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शनिवार, 13 जून 2015

डॉक्टर - पर्चे और जेनेरिक दवाएं

                                                     केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से एक बार एक अच्छी पहल की जा रही है जिसमें डॉक्टर्स के लिए एक अधिसूचना जारी की जाने वाली है उसके तहत पर्चे पर कैपिटल लेटर्स में साफ़ साफ़ दवाएं लिखने के साथ ही उसके जेनेरिक नाम का उल्लेख करना भी आवश्यक कर दिया जायेगा. आज जिस तरह से दवा कम्पनियों और डॉक्टर्स के बीच एक खतरनाक गठजोड़ पनप चुका है उसको देखते यदि ऐसा कोई प्रयोग सफल रहता है तो आने वाले समय में मरीज़ों को बहुत आसानी हो सकती है पर मेडिकल एथिक्स के नाम पर पूरी पोथियाँ पढने के बाद भी अगर सरकार को इस तरह की बातें डॉक्टर्स पर थोपने को मजबूर होना पड़ रहा है तो यह अवश्य ही चिंता का विषय है क्योंकि डॉक्टर को आज भी समाज में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. यदि सरकार इस तरह की बातों को लागू करने के बारे में आगे बढ़ रही है तो निश्चित तौर पर यह चिकित्सा जगत के लिए आत्म चिंतन का समय है जिसमें रोगियों को हर स्तर पर किसी न किसी तरह से अधिक पैसे खर्च करने के लिए मजबूर किया जाता है और उसके पास संभवतः कोई अन्य विकल्प भी नहीं होता है.
                                   यह अपने आप में बिलकुल सही कदम है कि डॉक्टर्स को साफ़ अक्षरों में दवाएं लिखने के लिए निर्देशित किया जाये क्योंकि आज जिस तरह से हर डॉक्टर के पास एक मेडिकल स्ट्रोर है जहाँ पर वह अपने जुगाड़ वाली दवाएं ही रखना और बेचना चाहते हैं तो उन पर कड़ी लगाम लगाया जाना आवश्यक है क्योंकि वे दवाओं एक नाम इस तरह से लिख देते हैं कि उनके मेडिकल स्टोर के अतिरिक्त किसी और के लिए उसे पढ़ पाना असंभव सा ही होता. इस क्षेत्र में यदि किसी भी तरह से सुधार किया जा सके तो यह आम जनता के लिए बहुत ही लाभकारी कदम साबित हो सकता है पर यदि कोई अपनी राइटिंग ख़राब होने का बहाना लगाकर इसी तरह से लिखता रहे तो उस पर क्या कोई कार्यवाही संभव हो पायेगी क्योंकि आज अधिकांश डॉक्टर्स की राइटिंग ऐसी हो चुकी है जिसे पढ़ पाना सबके वश की बात नहीं है. इस मामले में सुधार दोनों तरफ से अपेक्षित है क्योंकि जब तक खुद अपने से बदलाव आने के बारे में डॉक्टर्स नहीं सोचेंगें तब तक उन पर किस तरह से यह नियम लागू किया जा सकता है इसलिए मामला कानूनी से स्वतः सुधार करने का अधिक बन चुका है पहले भी कई बार डॉक्टर्स को लेकर सरकार कई निर्देश जारी कर चुकी है पर अब तक उनका कोई व्यापक असर कहीं भी नहीं दिखाई देता है.
                                 जेनेरिक दवाओं के उपयोग से निश्चित तौर पर आम रोगियों को बहुत लाभ हो सकता है पर हमारे देश में जिस तरह किसी भी क्षेत्र में गुणवत्ता पर नियंत्रण की कोई मज़बूत व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है तो उस स्थिति में सरकार जेनेरिक दावों का मानकीकरण किस तरह से कर पायेगी ? जब तक जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है तब तक यदि डॉक्टर्स द्वारा यह दवाएं लिखी भी जाती हैं तो आने वाले समय में रोगियों को कैसी दवाएं मिल पा रही हैं इस बात का भी सही तरह से पता नहीं चल पायेगा और रोगियों को सही दवाएं उपलब्ध कराने का सपना फिर से अधूरा ही रह जाने वाला है. सबसे पहले केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर इन दवाओं की गुणवत्ता नियमित और औचक रूप से करने के तंत्र को विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि केवल जेनेरिक नाम लिखने से असली या नकली दवाओं के बारे में आम लोग कैसे जान पायेंगें ? निश्चित तौर पर इस काम को करने में केंद्र सरकार की मंशा अच्छी ही है पर बिना तैयारियों के इस तरह एक आदेश धरातल पर कितना असर डाल पायेंगें यह चिंता का विषय है यह काम केवल उपलब्धि गिनाने के स्थान पर ठोस कार्य योजना के साथ भले ही कुछ समय लेकर लागू किया जाये तभी इसका वास्तविक लाभ आम जनता तक पहुँच सकता है.           
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