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सोमवार, 21 सितंबर 2015

नेपाल- एक नए गणतंत्र का उदय

                              लम्बे विमर्श और विरोधों के बीच जिस तरह से नेपाल ने अपने लिए के नए लोकतान्त्रिक राजशाही मुक्त देश की परिकल्पना की है उस नए संविधान पर स्वीकृति मिलने के बाद यह आशा की जानी चाहिए कि अब भारत का यह पडोसी देश अपने आप में बड़े परिवर्तन करने और सम्पूर्ण विश्व की लोकतान्त्रिक शक्तियों के साथ मिलकर आगे बढ़ने के मार्ग पर दिखाई देने वाला है. किसी भी देश के लिए इस तरह से लम्बे संघर्ष और आंतरिक विरोधों के बाद एक काफी हद तक स्वीकार्य संविधान बनाना अपने आप में बहुत ही चुनौती पूर्ण काम है और जब यह मामला नेपाल जैसे देश से जुड़ा हो जहाँ पर लम्बे समय से विद्रोहियों ने सरकार के लिए समस्याएं खडी कर रखी हों तो यह सब और भी कठिन हो जाता है. प्रस्तावित नए नेपाल में अब सात राज्य होंगें जिनकी भौगोलिक सीमाओं का निर्धारण आने वाले समय में किया जायेगा जिससे लोकतंत्र को पहले राज्यों की इकाइयों और फिर ज़िले और पंचायत के स्तर तक पहुँचाया जा सके. नेपाल पहाड़ी और मैदानी जिलों की राजनीति में बुरी तरह से उलझा हुआ राष्ट्र है और आने वाले समय में वहां के नवीन शासकों को इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम भी उठाने पड़ेंगे.
                              विश्व के एक मात्र हिन्दू राष्ट्र के इस तरह से धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित होने से जहाँ भारत में सक्रिय हिन्दुत्ववादी ताकतों को झटका लगा है जो यह सोचे बैठे थे कि आज जब भारत में हिंदुत्व के नाम पर आगे बढ़ी पार्टी भाजपा का शासन है तो संभवतः नेपाल भी अपने संविधान में इस तरह से कोई प्रावधान कर दे कि वह भी घोषित हिन्दू राष्ट्र ही बना रहे. नेपाल के नए संविधान में सनातन धर्म की रक्षा करने को लेकर एक संकल्प भी किया गया है और हिन्दुओं से जुडी आस्था के प्रतीकों को भी यथोचित सम्मान भी दिया गया है. इस तरह से नए संविधान में जिस तरह से समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखा गया उससे यही पता चलता है कि अब नेपाल ने अपने उस पुराने संघर्ष से बहुत कुछ सीख लिया जिसके चलते उसने कठिनाइयों का बहुत लम्बा और बुरा दौर भी देखा था. यह अच्छा ही है कि विवादित मुद्दों को सुलझाने की मंशा के साथ नए राजनैतिक स्वरुप ने आगे बढ़ने की कोशिशें शुरू कर दी हैं पर आज भी देश के अंदर विरोधाभास के चलते इस राह पर बढ़ना उतना आसान नहीं होने वाला है जितना हो सकता था पर मज़बूत इच्छाशक्ति के साथ इससे भी पार पाया जा सकता है.
                 दक्षिणी नेपाल में मधेशियों का सदैव से ही बोलबाला रहा है और वहां पर किसी भी तरह की अशांति से भारत के साथ लगती सीमा पर भी समस्या हो सकती हैं जिसे भारत के साथ नेपाल भी अच्छी तरह से समझता है पर मधेशियों की भावनाओं का ख्याल यदि नेपाल के संविधान में  रखा जा रहा है तो वहां रहने वाले मधेशियों की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे भी बहुत अधिक मांग न करते हुए अपने स्तर से नए नेपाल को मज़बूत करने का काम शुरू करें. यदि लम्बे समय से विकास से पूरी तरह से वंचित रहे उत्तरी नेपाल के इलाकों में कुछ भी अच्छा होता है तो वह अंत में दक्षिणी नेपाल को भी पूरा सहयोग ही देने वाला होगा क्योंकि एक राष्ट्र में जहाँ उत्तरी भाग में पर्यटन की असीमित संभावनाएं बिखरी पड़ी हैं वहीं दक्षिणी भाग में भी उद्योगों के और भी अच्छे से पनपने के लिए भरपूर माहौल उपलब्ध है. अब इन दोनों क्षेत्रों के साथ नेपाल के लोगों को अपने नए बनने वाले सातों राज्यों के विकास पर ध्यान देना होगा जिससे आने वाले समय में नेपाल अपने स्तर से मज़बूत हो सके तथा चीन और भारत में से किसी एक की तरफ झुकने के स्थान पर दृढ होकर आगे बढ़ने के बारे में सोच सके.    
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