पांच राज्यों में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में जिस तरह से २०१४ से मूर्छा में चल रही कांग्रेस को मतदाताओं द्वारा संजीवनी दी गयी है उससे भारतीय लोकतंत्र की मज़बूती का ही पता चलता है. जीवंत लोकतंत्र की यही विशेषता होती है कि वह समय आने पर अपने लिए उचित अनुचित का चयन करने में अपनी भूमिका का सही ढंग से निर्वहन करने में कभी नहीं चूकता है. निश्चित तौर पर इन राज्यों से भाजपा के लिए कोई अच्छी खबर पहले भी नहीं आ रही थी पर जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस और राहुलगांधी की सोशल मीडिया पर अपने सोशल मीडिया टीम के दुष्प्रचार से एक नकारात्मक छवि बना दी थी कहीं न कहीं उसके कार्यकर्ताओं के दिल में भी यह बात घर कर गई कि राहुल गाँधी किसी भी परिस्थिति में नरेंद्र मोदी का किसी भी स्तर पर मुक़ाबला नहीं कर सकते हैं जिससे कार्यकर्ताओं की मज़बूत टीम और संघ का ज़मीनी मज़बूत समर्थन होने के बाद भी भाजपा को इन राज्यों में जनता की तरफ से एक सबक दिया गया है जो कि लोकतंत्र का एक हिस्सा ही है. भाजपा की तरफ से आत्म मुग्धता की जो स्थिति २०१४ से चल रही थी उससे बाहर निकलने के लिए पार्टी शाह या मोदी की तरफ से कोई प्रयास भी नहीं किया गया जबकि मोदी-शाह के गृह राज्य गुजरात में कांग्रेस ने किस तरह से भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं और रुझानों में एक बार वह भाजपा से आगे निकलती हुई भी दिखाई दे गयी थी ? उस समय जनता के मूड और धरातल की वास्तविकता को यदि भाजपा द्वारा पहचाना गया होता तो शायद कर्णाटक में वह सरकार बनाने के साथ इन राज्यों में भी सम्मानजनक तरीके से खुद को स्थापित रख पाती। निश्चित तौर पर भाजपा अपने प्रतिद्वंदियों से राजनैतिक रुप से निपटने के लिए एक बहुत निर्दयी दल है और यह हार मोदी और शाह को अपने घर को २०१९ के लिए दुरुस्त करने के लिए और भी प्रेरित ही करने वाले हैं जिससे कांग्रेस को सचेत रहने की आवश्यकता भी है.
कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से यह परिणाम संतोष देने वाले हैं क्योंकि पूरे देश में उसके कार्यकताओं का मनोबल २०१४ में इतना टूट गया था जिसे संजीवनी की आवश्यकता भी थी. इन राज्यों के चुनावों में जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के लिए एक स्पष्ट भूमिका का निर्धारण किया और उसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी परिस्थिति में उसके नेताओं की तरफ से विरोधियों पर व्यक्तिगत और स्तरहीन हमले न किये जाये जिससे पार्टी को अनावश्यक वोटर्स की नाराज़गी न झेलनी पड़े जैसा कि गुजरात चुनाव में हुआ था. राहुल गांधी कांग्रेस को किस स्तर तक ले जायेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है पर कुछ मामलों में उन्होंने जिस तरह की शुरुवात की है वह अपने आप में भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत कहा जा सकता है. आज कांग्रेस ज़मीन पर उतर कर आम लोगों की समस्याओं और उनको दूर करने के लिए काम करने की इच्छुक दिखाई देती है जो कि पहले की कांग्रेस से बिलकुल अलग है. लोकतंत्र के लिए यह इस लिए भी अच्छा है कि कम से कम एक बार फिर से धार्मिक उन्माद और उग्र राष्ट्रवाद के बीच भी आम लोग भाजपा के मुक़ाबले कांग्रेस को कुछ हद तक विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। आज हर विमर्श में काँग्रेस के प्रवक्ताओं की नयी पौध बेहतर तैयारी के साथ मैदान में आती है और अब वह अनावश्यक मुद्दों में उलझने के स्थान पर जनता से जुड़े मुद्दों पर ही बहस को केंद्रित रखने की कोशिशें करती भी दिखती है जिससे देश के आम मध्यवर्ग में उसका सन्देश आसानी से पहुँच भी जाता है कि उसकी तरफ से कम से कम कोशिशें तो की जा रही हैं. कांग्रेस के नए युवा प्रवक्ता शालीनता के साथ अपना काम करते हैं पर आवश्यकता पड़ने पर मुद्दों पर आधारित हमलों से भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्तों को भी तथ्य हीन कर देते हैं.
