मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 21 मार्च 2016

नेपाल-चीन-भारत

                                                     पिछले महीने की अपनी भारत यात्रा के बाद नेपाल के पीएम केपी ओली की वर्तमान में चल रही चीन यात्रा के बाद ही यह स्पष्ट हो पायेगा कि आज के समय में नेपाल की भारत के प्रति क्या नीति रहने वाली है क्योंकि २००६ से लगातार परिवर्तित हो रहे घटनाक्रम में नेपाल और भारत के सम्बन्ध अब उस स्तर पर नहीं रह गए हैं जिसके लिए दोनों देश कभी जाने जाते थे. अपनी भारत यात्रा की औपचारिकता को निभाने के अतिरिक्त ओली ने भारत के साथ संबंधों को नए स्तर तक बढ़ाने के लिए कोई सार्थक प्रयास किया हो ऐसा भी दिखाई नहीं देता है और अब उनकी चीन यात्रा भारत के लिए बड़ी चिंताएं सामने लेकर आ सकती है क्योंकि पिछले वर्ष आये भूकम्प और मधेशियों की अघोषित आर्थिक नाकेबंदी से नेपाल बहुत अधिक आहत भी है आर उसके पास करने के लिए कुछ भी शेष नहीं है. चीन भूकम्प वाले क्षेत्रों में पुनर्निर्माण पर भी सहयोग करने के लिए तैयार हो रहा है और संभवतः इस यात्रा के दौरान कोई ऐसा समझौता भी दोनों देशों के बीच हो जाये जो लम्बे समय में भारत के लिए चिंताएं लेकर आने वाला हो.
                             पीएम  मोदी निश्चित तौर पर विदेशों से भारत के संबंधों को नए सिरे परिभाषित करने में लगे हुए हैं और उसमें उनके द्वारा नए रास्ते भी तलाशे जा रहे हैं पर जिस तरह से पडोसी देशों के साथ सहयोग अपने चरम पर होने चाहिए संभवतः आज वे भी नहीं बन पा रहे हैं क्योंकि नेपाल जैसे देश को संभवतः मोदी भारत के पक्ष का मानने की गलती कर रहे हैं. नेपाल को जिस तरह से अपने पर्यटन स्थल पोखरा में हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने की आवश्यकता है उसमें चीन काफी हद तक मदद करने के लिए भी तैयार है तो यह एक तरह से चीन का भारतीय सीमा पर निगरानी करने का एक नया रास्ता खुलने जैसा ही होगा जबकि इस तरह के किसी भी प्रस्ताव के लिए भारत को नियमों की परवाह न करते हुए नेपाल की मदद करने के बारे में सोचना चाहिए था जिसमें हम पूरी तरह चूक रहे हैं. यदि पोखरा को देखा जाये तो वहां से उत्तर भारत के महत्वपूर्ण शहर एक घंटे से कम की उड़ान पर ही हैं और किसी विपरीत परिस्थिति में चीन वहां पर मौजूद अपनी सुविधाओं का दुरूपयोग भारत के खिलाफ नहीं करेगा इसकी कोई गारंटी नेपाल भी नहीं दे सकता है तो इस तरह से पोखरा तक चीन की हवाई दखल आने वाले समय में भारत के लिए सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं भी उत्पन करने वाली साबित हो सकती है.
                            भारत ने १९४७ से ही नेपाल को अघोषित रूप से नियमों से आगे जाकर मदद देने की नीति पर काम किया है और पिछले वर्ष भूकम्प आने के बाद जितनी शीघ्रता से मदद भेजी गयी थी वह भी उल्लेखनीय थी पर उसके बाद भारत पर प्रचार में भूखे होने का आरोप लगने लगा तथा भारत सरकार की ऐसे समय में अपने प्रचार करने को लेकर विदेशों में भी आलोचना हुई और प्रारम्भिक बढ़त बनाने के बाद भी भारत को अक्टूबर में अन्ये संविधान के साथ नेपाल विरोधी होने का आरोप भी झेलना पड़ा. नेपाल के मामले को अधिक संवेदनशीलता के साथ देखने की आवश्यकता है और मोदी सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसके लिए सक्षम भी हैं पर नेपाल के साथ संबंधों को सही पटरी पर लाने की कोशिशों के लिए पीएम मोदी को उन्हें खुलकर काम करने की आज़ादी देनी ही होगी. भारत के नेपाल के साथ सम्बन्ध ही उसकी चीन के साथ बनने वाली नीतियों को निर्धारित करने का काम करते हैं इसलिए किसी भी परिस्थिति में नेपाल को ऐसा कोई भी सन्देश नहीं जाना चाहिए जिससे यह लगे कि भारत नेपाल के विरुद्ध काम कर रहा है.   
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