लगता है कि घाटी में लोगों की मुसीबतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. कश्मीर में अलगाव वादियों द्वारा सिखों को इस्लाम अपनाने या फिर घाटी छोड़ने के फरमान के बाद नयी समस्या सामने आ गयी है. इसके बाद १९८९/९० के वे दिन फिर से याद आने लगे हैं जब घाटी में आतंकियों ने एक रणनीति के तहत कश्मीरी पंडितों को सामूहिक रूप से मारना शुरू कर दिया था. इसके बाद की घटनाओं में ये कश्मीरी पंडित अपनी जान बचाकर घाटी से अपना सब कुछ छोड़कर भागने को मजबूर हुए थे ? इनके सही और सामूहिक पुनर्वास के लिए कोई भी सरकार आज तक ठोस नीति नहीं बना पायी है जिसमें लगभग सभी दलों ने इन बीस वर्षों में दिल्ली पर अकेले या सामूहिक रूप से राज किया है ?
कश्मीर में धारा ३७० इसलिए लगायी गयी थी कि वहां की स्थानीयता को बचाकर रखा जा सके पर खुद कश्मीरियों ने अपने एक हाथ को काट कर फेंकने में कोई देर नहीं की और अब वे अपने दूसरे हाथ को काटने के लिए तैयार दिख रहे हैं. इस सब घटनाओं के बाद लोग अगर पूरे देश या दुनिया में कश्मीरियों की बात पर कोई यकीन नहीं करते तो उसके पीछे भी यही बहुत बड़ा कारण है. कश्मीरी पंडितों ने आम कश्मीरियों का क्या बिगाड़ा था ? क्या वे हाथों में हथियार लिए हुए थे ? उनकी हत्या के समय जिस तरह से आम कश्मीरी लोग चुप रहे थे वह इस बात की पुष्टि करता है कि कहीं न कहीं उनके मन में भी यही था ? अब जब इसी तरह के सुर सिखों के ख़िलाफ़ भी सुनाई दे रहे हैं तो आम कश्मीरी क्या चाहता है ? केवल एक दो नेताओं के यह कह देने से बात तो नहीं बनने वाली है कि सिखों को डरने की ज़रुरत नहीं है. अपने स्वाभाव के अनुसार सिख दूर दराज़ के दुर्गम इलाकों में रहकर कृषि करते हैं और ऐसी किसी भी घटना से उनकी सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी होने वाली है.
कश्मीर में कुछ भी किया गया वह कश्मीर के लिए किया गया है. जो कश्मीर अपने खर्चे नहीं चला सकता है वह इतनी बड़ी बातें किस तरह से सकता है ? जब चार पैसे कमाने का समय होता है तो पिछले ३ सालों से वो हाथों से काम करने के स्थान पर पत्थर उठाये घूमता है ? बिना बात की बात पर आँखों में खून और दिल में नफ़रत लिए रहता है ? कभी इन लोगों ने पाक अधिकृत कश्मीर की हालत नहीं देखी है इसलिए ही तो अलगाव वाद और पाक में मिलने की बातें की जाती हैं. वहां के कश्मीर में लोगों को क्या मिला हुआ है यह सारी दुनिया जानती है. किसी आपदा के समय आने जाने के साधन तक आज भी नहीं हैं वहां पर ? भारत में आज तक कितनी बार नमाज़ पढ़ते हुए मुसलमानों पर गोलियां चलायी गयी हैं ? पाक/ईराक़ में तो बहुत से स्थानों जुमे जैसे दिन की नमाज़ के समय कर्फ्यू लगाना पड़ता है क्योंकि वहां पर मुसलमानों के दूसरे गुट के लोग नमाजियों पर भी गोलियां चलने से नहीं चूकते हैं ? अब कश्मीर के मुसलमान क्या चाहते हैं ? शांति या पाक जैसी अशांति ? पाकिस्तान के लिए जो सपना मुहम्मद अली जिन्ना ने देखा था वह तो १९७२ से ही टूट चूका था जब इस्लाम के नाम पर बनाया गया देश बांगला भाषा के नाम पर अलग हो गया था ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कश्मीरियों की समझ में कुछ नहीं आने वाला। ये सब सिर्फ और सिर्फ धर्म के नाम पर अधर्म का साथ देने वाले लोग रह गए हैं। बीस साल पहले जब इन्हीं के लोगो ने सदियों से रहने वाले कश्मीरी पंडितो की हत्या करनी शुरु कर दी तो ये चुप रहे। जो काम ओरंगजेब नहीं कर पाया..पाकिस्तानियों की मदद से अब हो चुका है। कहते हैं कि पड़ोसी भूखा हो तो मुसलमान के लिए खाना हराम है..यहां तो पड़ोसी की हत्या होती रही औऱ ये लोग कान में तेल डालकर सोते रहे। सारे देश का युवा वर्ग तमाम दुश्वारियों के बाद भी आगे बढ़ने के रास्ते देख रहा है पर कश्मीरी युवा सो रहा है। बंदूक उठा कर आसानी से कमाई के सपने देखता है। हद है इन बेशर्मों की।
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