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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

कीर्ति आज़ाद को फ्री हिट की आज़ादी

                                                                          बिहार में विपरीत परिस्थितियों में भी लगातार चुनाव जीतने वाले भाजपा के सांसद कीर्ति आज़ाद के मुद्दे पर जिस तरह से भाजपा ने उन्हें निलंबित कर अपनी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर ही किया है वह निश्चित तौर पर उसे आने वाले समय में कठिन दौर का सामना करवा सकती है. लोकतंत्र में जनता के सामने सब कुछ खुला रहता है और संभवतः यही कारण है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भारत में सत्ता परिवर्तन बहुत ही सुगम तरीके से होता रहता है. देश में भ्रष्टाचार सदैव ही एक बड़ा मुद्दा रहा है और समय समय पर विभिन्न दलों की केन्द्र और राज्य सरकारों पर भ्रष्टाचार को पोषित करने का आरोप भी लगता रहता है पर पिछली यूपीए-२ की केंद्र सरकार के खिलाफ भाजपा ने जिस तरह से भ्रष्टाचार को एक बड़े मुद्दे के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किया था उससे आम लोगों की यह धारणा ही बन गयी कि मनमोहन सरकार बहुत भ्रष्ट है और इस मामले में सबसे बुरी बात यह हुई कि भाजपा की तरफ से लगभग सभी नेताओं ने देश की स्थिति को बहुत ख़राब करके प्रस्तुत किया जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं था और आज उस किये का फल खुद भाजपा के लिए एक चुनौती बना हुआ है. देश की बिगड़ी हुई छवि को सुधारने और सही सन्देश देने में अभी भी मोदी सरकार को कड़े प्रयास करने पड़ रहे हैं.
                                           कीर्ति आज़ाद ने जिस तरह से डीडीसीए में भ्रष्टाचार का मामला लगातार उठाया है और साक्ष्यों में कमी के कारण सीधे तौर पर भले ही अरुण जेटली पर कोई आरोप साबित न हो पा रहे हों पर स्थिति बिलकुल उसी तरह की है जब कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर भाजपा उसके कुछ मंत्रियों के कारण आरोप लगाया करती थी और उन मंत्रियों के इस्तीफे पर भी अड़ जाया करती थी रेल मंत्री के रूप में पवन बंसल मामले में कांग्रेस पर जिस तरह से उनके इस्तीफे का दबाव बिना कुछ साबित हुए ही लगाया गया था तो भाजपा किस मुंह से उनसे इस्तीफा माँगा करती थी ? आज जब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए अरुण जेटली सामने आये हैं तो भाजपा और खुद जेटली अपने वे दिन कैसे भूल सकते हैं जब वे केवल आरोपों पर ही संसद को ठप कर मंत्रियों से इस्तीफ़ा माँगा करते थे क्या नैतिकता के आधार पर तब इस्तीफ़ा मांगना सही था और आज विपक्ष यदि वैसा ही कर रहा है तो वह सदन को बाधित करने का आरोप कैसे लगा सकती है ? भ्रष्टाचार के मामले में मोदी का यह कहना ही पर्याप्त नहीं है कि जेटली भी आडवाणी की तरफ साफ़ निकल आयेंगें क्योंकि यदि मोदी को इतना भरोसा है तो वे जांच को तेज़ी से करवा कर जेटली से सरकार से हटने के लिए भी तो कह सकते हैं.
                                 निश्चित तौर पर इस पूरे मामले में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि कीर्ति आज़ाद जैसा बेदाग व्यक्ति केवल क्रिकेट के लिए ही इतना संघर्ष कर रहा है जिसमें उसका कोई व्यक्तिगत हित भी नहीं छिपा हुआ है. कीर्ति आज़ाद को पार्टी से निकाल कर मोदी-शाह ने भले ही अनुशासनहीनता पर कठोरता प्रदर्शित करने के नाम पर कुछ हासिल कर लिया हो पर पूरे देश में एक बात तो अवश्य ही सन्देश के रूप में चली गयी है कि यदि जेटली सही हैं तो वे जांच होने तक पद से क्यों नहीं हट जाते हैं ? कीर्ति के तेवर और कल ही हॉकी इंडिया से जुड़े एक मुद्दे पर केपीएस गिल ने भी जेटली पर भ्रष्ट आचरण को लेकर निशाना लगाया है वह उनकी विश्वनीयता को और भी संदेहास्पद बना देता है. अब भाजपा और एनडीए सरकार को सही मुद्दे को खोजकर जेटली को जाँच पूरी होने तक सरकार से बाहर बैठाने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में मोदी-शाह से नाराज़ चल रहे पार्टी के लोग उनसे किस तरह से बदला लेने की सोचकर बैठे हैं यह कोई नहीं जनता है. विपक्ष में बैठकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करना एक बात है और सरकार चलाते समय उससे सही तरह से निपटना बिल्कुल दूसरी बात है और यह अब मोदी-शाह को समझ में आ भी रहा होगा.      
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