मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 19 सितंबर 2015

जांचों की राजनीति

                                                 आज़ादी के समय देश संभाल रहे नेताओं ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय में देश की राजनीति कुछ इस तरह से बदलाव का शिकार होगी कि बेहद महत्वपूर्ण मामलों को भी केवल दलगत राजनीति और चुनावी लाभ की गणित बैठाये जाने के लिए ही इस्तेमाल किया जाने लगेगा. इस तरह की जांचों में सदैव ही सत्ताधारी दल के नेताओं के पास करने के लिए बहुत कुछ होता है और वे बड़े पैमाने पर ऐसा करते देखे भी जा सकते हैं जो कि भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत ही गंभीर मुद्दा बनना चाहिए पर इसकी चर्चा करने के स्थान पर विपक्षी दल केवल आरोप लगाने और सत्ताधारी दल कानून का अनुपालन करने की बात कहकर ही अपने हितों को साधने का काम करते रहते हैं. प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एक बार फिर से बिहार के महत्वपूर्ण चुनावों से पहले जिस तरह से गांधी परिवार को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निशाने पर लिया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस तरह के किसी भी मामले में सत्ताधारी दल जांचों को अपने हिसाब से उसी तरह से मोड़ता रहता है जिससे उसे अपने विपक्षियों पर हमला करने की छूट मिल जाये.
                               बिहार चुनावों की सरगर्मी बढ़ने के साथ जिस तरह से एक बार फिर मोदी सरकार सोनिया-राहुल और रॉबर्ट पर निशाना लगाने की कोशिशें शुरू कर चुकी है वह भारतीय राजनीति के एक काले चेहरे से अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. यह देखना इस लिए भी दिलचस्प है क्योंकि मोदी या भाजपा के पास सीधे बिहार के सीएम नितीश कुमार पर हमला करने लायक पर्याप्त मसाला नहीं है और उस स्तर का हमला करने में नितीश खुद भी माहिर हैं जैसा मोदी अपनी चुनावी सभाओं में किया करते हैं तो मोदी कांग्रेस और सोनिया राहुल के माध्यम से महा गठबंधन पर हमले करने की अपनी रणनीति पर पूरी तरह से काम करने में लगे हुए हैं. संख्या बल पर मज़बूत इस मोदी सरकार से इस तरह की हरकतों की अपेक्षा किसी ने भी नहीं की थी क्योंकि यदि किसी मामले में गांधी-वाड्रा परिवार के किसी सदस्य को दोषी पाये जाने की संभावनाएं हैं तो उसकी निष्पक्ष रूप से जांच भी होनी चाहिए जिससे दोषियों को सजा भी दिलवाई जा सके पर विगत एक वर्ष से हर महत्वपूर्ण चुनाव से पहले जिस तरह से मोदी सरकार कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमले किया करती है उससे यही लगता है कि आज भी कहीं न कहीं से मोदी को लगता है कि आने वाले वर्षों की राजनीति में अपनी अखिल भारतीय पहचान के कारण कांग्रेस ही उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनने वाली है.
                                   बिहार चुनाव निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं और अभी तक किसी को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इसके क्या परिणाम निकलेंगें पर हर दल अपने अनुसार अपने किले को मज़बूत करने में लगा हुआ है. कांग्रेस पर इस तरह के आरोप सदैव ही लगते रहे हैं कि वह जाँच एजेंसियों का दुरूपयोग किया करती थी तो यदि आज केंद्र में मोदी सरकार ने भी वही राह पकड़ी हुई है तो वह इस मामले में कांग्रेस से अलग कैसे हो सकती है ? यादव सिंह मामले में सीबीआई की जाँच का दबाव बनाकर किस तरह से मुलायम सिंह को बिहार गठबंधन से बाहर निकलवाने का काम मोदी सरकार ने किया है यह सभी को पता है और आने वाले समय में यूपी के चुनावों तक यह जाँच किस तरह से खुद मुलायम को झुलसाएगी यह भी देखना दिलचस्प होने वाला है. देश में जांचों के नाम पर इस तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए और दोषियों को कानून के अनुसार दण्डित भी किया जाना पर केवल जाँच को राजनैतिक और रणनीतिक हथियार बनाये जाने से देश का कुछ भी भला नहीं हो सकता है और सत्ता से नज़दीकियां बढाकर कोई भी अपने हितों को सुरक्षित भी रख सकता है.                        
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