मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

व्यापम की व्यापकता और जाँच

                                          मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल के बारे में जिस तरह से रोज ही नयी ख़बरें सामने आती जा रही हैं और इस घोटाले से संदिग्ध रूप से जुड़े हुए लोगों की जिस तरह से लगातार मौतें होती जा रही हैं उन्हें सामान्य भी नहीं कहा जा सकता है. आज मप्र में कुछ इस तरह का माहौल बन गया है कि किसी भी संदिग्ध मौत के बाद उसके व्यापम घोटाले से तार जोड़ने की कोशिशें भी की जाती हैं क्योंकि यह घोटाला अपने आप में बहुत बड़ा साबित होने जा रहा है. मप्र सरकार और भाजपा के अधिकांश लोग जिस तरह से जाँच से संतुष्ट होने की बात कर रहे हैं उसमें ही विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं जिन लोगों ने मप्र में सरकार कोई वास्ता रखा है वे आज इस बात से चिंतित नज़र आने लगे हैं कि कल कहीं से उन पर भी इस घोटाले की कालिख न लग जाये और इस बात की आशंका खुद उमा भारती की तरफ से जताई जा चुकी है. अब चूंकि उमा को मप्र की राजनीति से हटाकर दिल्ली भेजने में शिवराज का बहुत हाथ रहा है तो उनकी तरफ से कोई सद्भावना दिखाए जाने का प्रश्न भी नहीं उठता है.
                             इस तरह के मामलों में राज्य सरकारें किस तरह से बर्ताव करती हैं यह किसी से भी छिपा नहीं है क्योंकि जहाँ सत्ताधारी दल अपनी जाँच एजेंसियों पर ही भरोसा करने की बात किया करते हैं वहीं विपक्षी ऐसे मामलों में सीबीआई जाँच की मांग किया करते हैं. अभी तक इस तरह के किसी भी मामले में आखिर यह निर्णय किस तरह से किन मानकों पर लिया जाये कि सरकार पर सही जाँच न करने के आरोप लगने बंद हो जाएँ यह कोई नहीं जानता है फिर भी कई बार राज्य सरकारें भी इस तरह के मामलों में अनावश्यक रूप से जाँच की मांगों को नज़रअंदाज़ किया करती हैं. यह सही है कि हर राज्य के पास इतने संसाधन नहीं हैं जितने सीबीआई के पास होते हैं तो क्या अब पूरे देश में सीबीआई की तर्ज़ पर ही जांचों को करवाने की कोशिशों के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि लगभग हर राज्य में किसी न किसी मामले में विपक्षी दलों के नेता इसी तरह से सीबीआई की जाँच करवाने की मांग करते रहते हैं और अधिकांश मामलों में सरकारें उनकी बातों को अनसुना ही करती रहती हैं. व्यापम में तो जाँचें कोर्ट की निगरानी में चल रही हैं तो राज्य सरकार के लिए सीबीआई जाँच करवाने का निर्णय लेना उतना आसान भी नहीं है.
                              जब सुरक्षा, विकास और अन्य बहुत सारे मसलों पर राज्य और केंद्र सहयोग की रणनीति बना सकते हैं तो क्या यह संभव नहीं है कि किसी भी जांच को करने के लिए एक केंद्रीकृत व्यवस्था होनी चाहिए जिस पर सभी राज्य सहमत हो जाएँ. देश के व्यापक स्वरुप को देखते हुए सभी जाँचें सीबीआई से करवाना संभव भी नहीं ही तो उस स्थिति में सीबीआई के काम करने के तरीके पर ही सभी राज्यों की जाँच एजेंसियों को तैयार किया जाना चाहिए जिससे यदि किसी भी समय सीबीआई द्वारा जांच करने की स्थिति सामने आये तो वे सभी सबूत राज्य की एजेंसी के पास पहले से मौजूद हों जो अभी राज्यों की एजेंसियों द्वारा इकठ्ठा ही नहीं किये जाते हैं. इस तरह एक प्रयासों से जहाँ जांचों में निष्पक्ष और तीव्र गति से परिणाम सामने आने लगेंगें वहीं पूरे देश की जाँच एजेंसियों में वह पेशेवर रवैया भी आ जायेगा जिसकी आज ज़रुरत है. देश भर की जांचों को सीबीआई के भरोसे करवाना किसी भी तरह से सही नहीं होगा पर इसी बहाने से परिवर्तन कर राज्यों की एजेंसियों को इतना सक्षम बनाया जा सकता है कि उन पर संदेह की गुंजाईश कम हो जाये.         
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