मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 26 जनवरी 2014

गणतंत्र की सफलता

                                     परम्पराओं के रूप में राजपथ पर मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस समारोह अपने आप में एक ऐसा आयोजन है जिसे देखकर पूरे देश के साथ दुनिया के किसी भी कोने में बसे हुए भारतीय को गर्व का अनुभव ही होता है पर इधर कुछ समय से जिस तरह से नेताओं ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सीधे तौर पर भारतीय संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने की नीति अपना रखी है उसका देश के लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं हो सकता है और इस बात को राष्ट्रपति ने भी अपने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में रेखांकित किया है. देश में पूरी तरह से सफल लोकतंत्र दिन पर दिन आगे बढ़ता ही जा रहा है और बहुत सारे गतिरोधों और अंतर्विरोधों के बाद भी जिस तरह से हम सदैव एक राष्ट्र के रूप में साथ ही दिखायी देते हैं वही पूरी दुनिया के लिए एक स्प्ष्ट संदेश भी होता है कि देश में मतभेदों का स्थान तो है पर देश के आगे बढ़ने की नियति और क्षमता पर किसी को कोई संदेह नहीं है.
                                     आज जिस तरह से हर मुद्दे को लोक लुभावन नीतियों के साथ जोड़े जाने का चलन सा चल गया है उस परिस्थिति में देश के राजनैतिक तंत्र में शामिल सभी लोगों को यह सोचना ही होगा कि अब देश को दीर्घ समय तक कारगर रहने वाली नीतियों की अधिक आवश्यकता है और किसी भी परिस्थिति में उन उपायों के माध्यम से देश को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है जो पूरी दुनिया में किसी भी तरह से सफलता नहीं पा सके हैं. किसी भी बड़े लक्ष्य को पाने के लिए जिस तरह का दृढ निश्चय हमें दिखाना चाहिए उसकी आज भी हमारे नेताओं में कमी दिखायी देती है. कोई भी सस्ती लोकप्रियता वाला क़दम देश में नेताओं को कुछ समय के लिए लोकप्रिय तो कर सकता है पर उसके माध्यम से लम्बी अवधि में देश को होने वाले नुक्सान से कैसे बचा जाये आज यह भी बड़ा प्रश्न बनकर हैम सबके सामने आ चुका है. यह सही है कि हमारे नेताओं की सोच ने ही देश को इतना आगे बढ़ाया है पर जिस तरह से हम ठिठक कर आगे बढ़ते हैं उससे भी पार पाने की ज़रुरत अब आ चुकी है.
                                      भ्रष्टाचार आज एक महामारी के रूप में देश के सामने आ चुका है पर आज भी जिस तरह से उस पर हमला करने की सोच और दृष्टि होनी चाहिए नेताओं के साथ जनता में भी उसका कोई लक्षण दिखायी नहीं देता है. आज बड़े स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की बाते तो खूब की जाती हैं पर जब स्थानीय स्तर पर उससे निपटने की ज़रुरत होती है तो क्या हम एक नागरिक के रूप में छोटे स्तर पर ही सही पर उसे बढावा देने से बाज़ नहीं आते हैं ? आख़िर कौन आएगा जो देश से भ्रष्टाचार को दूर करेगा क्योंकि जब तक हम आम नागरिक के रूप में अपने आस पास की सरकारी गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखना नहीं शुरू करेंगें तब तक किसी भी हालत में यह देश से दूर नहीं होने वाला है और हमारे देश में हम सभी, मीडिया और नेताओं के माध्यम से भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं पर पूरे देश में हर स्तर पर जो भ्रष्टाचार पनप रहा है उसने अपनी एक सामानांतर अर्थ व्यवस्था ही खडी कर दी है. अब समय है कि हम इस गणतंत्र दिवस पर कम से कम यह प्रयास करने की कोशिश करें कि छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में शामिल नहीं होंगें तभी जाकर देश को सही मायने में लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में आगे बढ़ा सकने में समर्थ हो पायेंगें.       
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