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सोमवार, 7 सितंबर 2015

अयलान कुर्दी - धर्म, श्रेष्ठता और मानवीयता

                                                   धर्म और उसके अंदर इंसानों के बनाये सम्प्रदायों को लेकर आज पूरी दुनिया में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है उसका मानवता के पास क्या विकल्प है यह सोचने का समय आ चुका है क्योंकि जब तक धर्म के ठेकेदार इंसानियत का पाठ नहीं समझ पायेंगें दुनिया को झकझोरने के लिए कहीं न कहीं कोई मासूम अयलान इन लोगों के अहंकार की बलि चढ़ता ही रहने वाला है. आज पूरी दुनिया में आतंक के सबसे नए और बर्बर पर्याय के रूप में कुख्यात हो चुके आईएस और उसकी कथित खिलाफत को लेकर जो छवि बन रही है वह कहीं से भी इस्लाम के इंसानियत के मूलभूत पहलू को पूरा नहीं करती है. धर्म के नाम पर यदि बनाये गए आईएस का क्षेत्र इतना बर्बर हैं कि वहां इस्लाम के अनुयायी भी सुरक्षित नहीं हैं तो यह देश या भूभाग आखिर किसकी धार्मिक मान्यताओं को पूरा करने वाला है ? क्या दुनिया के महत्वपूर्ण इस्लामी देश जो अभी तक यह सोच कर बैठे हुए हैं कि उन्हें आईएस से कोई खतरा कभी भी नहीं हो सकता है उनके चेतने का समय नहीं आ चुका है जिससे इस संगठन को पूरी दुनिया में अपन इस बर्बरता के स्वरुप को फ़ैलाने से रोका जा सके ?
                                                  आज सऊदी अरब समेत मध्यपूर्व के कई देश राजशाही पर ही चल रहे हैं और आने वाले समय में आईएस जैसे संगठन इस बात की पूरी कोशिश कर सकते हैं कि मुसलमानों के सबसे पवित्रतम शहरों मक्का और मदीना पर भी उनका नियंत्रण हो जाये क्योंकि जब वे खिलाफत की बात करते हैं तो उनकी मंशा केवल इराक और सीरिया तक रुकने की नहीं हो सकती है जिससे इन राजशाही के नीचे चल रहे महत्वपूर्ण इस्लामी देशों के शासकों के लिए आने वाले कुछ वर्ष बहुत ही चुनौती भरे साबित होने वाले हैं. आईएस से जितना नुकसान पूरी मानव सभ्यता को होना है उसमें से बहुत बड़ा हिस्सा इस्लामी दुनिया का भी होने वाला है क्योंकि आज अधिकतर इस्लामी देश अपने को इस्लाम के नाम पर आईएस द्वारा फैलाये जा रहे इस नफरत के स्वरुप से सुरक्षित मान रहे हैं जो कि उनकी केवल शुतुरमुर्गी नज़र से अधिक कुछ भी नहीं है. छोटे से तख्ता पलट के बाद किस तरह से पूरे पूरे देश मध्यपूर्व में अराजकता का शिकार होते चले गये यह किसी से भी छिपा नहीं है  इस सबमें सबसे अचम्भे वाली बात यह भी है कि इस्लामिक देशों के संगठनों की तरफ से भी इस्लाम के सामने आ रहे इस खतरे से निपटने के तरीकों पर अभी तक विमर्श भी शुरू नहीं हुआ है.
