जिहाद की अवधारणा को पूरे विश्व में फ़ैलाने में लगे हुए पाकिस्तान के कुछ आतंकी समूहों को वहां की सरकार का किस हद तक साथ मिलता है यह संयुक्त राष्ट में चीन द्वारा मसूद अज़हर से सम्बंधित मसले पर साफ़ हो गया है. आज वैश्विक आतंक को जिस तरह से सऊदी अरब से मिलने वाले पैसों के दम पर पाकिस्तान द्वारा अमली जामा पहनाया जा रहा रहा है उसके चलते वैश्विक आतंक से लड़ने में कई देशों का खोखलापन भी ज़ाहिर होता है. पूरी दुनिया जानती है कि धार्मिक शिक्षा के साथ अज़हर का संगठन किस तरह से पूरे पाक में जेहादी तत्वों की भर्ती में लगातार लगा रहता है और आज वहां की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आने वाले समय में समझदार लोग सीरिया और इराक की तरह वहां से पलायन करने के बारे में सोचना शुरू कर सकते हैं पर आज पाकिस्तान की नकारात्मक छवि के कारण वहां के निवासियों को पूरी दुनिया में संदेह की नज़रों से देखा जाने लगा है और साथ ही अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि किसी भी देश के मुसलमान को कुछ देशों में आसानी से प्रवेश भी नहीं मिल पा रहा है.
भारत के पास जितने भी सबूत होते हैं पाक उनको एकदम से नकारने की अपनी पुरानी नीति पर ही चलता हुआ दिखाई दे रहा है बात चाहे पठानकोट से सम्बंधित विशेष टीम के भारत आने की हो या फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंक से लड़ने की दोनों ही परिस्थितियों में पाक की तरफ से केवल दुनिया को सन्देश देने की कोशिशें भर चल रही हैं जिससे उस पर भारत से सहयोग न करने के आरोप आसानी से न लगाए जा सकें. भारत लम्बे समय से आतंकवाद से पीड़ित रहा है और हमारी तरफ से तीन दशकों से कही जा रही बातों को पूरे विश्व ने कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया क्योंकि उसको यह लगता था कि यह भारत की अपनी समस्या है पर आज जिस तरह से पूरे यूरोप समेत दुनिया का हर हिस्सा इस्लामी जिहाद की चपेट में आता जा रहा है तो इन देशों और इनके नेताओं कि आँखें खुल रही है पर चीन जैसे बहुत सारे देश आज भी वास्तविकता को इसलिए भी स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि उनके मुक़ाबले खड़े होने की स्थिति में आ चुके भारत के खिलाफ षड्यंत्रों के माध्यम से केवल पाक के ये जेहादी तत्व ही कुछ काम कर सकते हैं तथा भारत मजबूरी में ही सही पर अपने संसाधनों को इस क्षेत्र में लगाने के बारे में सोचेगा.
निश्चित तौर पर इस बार भी चीन को अपने निकटस्थ सहयोगी पाक के मसूद को बचाने के बदले में पाकिस्तान से बहुत कुछ हासिल भी हो सकता है पर इससे वैश्विक आतंक से लड़ने की उस परिकल्पना को बुरी तरह धक्का लगने वाला है जिसके चलते इन मुट्ठी भर आतंकियों को नियंत्रित करने के बारे में सोचा जा रहा है. एक तरफ यूएएन आतंकवाद पर परिचर्चा करता है जिसमें विश्व भर के नेता आते हैं वहीं चीन अपनी राजनीति के चलते अपने वीटो का उपयोग कर पाक को बचाने का काम करता हुआ नज़र आता है. निश्चित तौर पर अब भारत के लिए चीन को कडा सन्देश देने का समय आ चुका है और इस मामले को सभी स्तरों पर उठाया जाना भी चाहिए जिससे विश्व के अन्य देशों का सहयोग भारत को मिल सके. भारत अपने यहाँ चीन की आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण लगाकर भी उसे कडा सन्देश दे सकता है पर व्यापार को हर मुद्दे पर प्राथमिकता देने में लगी मोदी सरकार किस हद तक इससे अलग हो पायेगी यह समय ही बताएगा क्योंकि हमारे दम पर अपनी आर्थिक समृद्धि को आगे ले जाने के बाद चीन यदि हमारे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने की तरफ जाता है तो हमें भी उसके साथ अपने आर्थिक सम्बन्धों को नए सिरे से परिभाषित करने के बारे में गम्भीरता सोचना ही होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत के पास जितने भी सबूत होते हैं पाक उनको एकदम से नकारने की अपनी पुरानी नीति पर ही चलता हुआ दिखाई दे रहा है बात चाहे पठानकोट से सम्बंधित विशेष टीम के भारत आने की हो या फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंक से लड़ने की दोनों ही परिस्थितियों में पाक की तरफ से केवल दुनिया को सन्देश देने की कोशिशें भर चल रही हैं जिससे उस पर भारत से सहयोग न करने के आरोप आसानी से न लगाए जा सकें. भारत लम्बे समय से आतंकवाद से पीड़ित रहा है और हमारी तरफ से तीन दशकों से कही जा रही बातों को पूरे विश्व ने कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया क्योंकि उसको यह लगता था कि यह भारत की अपनी समस्या है पर आज जिस तरह से पूरे यूरोप समेत दुनिया का हर हिस्सा इस्लामी जिहाद की चपेट में आता जा रहा है तो इन देशों और इनके नेताओं कि आँखें खुल रही है पर चीन जैसे बहुत सारे देश आज भी वास्तविकता को इसलिए भी स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि उनके मुक़ाबले खड़े होने की स्थिति में आ चुके भारत के खिलाफ षड्यंत्रों के माध्यम से केवल पाक के ये जेहादी तत्व ही कुछ काम कर सकते हैं तथा भारत मजबूरी में ही सही पर अपने संसाधनों को इस क्षेत्र में लगाने के बारे में सोचेगा.
निश्चित तौर पर इस बार भी चीन को अपने निकटस्थ सहयोगी पाक के मसूद को बचाने के बदले में पाकिस्तान से बहुत कुछ हासिल भी हो सकता है पर इससे वैश्विक आतंक से लड़ने की उस परिकल्पना को बुरी तरह धक्का लगने वाला है जिसके चलते इन मुट्ठी भर आतंकियों को नियंत्रित करने के बारे में सोचा जा रहा है. एक तरफ यूएएन आतंकवाद पर परिचर्चा करता है जिसमें विश्व भर के नेता आते हैं वहीं चीन अपनी राजनीति के चलते अपने वीटो का उपयोग कर पाक को बचाने का काम करता हुआ नज़र आता है. निश्चित तौर पर अब भारत के लिए चीन को कडा सन्देश देने का समय आ चुका है और इस मामले को सभी स्तरों पर उठाया जाना भी चाहिए जिससे विश्व के अन्य देशों का सहयोग भारत को मिल सके. भारत अपने यहाँ चीन की आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण लगाकर भी उसे कडा सन्देश दे सकता है पर व्यापार को हर मुद्दे पर प्राथमिकता देने में लगी मोदी सरकार किस हद तक इससे अलग हो पायेगी यह समय ही बताएगा क्योंकि हमारे दम पर अपनी आर्थिक समृद्धि को आगे ले जाने के बाद चीन यदि हमारे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने की तरफ जाता है तो हमें भी उसके साथ अपने आर्थिक सम्बन्धों को नए सिरे से परिभाषित करने के बारे में गम्भीरता सोचना ही होगा.
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