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रविवार, 5 जुलाई 2015

सोशल मीडिया कितना एंटी-सोशल ?

                                                                       यूपी के मुरादाबाद में एक बार फिर से व्हाट्सएप पर साझा किये गए एक आपत्तिजनक फोटो के कारण माहौल ख़राब होने की ख़बरें सामने आई हैं जिनका कोई मतलब नहीं है क्योंकि सोशल मीडिया के इस स्वरुप के बारे में विचार करते समय किसी के पास भी पहले से करने के लिए कुछ भी नहीं होता है. यह केवल इसे इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति पर ही निर्भर करता है कि वह इसे किस तरह से सदुपयोग या दुरूपयोग की श्रेणी में ले जाना चाहता है. इंटरनेट की तेज़ी से बढ़ती पहुँच और स्मार्ट फ़ोन के आम लोगों के बजट में आ जाने के बाद जिस तरह से एक तरफ जहाँ लोगों का जुड़ाव अच्छा हुआ है वहीं दूसरी तरफ इसके गलत इस्तेमाल की संभावनाएं भी बहुत बढ़ गयी हैं. इस स्थिति में क्या इसके द्वारा धार्मिक और सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की किसी भी कोशिश की दशा में पुलिस और प्रशासन के पास कितने विकल्प शेष रह जाते हैं जिन पर चलकर वह आम लोगों को इस तरह की शेयरिंग के खतरे बताने के बारे में जागरूक कर सके ? हर सुविधा का उपयोग और दुरूपयोग भी किया जा सकता है और जब तक हम इस तरह के किसी भी माध्यम का सही उपयोग करना नहीं सीखेंगें तब तक समस्याएं सामने आती रह सकती हैं.
                                             यहाँ पर सब बड़ी विचारणीय बात यह ही है कि क्या इस तरह के भेदभाव या वैमनस्य फ़ैलाने वाले संदेशों के खतरों के बारे में आम लोग जानते भी हैं या फिर उन्हें यही लगता है कि कहीं से भी आया हुआ यह सन्देश उन्हें भी उसी तरह से आगे भेज ही देना चाहिए ? यह हमारी उस वैचारिक श्रेणी का ही प्रदर्शन करता है जिसमें कुछ लोगों के मन में कुंठा होती है जिसे दिखाने के लिए ही वे इस तरह के संदेशों को आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं क्या हमारी परवरिश इतनी कमज़ोर है कि हम यह भी नहीं समझ पाते हैं कि इस तरह के सन्देश किस तरह से समाज में आग लगाने का काम किया करते हैं ? आखिर वे कौन से तत्व हैं जो आम भारतीय जनमानस में इतनी गहराई तक पैठ बनाये हुए हैं जिनसे आगे निकलना समाज के लिए मुश्किल होता जा रहा है और रोज़ ही कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें सामने आती ही रहती हैं जिनमें सोशल मीडिया का खुले रूप में दुरूपयोग किया गया होता है. इस तरह की किसी भी स्थिति के हद से आगे बढ़ने पर सरकार द्वारा इनके नियंत्रण पर भी विचार किया जा सकता है जो कि एक तरह से व्यक्तिगत आज़ादी का उललंघन ही होगा पर इस आज़ादी को हम खुद ही अपने स्तर से खोने के लिए तत्पर भी दिखाई दे रहे हैं.
                                     अब देश में कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें समन आने के बाद सरकार के पास क्या विकल्प शेष बचते हैं जिन पर वह विचार कर इस समस्या से निपट सकती है क्योंकि यह आने वाले समय में एक बहुत ही घातक हथियार के रूप में इस्तेमाल भी किया जा सकता है. सबसे पहले केंद्र सरकार की तरफ से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में ही लोगों को सोशल मीडिया के दुरूपयोग से होने वाले संभावित खतरों के बारे में बताया जाना चाहिए और इसे राज्यों की पुलिस के साथ मिलकर जिले स्तर पर भी पुलिस को जोड़ना चाहिए जिससे सभी संदिग्ध गतिविधियों और संदेशों पर लोग स्वेच्छा से पुलिस को सूचित करने के बारे में भी सोच सकें. पहली बार इस तरह के किसी भी शिकायत को लेकर जिस स्तर पर पुलिस को काम करना चाहिए अभी उसकी भी देश भर में कमी दिखाई देती है बेहतर हो कि हर जिले में पुलिस नियंत्रण कक्ष का एक व्हाट्सएप नम्बर भी हो जिससे कोई भी जागरूक नागरिक माहौल बिगड़ने से पहले ही ऐसे सन्देश सामने आते ही सही जगह तक सूचना पहुंचा सके. देश के ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते पुलिस से पहले हम सब की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि हम लोग अपने स्तर पर ज़िम्मेदारी रहें और अपने शहरों के माहौल को सही रखने में प्रशासन की मदद भी करें.   
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