मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक

                                               खुर्शीद अहमद कसूरी की किताब के विमोचन को लेकर जिस तरह से मुंबई में शिवसेना द्वारा अनावश्यक रूप से विरोध किया गया उसका कोई मतलब तो नहीं बनता है पर केंद्र में सरकार चला रही भाजपा के लिए अब इस तरह के मुद्दों से पीछा छुड़ा पाना भी आसान नहीं होने वाला है क्योंकि सरकार के प्रमुख घटक दल और देश को पीएम देने के कारण अब सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उसकी ही बनती है कि वह इस तरह की घटनाओं से सबक लेते हुए इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती हुई नज़र भी आये. वैसे तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों से पीएम मोदी यह कई बार कह चुके हैं कि देश के सांप्रदायिक सद्भाव को हर कीमत पर बनाये रखना चाहिए पर इस ताने बाने को उनके मंत्री, पार्टी नेता और सहयोगी ही सबसे अधिक क्षति पहुँचाने में लगे हुए हैं. चुनाव के समय नेताओं के अनर्गल बयानों पर जनता वैसे भी अब कम ध्यान देने लगी हैं फिर भी समाज के कुछ वर्ग ऐसे भी हैं जिन पर इस तरह के बयानों का असर भी दिखाई देता है. संघ और भाजपा तथा उसके सहयोगियों में शामिल कुछ बेहद कट्टर लोग भी सरकार के लिए रोज़ ही नई मुसीबतें खड़ी करने बाज़ भी नहीं आ रहे हैं.
                                  घोर विरोध के बाद भी राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर विभिन्न विरोधी देशों के बीच सामंजस्य बना हुआ ही दिखाई देता है जिससे यही पता चलता है कि इस तरह का विरोध राजनैतिक ही अधिक हुआ करता है संभवतः इसी बात को ध्यान में रखते हुए खुद पीएम मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ को भी बुलाया था और उन्होंने भी आकर इस सामान्य राजनयिक शिष्टाचार को अपनी तरफ से निभाने की भरपूर कोशिश भी की थी. सांस्कृतिक तौर पर पाक भारत के साथ काफी हद तक जुड़ा हुआ है और इस तरह के कार्यक्रम छुटपुट विरोधों के बीच हमेशा ही होते रहते हैं पर इस बार पहले गुलाम अली के सांस्कृतिक कार्यक्रम और फिर कसूरी की किताब के विमोचन को लेकर जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है वह देश के लिए कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता है. पुस्तक विमोचन समारोह में कसूरी को भी इस तरह की बातों से परहेज़ ही करना चाहिए था पर वे भी अपने इस कर्तव्य में चूक ही गए क्योंकि पीएम को उन्होंने भी एक तरह से राजनैतिक सलाह भी दे डाली जिसकी कोई आवश्यकता भी नहीं थी.
                              इस तरह के माहौल में सरकार की तरफ से दिए जाने वाले पुरुस्कार लौटाने वाले लोगों की सूची जिस तरह से लम्बी ही होती जा रही है उस पर अब पीएम की चुप्पी देश की छवि को बट्टा लगाने वाली ही साबित होने वाली है क्योंकि जब तक सरकार के मुखिया के तौर पर वे अपने इन समूहों को कड़ी चेतावनी नहीं देते हैं तब तक इन लोगों की तरह की हरकतों पर कोई रोक नहीं लगने वाली है. यह अच्छा ही हुआ है कि महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस का बयान भी आ गया है जिसमें उन्होंने इस तरह की असहिष्णुता की बातों को लेकर अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर की है साथ ही पुलिस द्वारा कुलकर्णी के साथ अभद्रता करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने से कहीं न कहीं यह भी लग रहा है कि अब संभवतः शिव सैनिकों की इस हद तक की जाने वाली असामाजिक गतिविधियों पर किसी तरह से रोक लगाने की अनमनी कोशिश भी शुरू कर दी गयी है. लोगों को किसी भी कार्यक्रम का विरोध करने की छूट संविधान एक हद तक ही देता है जहाँ तक विरोध का स्वरूप भी बना रहे और जिस कार्यक्रम का विरोध किया जा रहा है वह भी संपन्न हो सके. अब इस तरह के किसी भी आयोजन को राजग शासित किसी भी राज्य में करने की छूट मिलती रहे यह समय की मांग है वर्ना देश में इस तरह के माहौल में मोदी सरकार के लिए विदेशों में अच्छी छवि बना पाना मुश्किल ही होने वाला है.   
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