मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

अमृतसर हादसा

                                                            अमृतसर में दशहरा के अंतिम दिन रावण दहन के कार्यक्रम में जिस तरह से भीषण दुर्घटना हुई उसको देखकर प्रथम दृष्टया यही लगता है कि एक ज़िम्मेदार राष्ट्र के नागरिक के रूप में जीना सीखने में अभी हम सभी भारतीयों को बहुत समय लगने वाला है. यह सही है कि इस तरह के आयोजनों के समय अनुमान से अधिक भीड़ का जुटना पूरे देश में एक सामान्य सी लगने वाली घटना है पर हमारा प्रशासन जिस तरह से अनावश्यक कामों के दबाव में ही रहा करता है उसको देखते हुए इस तरह की घटनाओं को रोक पाना उसके लिए पूरी तरह से असंभव ही है. हम सभी जानते हैं कि इस तरह के आयोजनों के लिए किस तरह से पुलिस प्रशासन को आने वाले लोगों की अनुमानित संख्या की सूचना देनी होती है और उसके अनुरूप उनसे आवश्यक व्यवस्था में सहयोग की अपेक्षा की जाती है पर देश भर में सार्वजनिक कार्यक्रमों में जिस तरह से कुछ भी करने की स्वघोषित छूट नागरिक स्वतः ही हासिल कर लेते हैं उनके चलते भी इस तरह की दुर्घटनाएं होती रहती हैं और हम कुछ दिनों तक पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं दिखा कर फिर से अपनी लापरवाहियों में जुट जाते हैं.
                                 इस बारे में हमेशा की तरह राजनीति शुरू हो चुकी है जबकि इसके लिए हम सभी की यह सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है कि जहाँ भी लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है या वे स्वतः ही किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आ रहे हैं तो उनके आने जाने के मार्ग के साथ ही कार्यक्रम स्थल पर आवश्यक सुरक्षा उपाय भी किये जा रहे हैं. हमारे देश में किसी भी कार्यक्रम में विभिन्न कारणों से आम लोगों का बड़ी सख्या में आना हमारी उत्सवधर्मिता की परम्परा को मज़बूत करता है पर आयोजक के रूप में ज़िम्मेदारी निभा रहे लोगों के साथ स्थानीय प्रशासन को भी इसमें पूरी तरह से शामिल होना चाहिए जो कि विभिन्न कारणों से कभी भी नहीं होता है. क्या इस तरह के किसी भी आयोजन के लिए आवश्यक अनुमति के साथ सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं को करने के लिए आज कोई मज़बूत कानून या दिशा निर्देश मौजूद हैं? और यदि ऐसा है तो उनके अनुपालन के लिए किन लोगों की ज़िम्मेदारी निर्धारित की गयी है यह बात भी सभी लोगों के संज्ञान में होनी चाहिए। हर बात के लिए प्रशासन को कोसने के स्थान पर क्या हम नागरिकों को अपनी ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए ?
                               एक बड़ा हादसा क्या हमारी उन नैतिक ज़िम्मेदारियों की तरफ हमें मोड़ सकता है जिनकी हम हर जगह अनदेखी करते रहते हैं ? क्या नागरिकों के रूप में हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं है कि प्रशासन को हर स्तर पर सहयोग कर हम क्या अपने लिए सुरक्षित वातावरण बनाने की ईमानदार कोशिश नहीं कर सकते हैं? इस दुर्घटना में सभी दोषी हैं पर कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी और कमियों को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रहा है जिससे आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं को रोकने में कोई मदद नहीं मिलने वाली है. चौतरफा दबाव में सिर्फ आयोजकों के खिलाफ ही कार्यवाही होने की पूरी सम्भावना है जबकि लापरवाही के चलते आयोजक के साथ ही स्थानीय प्रशासन, रेलवे और वहां आने वाले लोग भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं. क्या हम सभी अपनी सामूहिक ज़िम्मेदारी को समझते हुए ऐसी कोई आदर्श स्थिति की कल्पना कर सकते हैं जिसमें ऐसी घटनाओं से पूरी तरह बचने की कोई व्यवस्था हो?  केंद्र और राज्य सरकारों को इस बारे में विचार कर भीड़ वाली जगहों पर आपातकालीन स्थित में लोगों को सही व्यवहार करने के लिए उचित दिशा निर्देश बनाते हुए आयोजकों के लिए आपदा प्रबंधन के प्रमुख गुर भी सिखाने की व्यवस्था करने के बारे में सोचना चाहिए जिससे भविष्य में सभी अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर पूरे देश में होने वाले ऐसे किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम को पूरी तरह से सुरक्षित बनाने में अपना योगदान दे सकें।

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