भाजपा अब जहाँ आक्रामक रूप से कांग्रेस पर हमलावर होने जा रही है वहीं कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती के लिए तैयार होने के लिए समय कम ही बचा है. तीन राज्यों में सीएम चुनने में जिस तरह से राहुल गाँधी की तरफ से सावधानियां बरती जा रही हैं वह उनके सबको साथ लेकर बड़ी लड़ाई लड़ने की तैयारी भी कही जा सकती है क्योंकि भाजपा को किसी भी तरह से कमज़ोर मानकर अब कांग्रेस भी चुप नहीं बैठ सकती है आज भी भाजपा के पास ज़मीन पर काम करने के लिए पर्याप्त कार्यकर्त्ता और संघ का समर्थन मौजूद है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इन राज्यों में सरकार बनने के १० दिनों के अंदर पूरे किये जाने वाले वायदों पर भी नज़र रख उन्हें अमल में लाना होगा जिससे जनता में यह सन्देश जा सके कि राहुल की कांग्रेस अब अपने वायदों को अमली जामा भी पहनाती है. भाजपा में मोदी और कांग्रेस में राहुल निर्विवाद रूप से सर्वोच्च नेता है इसलिए अब इन दोनों पर ही अपने दलों के मनोबल को उंच रख जनता से जुड़े रहने का दबाव भी आ गया है और यदि इन तीन राज्यों में कांग्रेस अपने वायदों पर चलती दिखाई दी तो २०१९ में वह मोदी के लिए मज़बूत चुनौती के रूप में सामने आ सकती है. इसलिए अब मामला रोचक स्थिति में पहुँच गया है जिसमें जनता के सरोकारों पर और भी बहस और निर्णय लेने की स्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से यह परिणाम संतोष देने वाले हैं क्योंकि पूरे देश में उसके कार्यकताओं का मनोबल २०१४ में इतना टूट गया था जिसे संजीवनी की आवश्यकता भी थी. इन राज्यों के चुनावों में जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के लिए एक स्पष्ट भूमिका का निर्धारण किया और उसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी परिस्थिति में उसके नेताओं की तरफ से विरोधियों पर व्यक्तिगत और स्तरहीन हमले न किये जाये जिससे पार्टी को अनावश्यक वोटर्स की नाराज़गी न झेलनी पड़े जैसा कि गुजरात चुनाव में हुआ था. राहुल गांधी कांग्रेस को किस स्तर तक ले जायेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है पर कुछ मामलों में उन्होंने जिस तरह की शुरुवात की है वह अपने आप में भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत कहा जा सकता है. आज कांग्रेस ज़मीन पर उतर कर आम लोगों की समस्याओं और उनको दूर करने के लिए काम करने की इच्छुक दिखाई देती है जो कि पहले की कांग्रेस से बिलकुल अलग है. लोकतंत्र के लिए यह इस लिए भी अच्छा है कि कम से कम एक बार फिर से धार्मिक उन्माद और उग्र राष्ट्रवाद के बीच भी आम लोग भाजपा के मुक़ाबले कांग्रेस को कुछ हद तक विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। आज हर विमर्श में काँग्रेस के प्रवक्ताओं की नयी पौध बेहतर तैयारी के साथ मैदान में आती है और अब वह अनावश्यक मुद्दों में उलझने के स्थान पर जनता से जुड़े मुद्दों पर ही बहस को केंद्रित रखने की कोशिशें करती भी दिखती है जिससे देश के आम मध्यवर्ग में उसका सन्देश आसानी से पहुँच भी जाता है कि उसकी तरफ से कम से कम कोशिशें तो की जा रही हैं. कांग्रेस के नए युवा प्रवक्ता शालीनता के साथ अपना काम करते हैं पर आवश्यकता पड़ने पर मुद्दों पर आधारित हमलों से भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्तों को भी तथ्य हीन कर देते हैं.
भाजपा अब जहाँ आक्रामक रूप से कांग्रेस पर हमलावर होने जा रही है वहीं कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती के लिए तैयार होने के लिए समय कम ही बचा है. तीन राज्यों में सीएम चुनने में जिस तरह से राहुल गाँधी की तरफ से सावधानियां बरती जा रही हैं वह उनके सबको साथ लेकर बड़ी लड़ाई लड़ने की तैयारी भी कही जा सकती है क्योंकि भाजपा को किसी भी तरह से कमज़ोर मानकर अब कांग्रेस भी चुप नहीं बैठ सकती है आज भी भाजपा के पास ज़मीन पर काम करने के लिए पर्याप्त कार्यकर्त्ता और संघ का समर्थन मौजूद है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इन राज्यों में सरकार बनने के १० दिनों के अंदर पूरे किये जाने वाले वायदों पर भी नज़र रख उन्हें अमल में लाना होगा जिससे जनता में यह सन्देश जा सके कि राहुल की कांग्रेस अब अपने वायदों को अमली जामा भी पहनाती है. भाजपा में मोदी और कांग्रेस में राहुल निर्विवाद रूप से सर्वोच्च नेता है इसलिए अब इन दोनों पर ही अपने दलों के मनोबल को उंच रख जनता से जुड़े रहने का दबाव भी आ गया है और यदि इन तीन राज्यों में कांग्रेस अपने वायदों पर चलती दिखाई दी तो २०१९ में वह मोदी के लिए मज़बूत चुनौती के रूप में सामने आ सकती है. इसलिए अब मामला रोचक स्थिति में पहुँच गया है जिसमें जनता के सरोकारों पर और भी बहस और निर्णय लेने की स्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं.
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