मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 27 दिसंबर 2015

मोदी की पाक यात्रा

                                                                अपने त्वरित निर्णयों से देश दुनिया के राजनैतिज्ञों और मीडिया को चौंकाने में माहिर पीएम मोदी ने जिस गोपनीयता भरी तैयारी के साथ पाक की औचक यात्रा की उससे यही लगता है कि आने वाले समय में यदि भारत में किन्हीं इस्लामी जेहादी संगठनों द्वारा यदि कोई आतंकी हमला नहीं किया गया तो दोनों देशों के बीच के रिश्तों में अभूतपूर्व सुधार भी आ सकता है. भाजपा के पास सदैव ही इस बात की बढ़त रहा करती है कि वह आसानी से पाक से वार्ता कर सके क्योंकि देश के अन्य सभी दल पाक के साथ बराबरी के स्तर पर सम्बन्ध रखने की नीति पर लगभग सहमत ही दिखाई देते हैं और विपक्ष में रहने पर केवल भाजपा ही हर बार पाक से किसी भी तरह के सम्बन्ध बहाली पर आक्रामक रहा करती है. अटल के बाद मोदी भी इसी तरह की कोशिश करने में लगे हुए हैं क्योंकि सैद्धांतिक रूप से देश के सभी दल सीमा पर शांति ही चाहते हैं और आने वाले समय में यदि भारत-पाक संबंधों में गतिरोध टूटता है तो उसका लाभ दोनों देशों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्तर पर भी अच्छी तरह से मिलेगा.
                                                 भारत पाक में राजनैतिक स्तर पर इस यात्रा का जो समर्थन व विरोध किया जाना है वह शुरू भी हो चुका है पर जिस तरह से जेहादी संगठन इस मामले पर एकदम से अलग थलग पड़ गए हैं उससे यही लगता है कि इस सकारात्मक अवसर को रोकने के लिए वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं. भारत के पक्ष में इस बार जो सबसे महत्वपूर्ण बात जा रही है वह पेशावर सैनिक स्कूल पर आतंकियों के हमले के बाद सेना के रुख में बड़े बदलाव के रूप में है क्योंकि पिछले साल के उस हमले के बाद पहली बार पाक सेना से आतंकियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया था हालाँकि उसमें भी अभी तक उसने केवल तालिबान और अन्य विदेशी आतंकियों से समूह और ठिकानों को ही अधिक निशाना बनाया है पर भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंकियों को अपनी मदद अभी भी जारी ही रखी है जिससे भारत पर हमले का खतरा अभी भी उतना ही बना हुआ है जैसा पहले रहा करता था. भारत के लिए आदर्श स्थिति तब तक नहीं आ सकती है जब तक पाक सेना खुद ही सीमा पर आतंकी गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाती है और सीमा पर चल रहे उन जेहादी कैंप्स को बंद नहीं करती है.
                              सद्भाव बनाये रखने की अब बड़ी ज़िम्मेदारी पाक पर भी आ रही है हालाँकि इस बार जिस तरह से सेना के पूर्व जनरल जंजुआ को शरीफ ने पाक का एनएसए बनाया है उससे शरीफ सरकार और सेना के बीच संवाद बढ़ा भी है क्योंकि यदि मोदी की यात्रा के लिए सेना की तरफ से सकारात्मक रुख नहीं अपनाया जाता तो यह यात्रा के वैचारिक स्तर तक ही सिमट कर रह जाती. पाक सेना के रुख में वर्तमान बदलाव कोई बड़ा ह्रदय परिवर्तन नहीं है और कश्मीर को लेकर उसका रुख सदैव की तरह ही रहने वाला है इसलिए इस परिस्थिति में अब भारत को अधिक सतर्क रहने की भी आवश्यकता है क्योंकि ९८/९९ में इसी तरह के प्रयासों के साथ अटल की लाहौर यात्रा ने देश को कारगिल युद्ध की तरफ बढ़ा दिया था और हमारी ख़ुफ़िया जानकारियां किसी काम नहीं आ पायी थीं. यह भी सही है कि पाक के इस तरह के प्रयासों के बाद से अब हमारी सेना अधिक चौकन्नी भी रहने लगी है जिससे ऐसी किसी भी घुसपैठ की सम्भावना भी कम हो गयी है. दोनों देशों के बीच सम्बन्ध अब सुधरने चाहिए और पीएम मोदी को देश को विश्वास में भी लेना चाहिए जिससे एक बार शुरू की गयी प्रक्रिया को अब सही समय सीमा के साथ आगे बढ़ाने में भी सफलता मिले और दोनों देशों के बीच सम्बन्ध अच्छे स्तर तक पहुंचे.                               
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