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शुक्रवार, 9 मई 2014

चुनाव आयोग और निष्पक्षता

                                              इस बार के आम चुनावों में जिस तरह से नेताओं द्वारा अपनी खीझ को ख़त्म करने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव बनाने की रणनीति पर भी काम किया गया वह अपने आप में बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि आयोग के काम काज पर पूरे देश की नज़रें टिकी रहती हैं और आज के समय में आयोग के पास वह सब कुछ है जिसके दम पर वह देश में निष्पक्ष चुनाव कराने में हर बार ही सफल रहा करता है. इस बार जिस तरह से मुद्दों पर व्यक्तिगत आरोपों ने अपनी बढ़ता बना ली उसके बाद आयोग को भी इस तरह के मामलों में नेताओं को नोटिस जारी करनी पड़ीं जिनमें से कुछ मामलों में तो आयोग को नेताओं के चुनावी गतिविधि में भाग लेने पर भी रोक लगानी पड़ी. आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इस संस्था के लिए देश के लिए कानून के अनुसार काम करने की बाध्यता है फिर भी जिस तरह से नेताओं द्वारा अपने मंतव्यों को पूरा करने के लिए आयोग पर हमले किये जाने शुरू कर दिए गए हैं उससे देश के लोकतंत्र को मज़बूती तो नहीं मिल सकती है.
                                              देश के पास आज मज़बूत चुनाव आयोग है और हर बार के चुनावों में निष्पक्षता के लिए उसे भारत समेत पूरी दुनिया से संबल मिला करता है. इतने बड़े देश में जहाँ विभिन्न तरह की समस्याएं सबके सामने आती रहती हैं उस परिस्थिति में चुनाव को शांति पूर्ण तरीके से निष्पक्षता के साथ संपन्न कराने के लिए आयोग को बहुत तैयारियां करनी पड़ती हैं. आज जब चुनाव अपने अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं तो आयोग द्वारा अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए प्रेस को बुलाना पड़े तो यह देश के नेताओं के लिए चिंता की बात है क्योंकि जब तक नेताओं का व्यवहार नियमानुकूल नहीं होगा तब तक किसी भी परिस्थिति में आयोग को मज़बूती नहीं प्रदान की जा सकती है. आयोग कोई पार्टी नहीं है कि आरोपों का जवाब देने के लिए उसे बाध्य किया जा सके फिर भी वह स्थानीय प्रशासन के द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट के दम पर ही गतिविधियों को संचालित किया करता है.
                                              किसी भी तरह के आचार संहिता के उल्लंघन पर नज़र रखने, रैलियों से लगाकर जनसभाओं तक की अनुमति के बारे में आयोग के पास करने के लिए कुछ खास नहीं होता है क्योंकि उसको स्थानीय प्रशसन द्वारा भेजी जाने वाली रिपोर्टों पर ही भरोसा करना होता है. आज नेता आयोग पर केवल तभी चिल्लाते हैं जब उनके मन पसंद काम को करने में आयोग के नियम आड़े आ जाते हैं और वे यह भूल जाते हैं कि एक प्रदेश में यदि सरकार चलाने के लिए उनके पास जनादेश है तो दूसरे में किसी और के पास तो वे हर प्रदेश में अपने राज्य की तरह प्रशासन की तरफ से सुविधाएँ नहीं पास सकते हैं. यदि नेताओं को आयोग के पूरी तरह से वास्तविक रूप में ही तटस्थ रखने की मंशा है तो उन्हें इसकी शुरवात अपने राज्य से करनी होगी जिससे उनके यहाँ भी सब कुछ ठीक तरीक से चलता रह सके. पर आज के समय में हमारे नेता केवल अपने हितों की बात ही सोचते रहते हैं जिससे भी कई बार उनके अनुसार काम न होने को वे केवल आयोग को दोषी बताने में नहीं चूकते हैं. देश के बड़े नेताओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि सरकारें तो आती जाती रहती हैं पर देश की संवैधनिक संस्थाओं पर हमला करके किसी भी तरह से देश का सम्मान बढ़ाया नहीं जा सकता है.चुनाव आयोग और निष्पक्षता 
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