                                        इस्लाम के अंदर से ही इस तरह की अतिवादी विद्रोही और अमानवीय सत्ताओं का विरोध किया जाना आवश्यक है क्योंकि दूसरी ताकतों के इसमें शामिल होने के साथ ही आईएस इस आतंक के खेल को इस्लाम बनाम बाकी दुनिया में बदलने से नहीं चूकने वाला है. इस पूरे घटनाक्रम में इस्लामी देशों की तरफ से केवल खोखली चिंताएं ही व्यक्त की जा रही हैं और आईएस के खात्मे के लिए सभी के द्वारा मिलकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है बेशक यह पूरी दुनिया के लिए खतरा हो पर यह सबसे पहले इस्लाम के लिए खुली चुनौती और खतरा बन चुका है क्योंकि जिन शियाओं और कुर्दों को आईएस द्वारा मारा जा रहा है वे भी सुन्नी मुसलमानों की तरह से ही इस्लाम को मानने वाले ही हैं जिनमें समय के साथ कुछ मान्यताओं में अंतर आता चला गया है. इस्लाम का स्वरुप ऐसा आईएस वाला तो नहीं होना चाहिए जैसा आज दिखाई दे रहा है क्योंकि यह पूरी दुनिया में मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ाने का काम ही करने वाला है. ९/११ के बाद किस तरह से पूरी दुनिया में मुसलमानों और सिखों को केवल वेशभूषा के चलते बहुत कुछ झेलना पड़ा था क्या यह किसी से छिपा हुआ है ?
                                  आखिर इस्लामी देश इतने अराजक क्यों होते जा रहे हैं कि किसी अयलान का मजबूर बाप अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर उस यूरोप की तरफ भागने की फ़िराक़ में है जिसको कट्टरपंथी इस्लामिक समुह बराबर अपने निशाने पर लेना चाहते हैं ? इंसानियत की बातें करने वाले इस्लामिक देशों की तरफ से आज तक शरणार्थियों के मुद्दे पर कोई पहल क्यों नहीं की जा रही है क्या तेल के चलते सम्पन्नता हासिल करने वाले इन देशों के शासकों के पास इतनी समझ भी नहीं बची है कि वे इन कुछ कटटरपंथी मुसलमानों के कारण संकटग्रस्त अन्य मुसलमानों की मानवीय आधार पर भी मदद न कर सकें और लोग विपरीत परिस्थितियों में जान पर खेलकर लोकतान्त्रिक देशों में जाने को मजबूर होने लगें ? सभ्यताएं और देश तभी तक हैं जब तक मानवीयता ज़िंदा है पर अमानवीय हरकतों के द्वारा पूरी दुनिया को झकझोरने में लगे हुए आईएस जैसे संगठन आखिर क्यों मानवीय बर्ताव करें जब उनका नफरत का कारोबार तेज़ी से पनप रहा है और सबसे दुःख और चिंता की बात यह भी है कि इस्लामी देश इस पर पूरी तरह से चुप्पी लगाये बैठे हैं जिनको इस खिलाफत का विरोध करना चाहिए.
                             यह तो अयलान कुर्दी का भाग्य या दुर्भाग्य जो भी था कि वह यह क्रूर दुनिया छोड़ने के बाद भी बहता हुआ तुर्की के बीच पर पहुंचा और उसकी लाश ने दुनिया को हिला कर रख दिया और सभी को सोचने को भी मजबूर किया कि इंसानियत का किसी भी धर्म से कितना सम्बन्ध हो सकता है ? यदि अयलान की लाश किसी कट्टरपंथी इस्लामी देश के समुद्री किनारे पर पहुँचती तो शायद आईएस जैसे संगठन के दबाव में कोई उसके पास तक भी न जाता और जो चेतावनी भरा सन्देश आज पूरी दुनिया में जा पाया है वह भी नहीं जा पाता. पूरी दुनिया को उस मासूम अयलान का शुक्रगुज़ार होना चाहिए जिसने मरने के बाद भी कट्टरपंथी इस्लाम में इंसानियत के नाम पर बहस छेड़ दी है जिसने उन कट्टरपंथियों को सीधे चुनौती दी है जो इंसानियत को समुद्र में डुबाना चाहते हैं. कोई अयलान मर सकता है पर वह मरकर भी उस बहस को शुरू कर सकता है जो दुनिया के सबसे क्रूर आतंकी संगठन के समर्थकों को भी हिला सकती है. आज पोप हर कैथोलिक परिवार से एक परिवार को शरण देने की अपील कर चुके हैं पर इंसानियत का राग अलापने वाले इस्लामिक देशों में इस बात पर ख़ामोशी ही दिखाई देती है.             
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