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गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

रेलवे, ट्विटर और सुगम यात्रा

                                                                        पिछले १० दिनों में दूसरी बार रेल सफर के दौरान यात्री को ट्विटर के माध्यम से मदद मिलने की घटना को बड़े बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से चलती ट्रेन के कोच में बैठे हुए यात्री को किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होने पर यात्रा के बीच में कोई विकल्प न होने की दशा में मज़बूरी में यात्रा को जारी रखना पड़ता है उसे देखते हुए आने वाले समय में रेल यात्रियों के लिए ट्विटर बेहतरीन साधन बनकर उभर सकता है. देश में रेलवे के व्यापक नेटवर्क को देखते हुए इस तरह की स्थायी व्यवस्था के बारे में भी सोचा जाना चाहिए जिसके चलते आम नागरिकों को कुछ सहायता मिल सके और उनकी यात्रा को और भी सुगम बनाया जा सके. इस परिवर्तन का सही लाभ उठाने के लिए अब रेलवे को इसकी मज़बूत व्यवस्था भी करनी चाहिए जिससे लोगों को आवश्यकता पड़ने पर सही सहायता मिल सके और उन लोगों के मन में भय भी उत्पन्न किया जा सके जो यात्रा के दौरान सहायता न मिल पाने की मजबूरी का दुरूपयोग भी किया करते हैं और रेलवे चाहकर भी इन मामलों में कुछ नहीं कर पाती है.
                                इस प्रक्रिया को हर नागरिक के लिए सुगम बनाने के लिए ट्विटर का एक नया और अलग खाता भी होना चाहिए जिसे हर मंडल स्तर पर सुचारू रूप से देखने और तात्कालिक प्रतिक्रिया करने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए क्योंकि भले ही शुरुवाती दौर में रेल मंत्री या मंत्रालय के ट्विटर के हैंडल पर इस तरह की सहायता मिलना आसान हो पर आने वाले समय में इसके बढ़ने पर रेल मंत्री के खाते की आवश्यक जानकारियों को आम लोगों तक पहुँचाने का मकसद भी कमज़ोर पड़ सकता है. यह अच्छा है कि रेल मंत्री के खाते के अपडेट्स को लगातार देखा जाता है और लोगों को सहायता भी मिल रही है पर इसके लिए आने वाले समय में अलग व्यवस्था भी करने के बारे में रेलवे को सोचना ही होगा. एक सहायता से जुड़े अलग खाते के सञ्चालन और मंडल स्तर पर उसे फॉलो करने से जहाँ मंडल और केंद्रीय स्तर पर शिकायत या समस्या पहुँच जाएगी वहीं ट्रेन में नियुक्त स्टाफ पर भी इस बात का दबाव बन जायेगा कि अब उन पर जनता के द्वारा नज़र रखी जा रही है तथा किसी भी समस्या पर जनता सीधे मंडल कार्यालय, रेल मंत्रालय या रेलमंत्री तक अपनी पहुँच रखती है.
                               रेल कर्मियों पर इस तरह के दबाव की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी क्योंकि अभी तक जनता के पास विकल्प न होने के कारण ही जिस तरह से वह चुप रह जाती थी अब वह भी सही शिकायतों को सही जगह तक पहुंचा सकती है. इस क्रम में रेलवे को जहाँ शीघ्र ही इस तरह के ट्विटर हैंडल को जनता के लिए शुरू करना चाहिए वहीं उसका प्रचार हर टिकट पर भी होना चाहिए फिलहाल इंटरनेट से मिलने वाले टिकटों में इसकी शुरुवात तुरंत ही की जा सकती है तथा भविष्य में छपने वाले टिकटों पर भी इसका अंकन किया जा सकता है. स्टेंसिल के रूप में रेलवे जिस तरह से अपनी सूचनाओं को हर कोच में लिखती है तो इस ट्विटर हैंडल को भी हर कोच में सूचनाओं के साथ लिखा जा सकता है जिससे किसी को भी आवश्यकता पड़ने पर इसका लाभ मिल सके. जनता के हाथ में यह एक हथियार के रूप में ही आने वाला है जिसके दुरूपयोग से भी आम जनता को बचना होगा जिससे सही लोगों की शिकायतों पर रेलवे पूरा ध्यान दे सके. आना वाला समय देश के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है उसमें यदि डिजिटल क्रांति को इस तरह से आम जनता की सुविधाओं तक पहुँचाया जाने लगे तो सारा मामला बहुत आसान भी हो सकता है.  
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