मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 11 जून 2015

सुरक्षा मामले और गोपनीयता

                                                          महत्वपूर्ण और सामरिक मामलों में जिस स्तर की संवेदनशीलता और गोपनीयता का परिचय ज़िम्मेदार लोगों को देना चाहिए मोदी सरकार उसमें पूरी तरह से विफल रही है. भारत-म्यांमार सीमा या सीमा पार हुए भारतीय सेना के इस अभियान पर देश में जिस तरह से बयानबाज़ी की गयी उसके बाद म्यांमार के राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से आया बयान भारतीय नेताओं को असहज स्थिति में डालने के लिए काफी है. सेना के बयान में जिस तरह से इस बात को बताते समय पूरी तरह से मामले की संवेदनशीलता का ध्यान रखा गया था वहीं नेताओं ने इस मुद्दे पर छिछली राजनीति करने की शुरुवात कर दी जिसमें पूर्व सैन्य अधिकारी और अब केंद्रीय राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने अपने हर बयान में बढ़-चढ़ कर बातें की जिसका असर यह हुआ है कि म्यांमार ने भारतीय नेताओं को आइना दिखाने की पहल कर दी है. म्यांमार भी भारत की तरह संप्रभु देश है भले ही वहां पर तानाशाही है पर उसका मतलब यह तो नहीं निकाला जा सकता है कि भारतीय सेना ने उसके क्षेत्र का उल्लंघन किया और वह कुछ भी नहीं कर सका ? म्यांमार से १९९५ में ही एक समझौता हो चुका है जिसमें यह स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि भारत विरोधी किसी भी आतंकी समूह को वहां पर पनपने नहीं दिया जायेगा और इसी क्रम में सेना इस तरह के कई सफल ऑपरेशन पहले भी चला चुकी है.
                                      इस घटना के बाद जिस तरह से केंद्र सरकार के ज़िम्मेदार लोगों ने इसे केवल राजनैतिक कारणों से ही परोक्ष रूप से पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी के रूप में बताना शुरू कर दिया उसके बाद इस मामले में पाकिस्तान ने भी अपनी टांग अड़ा दी है और भारत को एक तरह से अपने स्तर पर सचेत भी कर दिया है. देश की राजनीति में थोड़े से लाभ के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गए किसी बेहतर कूटनीतिक प्रयास को किस तरह से बर्बाद किया जा सकता है यह इसका एक उदहारण मात्र है जबकि सैन्य सहयोग को लम्बे समय तक बनाये रखने के लिए कई बार इस तरह के अभियानों की सफलता पर भी कुछ खास बात नहीं की जाती है क्योंकि उसके दूरगामी परिणाम भी हुआ करते हैं. जिन जवानों ने इस अभियान में हिस्सा लिया उनकी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर आई हुई है आखिर सेना के इस गोपनीय अभियान की तस्वीर किस तरह से सार्वजनिक हुई इस पर सरकार कुछ सोचना चाहेगी ? जिन लोगों ने अभियान में हिस्सा लिया तो उनके बारे में ऐसी सार्वजनिक चर्चा और प्रदर्शन आखिर उनके लिए किस तरह का समर्थन कहा जा सकता है जिसमें उनके लिए खतरों को बढ़ाया ही जा रहा है पर संभवतः अपने कुछ राजनैतिक लाभ के लिए सरकार के पास इन जवानों के लिए सोचने का मौका ही नहीं है.
                                 भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में गिनी जाती है क्योंकि उसके मानवीय चेहरे की कदर आज पूरी दुनिया करती है तथा संयुक्त राष्ट्र द्वारा चलाये जाने वाले किसी भी शांति सेना के अभियान में भारतीय सेना की उपस्थिति ही लोगों के लिए संजीवनी का काम करती है क्योंकि उन्हें लगता है कि इस सेना के मानवीय पहलुओं को समझने से उनकी दिक्कतें वास्तव में ही कम होने वाली हैं. इस मामले में सेना के शीर्ष अधिकारी की तरफ से जो बयान दे दिया गया था उसके बाद केवल सेना की तारीफ करते हुए अन्य बातों को इससे क्या अलग रखने की आवश्यकता नहीं थी ? म्यांमार ने जिस तरह से भारतीय पक्ष के इस दावे का खंडन कर दिया है तो इससे क्या एक बेहतर और सटीक सामरिक प्रयास खोखली राजनीति में नहीं उलझ गया है और क्या आने वाले समय में म्यांमार की तरफ से इस तरह के अभियानों को चलाने के लिए उतनी छूट दी जाएगी जितनी अभी तक मिलती रही है ? यह सब कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर नेताओं को चुप रहकर केवल सैन्य स्तर पर ही निपटना चाहिए क्योंकि जब तक इस तरह के सहयोग को दोनों पक्षों की तरफ से संयमित रूप से नहीं किया जायेगा तब तक सेना के लिए सही माहौल बनाया जाना संभव नहीं हो सकता है.  
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