीँ निगम को देश की सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी होने के कारण सरकार की मंशा के अनुरूप बहुत सारे घाटे वाले काम भी करने पड़ते हैं इस परिस्थिति में निगम के पास अपने वित्तीय स्वरुप को सँभालने के अवसर भी कम हो जाते हैं.
                          सरकार की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद अब बीएसएनएल को अपनी इस योजना को आगे बढ़ाना चाहिए साथ ही देश भर में फैले अपने लैंडलाइन कारोबार को भी तेज़ी से आगे बढ़ाने और फिर से उपयोगी बनाने के बारे में आक्रामक नीति पर काम करना चाहिए. आज भी पूरे देश में पहुँच रखने वाली वह एकमात्र कम्पनी ही है और यदि मौजूदा नेटवर्क को सुधारते हुए ब्रॉडबैंड तथा कॉल दरों को और भी आक्रामक बनाये जाने की तरफ थोड़ा भी ध्यान दे दिया जाये तो निगम अपने आपको इस दौड़ में फिर से शामिल कर सकता है. निगम की सेवाओं पर सदैव यही आरोप लगता है कि उसके मोबाइल सिग्नल कमज़ोर रहा करते हैं तो उस बारे में भी ट्राई को देखना चाहिए कि एक जैसी क्षमता के बीटीएस लगे होने के बाद क्या निजी क्षेत्र अपने सिग्नल्स को स्वीकृत मानकों से अधिक क्षमता पर तो नहीं चलाते हैं क्योंकि इससे आमलोगों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं भी खड़ी हो सकती हैं. खुद बीएसएनएल को भी अपने में सुधार करते हुए बेहतर सेवाओं के बारे में सोचना चाहिए और आईटीएस अधिकारी जो दूरसंचार विभाग से प्रतिनियुक्ति पर निगम में काम कर रहे हैं उनके विकल्पों को भी सीमित किये जाने की आवश्यकता भी है जिससे वे निगम को अपना कर्म क्षेत्र मान सकें.    
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