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रविवार, 14 जून 2015

यूपी-अखिलेश और सपा नेता

                                           देश में सत्ता मिलने पर यदि कानून की धज्जियाँ उड़ाने वाले नेताओं की कोई सूची बनायीं जाए तो उसमें संभवतः यूपी में सत्ताधारी सपा के सामने कोई भी अन्य दल टिक नहीं सकता है क्योंकि ज़मीनी संघर्ष के बाद जिस तरह से मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी को खड़ा किया था उसमें समाज के वे तत्व भी अनायास ही कहीं न कहीं से शुरुवात से शामिल रहे हैं जो सत्ता को अपनी मनमानी करने का एक साधन मात्र ही समझा करते हैं. २०१२ में बसपा से सत्ता छीन कर एक बार फिर से जब सपा की सरकार बनी थी तो खुद मुलायम की जगह अखिलेश के सीएम बनने से यह आशा जगी थी कि उनके युवा होने से इस बार सरकार काफी कुछ अलग हो सकती है पर पार्टी के अध्यक्ष मुलायम ने जितनी आसानी से सत्ता अपने बेटे को सौंप दी उनके वरिष्ठ सहयोगी सत्ता के उस सुख से अपने को दूर रख पाने में पूरी तरह से विफल ही रहे जिसका असर सरकार पर लगातार पड़ता हुआ दिखाई भी दे रहा है. अपने पिता के उम्र के सहयोगियों के सामने अपने मन के निर्णय ले पाने में शुरू में तो अखिलेश पूरी तरह से विफल ही रहे पर अब जब उन्होंने विकास की पटरी पर प्रदेश को तेज़ी से आगे बढ़ाने की कोशिशें शुरू की हैं तो भी उनके कुछ सहयोगी उनकी राह रोकने में लगे हुए हैं.
                                                ताज़ा प्रकरण में यूपी के दो मंत्रियों की दबंगई के बारे में जिस तरह से मामले सामने आये हैं उसके बाद अखिलेश एक बार फिर से दबाव में हैं और संभवतः सरकार में मुलायम के दखल के चलते वे अपने दम पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने की स्थिति में भी नहीं हैं. इस समय मंत्रियों से जुड़े इन प्रकरणों पर जिस तरह से अखिलेश अनिर्णय के शिकार हैं उससे यही लग रहा है कि उनके पास सत्ता तो है पर वे खुद अपने दम पर मंत्रियों के बारे में निर्णय नहीं ले सकते हैं ? मुलायम सिंह को भी यह बात समझनी होगी कि यदि उन्हें अखिलेश को सत्ता चलने की खुली छूट नहीं देनी हा तो इस तरह के किसी भी प्रयास का कोई मतलब नहीं होता है क्योंकि २०१७ के चुनावों के लिए अगले वर्ष से माहौल बनना या बिगड़ना शुरू होने वाला है और इस तरह के हाथ बंधे हुए सीएम की छवि सपा की सत्ता की राजनैतिक पारी को बीच में रोक सकती है. केंद्र में भाजपा सरकार होने के कारण और प्रदेश में राम नाइक जैसे अनुभवी वरिष्ठ भाजपाई के राज्यपाल होते हुए सीम को अपनी छवि के बारे में बहुत ही सचेत रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि राजभवन की सक्रियता पर बात करने वाली भाजपा आज खुद राज्यपालों का उसी तरह इस्तेमाल कर रही हैं जैसा करने के लिए वह कांग्रेस पर आरोप लगाया करती थी.
                                        निश्चित तौर पर वर्षों से लंबित कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को लेकर अखिलेश अब बहुत गंभीर दिखाई देते हैं और उनकी तरफ से प्रदेश के आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए बहुत बड़े निर्णय भी लिए गए हैं पर इन निर्णयों में सत्ताधारी दल सपा के नेताओं द्वारा जिस तरह से मनमानी की जा रही है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है वह जनता की नज़रों से छिपा भी नहीं है तो इस स्थिति में अखिलेश द्वारा किये गए ये प्रयास यदि भ्रष्टाचार का उदाहरण बनने लगे तो सपा के लिए आने वाले समय में उन वोटों पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जायेगा जो बसपा की तानाशाह सरकार के चलते उसको मिल गए थे. नेताओं से पार्टियां और सरकारें बनती हैं पर जब नेता सरकार और पार्टी के लिये बोझ साबित होने लगें तो समय रहते उनसे पीछा छुड़ाना ही अपनी छवि को बनाये रखने के लिए सही कदम हो सकता है. किसी भी मंत्री पर आरोप लगने के बाद उनसे मंत्रिपद वापस ले लिया जाना चाहिए और जांच पूरी होने तक उनकी मामले में दखलंदाज़ी को रोकने के पूरे प्रयास भी किये जाने चाहिए जिससे जनता में यह सन्देश भी जा सके कि सरकार दोषियों को बचाने में नहीं लगी हुई है इस तरह के प्रयास से जहाँ कानून व्यवस्था को सुधारने में मदद मिलेगी वहीं निरंकुश होते नेताओं पर भी लगाम लगायी जा सकेगी पर दुर्भाग्य से अखिलेश सरकार की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं किया जा रहा है.    
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