मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

चुनावी खर्चे और नेता

                                                                              देश चलाने के लिए जनता द्वारा चुने जाने वाले सांसदों और उनकी पार्टियों द्वारा किस तरह से लगातार सफ़ेद झूठ बोला जाता है इसका ताज़ा उदाहरण विभिन्न दलों के पिछले आम चुनावों में जीते हुए सांसदों और उनकी पार्टियों द्वारा दिए गए ब्योरे से ही पता चल जाता है. इस सबमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के सांसदों की तरफ से दिए गए आंकड़ों में भी भारी अंतर दिखाई दे रहा है. पांच राष्ट्रीय दलों के ३४२ सांसदों में से २६३ ने बताया कि उन्हें अपनी पार्टियों से ७५.७८ करोड़ रूपये मिले जबकि इन नेताओं की पार्टियों का कहना है कि उनकी तरफ से केवल १७५ सांसदों को ही ५४.७३ करोड़ रूपये दिए गए थे. अब इन आंकड़ों में देश को चलाने में लगी हुई पार्टियों को सही माना जाए या आज चुनाव जीतकर जो लोग माननीय बन चुके हैं उनकी बातों को सही कहा जाये. चुनाव आयोग के पास इस तरह के मामलों में कितनी कार्यवाही करने के अधिकार हैं यह अभी भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है क्योंकि नेता देश में अति सक्रिय चुनाव आयोग की परिकल्पना भी नहीं करना चाहते हैं.
                             देश में हर तरह के चुनाव में हर स्तर पर मतदाताओं को लुभाने के लिए हर हथकंडे का इस्तेमाल किया जाता रहा है और इस मामले में केवल उसी बात की पुष्टि ही होती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रतीक संसद तक पहुँचने के लिए तरह तरह की झूठी कसमें खाने में शामिल रहने वाली हमारी पार्टियां और नेता वास्तव में आंकड़ों में किस हद तक मनमानी करते हैं. देश को हर बात पता होनी चाहिए इस बात की पारदर्शिता भी दिखाई जानी चाहिए पर कई मामले ऐसे भी सामने आये हैं जिनमें पार्टी कह रही है कि उसने चुनाव लड़ने के लिए धन नहीं दिया है जबकि नेता उसे अपने खर्चे में शामिल किये बैठे हैं. पिछले कुछ दशकों से देश के राजनैतिक चरित्र का जिस तेज़ी से पतन हुआ है वह निश्चित रूप से चिंता का विषय तो है पर कोई भी व्यक्ति कहीं से भी कुछ भी करने के लिए इतना निरंकुश ह जाये इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यह अपने आप में बहुत ही गंभीर मामला है क्योंकि जिन दलों और नेताओं पर जनता अपना विश्वास जताती है वे इस तरह की हरकतों में शामिल होकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं और वह भी उस परिस्थिति में जब नेताओं को आम जनता खुले आम अपशब्दों से नवाज़ती रहती है ?
                                क्या इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान में लेते हुए सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों, चुनाव आयोग और लोकसभाध्यक्ष को नोटिस जारी करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि यह मुद्दा जितना सरल लग रहा है उतना है भी नहीं और आने वाले समय में हर प्रभावशाली और धनी नेता इसी तरह से देश के कानून और चुनाव आयोग के आदेशों की धज्जियाँ उड़ाने से नहीं चूकने वाले हैं. क्या यह समय चेतने का नहीं है क्योंकि आज यदि ये सूचनाएँ सामने आ रही हैं और उनमें इतनी बड़ी गड़बड़ी भी खुले तौर पर स्पष्ट है तो क्या यह मामला कोर्ट में नहीं जाना चाहिए ? विधि द्वारा स्थापित संविधान की कसमें खाते समय जो कुछ भी कहा जाता है वह हमारे राजनैतिक दलों और नेताओं के लिए कितना खोखला और हल्का होता है यह तो देश के सामने ही है. कानूनी रूप से जब ये आंकड़े अब सामने आ चुके हैं तो क्या हर मामले में नियम से काम करने वाली लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी इस बात को अपनी तरफ से संसद के सदन में उठाएंगीं और क्या देश की गौरवशाली संसद में इन आंकड़ों में बाजीगरी करने वाले माननीयों और राजनैतिक दलों के विरुद्ध कोई निंदा प्रस्ताव सदन में पारित किया जायेगा ? या फिर देश को छिछले मुद्दों में ही भटकने की प्रक्रिया इसी तरह से चालू रहेगी और जनता और संवैधानिक संस्थाओं के सामने हमारे नेता हमेशा की तरह झूठ ही बोलते रहेंगें ?            
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