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मंगलवार, 24 नवंबर 2015

केंद्रीय विद्यालय और कोटा सिस्टम

                                                                                   एक सूचना के अनुसार जिस तरह से यह सामने आया है कि केंद्रीय विद्यालयों में इस वर्ष एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी की तरफ से लगभग ५१०० एडमिशन दिए जाने के लिए सिफारिश की गयी थी और उसका अनुपालन भी किया गया पर इनमें से केवल ३००० बच्चे ही प्रभावी रूप से इन विद्यालयों में पढ़ रहे हैं और बाकियों ने कहीं और भी एडमिशन हो जाने के चलते यहाँ का विकल्प छोड़ दिया था. सीधे तौर पर स्मृति ईरानी के मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय विद्यालय संगठन में मंत्री का कोटा लगभग १२०० सीटों का रहा करता है जिसे मंत्री की सिफारिश पर ही भरा जाता रहा है और इसमें कुछ भी नया नहीं है पर इस बार जितनी बड़ी संख्या में सिफारिशें की गयीं उनसे यही लगता है कि कहीं न कहीं उन उपयुक्त छात्रों के साथ अवश्य ही अन्याय हुआ होगा जिनको कोटे के चलते अपनी सीट गंवानी पड़ी होगी. केंद्रीय सरकार के स्तर पर जिस तरह से बहुत सारी जगहों पर इस तरह एक अनावश्यक कोटे का आज भी अस्तित्व बना हुआ है वह कहीं न कहीं से प्रतिभा को ही पीछे धकेलता है और अब इससे पूरी तरह पीछा छुड़ाने की आवश्यकता भी है.
                                        यहाँ पर उल्लेखनीय यह भी है कि पिछली सरकारों यूपीए-१ में अर्जुन सिंह ने अपने कार्यकाल में भी १००० से अधिक नामों की सिफारिश की थी पर उसके बाद यूपीए-२ में कपिल सिब्बल ने इस मंत्रालय को सँभालते हुए अपने कोटे को ख़त्म कर दिया था साथ ही इन विद्यालयों में सांसदों के कोटे को भी ख़त्म कर दिया था क्योंकि उनका यह मानना था कि इन विद्यालयों में विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा के आधार पर ही प्रवेश दिया जाना चाहिए. सिब्बल ने एक कदम और भी आगे जाते हुए सांसदों के केवी के कोटे को भी समाप्त कर दिया था जिसके बाद सभी दलों के सांसदों ने संसद में हंगामा खड़ा किया तो सिब्बल ने सांसदों के कोटे को बहाल करते हुए अपने कोटे को फिर भी निरस्त ही रखा था. सिब्बल के बाद यूपीए-२ में ही पल्लम राजू ने फिर से इस कोटे को बहाल कर लिया था और पहले की तरह सिफारिशें भी की थीं. ऐसे में क्या कपिल सिब्बल को सही माना जाये या अर्जुन सिंह, पल्लम राजू और स्मृति ईरानी को जो इस महत्वपूर्ण संगठन में भी अपनी दखलंदाज़ी और प्रभुत्व को बनाये रखना चाहते थे साथ ही राजनेताओं को बच्चों की प्रतिभा पर ग्रहण लगाने की अनुमति भी देते थे.
                                    देश में पहले से ही बहुत कोटा बना हुआ है तो क्या इस परिस्थित में अब सरकार को इस तरह की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में भी मेधावी बच्चों के भविष्य पर ग्रहण लगाने का अधिकार मिलना चाहिए ? यह सवाल आज बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि विशेष परिस्थिति में यदि किसी बच्चे की सिफारिश की जाती है तो यह कहीं से भी अनुचित नहीं है पर मंत्री के स्तर से इतने बड़े पैमाने पर सिफारिशें करने का क्या तुक बनता है और यदि मंत्री की सिफारिश पर ही प्रवेश मिलना या लेना था तो आखिर किन परिस्थितियों में लगभग २००० बच्चे मंत्री कोटे से प्रवेश मिलने के बाद भी विद्यालय नहीं पहुंचे ? क्या मंत्री की सिफारिश भी किसी फालतू चीज़ की तरह ही है जसे पहले तो करवा लिया जाये और बाद में अच्छे विद्यालय में प्रवेश मिल जाने पर पूरी प्रवेश प्रक्रिया को ही हिला दिया जाये ? इस बारे में भले ही कोई कितना भी विरोध क्यों न करे पर सरकार को अविलम्ब केवी में प्रवेश के लिए निर्धारित मंत्री और सांसदों के हर तरह के कोटे को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर देना चाहिए जिससे प्रतिभाओं को आगे बढ़ने के बेहतर अवसर मिलते रहें.    
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