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शनिवार, 8 नवंबर 2014

छत्तरगाम घटना और सेना

                                                                  जम्मू कश्मीर के बड़गाम के छत्तरगाम नाके पर सोमवार को हुई गोलीबारी की घटना की सेना ने ज़िम्मेदारी लेते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने और पीड़ित परिवारों के प्रति मुआवजे की घोषणा की है. इस घटना में कार में जा रहे दो किशोरों की मौत हो गयी थी और दो अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे जिनका बेस अस्पताल में इलाज चल रहा है. कश्मीर में दो वर्ष पूर्व भी इसी स्थान पर इसी तरह की घटना में सेना के दो जवान भी गलत पहचान के चलते इस तरह की घटना का शिकार हो गए थे. इस मामले में जिस तरह से कश्मीर घाटी में अलगाववादियों को इस बहाने से ही एक बार फिर से भारतीय सेना पर आक्रमण करने का मौका मिल गया है और इसका दुरूपयोग वे चुनाव बहिष्कार के रूप में करवाने के लिए तैयार दिखाई देते हैं तो ऐसे में चुनौतियाँ और भी बड़ी हो जाती हैं क्योंकि अलगाववादी इस घटना के माध्यम से एक बार फिर से चुनावों पर निशाना लगाने की कोशिशें शुरू कर चुके हैं.
                                                               इस घटना में एक बात पूरी तरह से साफ़ है कि मारे गए युवा निर्दोष थे पर जिस तरह से उन्होंने सेना द्वारा रोके जाने पर भागने का दुस्साहस किया तो सेना के पास और क्या विकल्प शेष रह गए थे जिन पर अमल करते हुए वे आतंकियों के लिए लगाये गए नाके पर चौकसी बरत रहे थे ? कश्मीर घाटी में कोई सामान्य स्थिति नहीं है और यह सभी कश्मीरियों को पता भी है कि वहां पर बिना किसी पूर्व सूचना के कहीं भी नाके लगाये जा सकते हैं क्योंकि सुरक्षा सम्बन्धी जानकारियां मिलने पर ऐसा करना सुरक्षा बलों के लिए अनिवार्य हो जाता है. यह सही है कि उन युवाओं द्वारा सारी परिस्थितियों को जानने के बाद भी इस तरह कि हरकत की गयी जिससे संदेह के आधार पर सैनिकों ने गोलीबारी कर दी और परिणाम स्वरुप दो लोगों कि मौत हो गयी. इस बारे में सेना द्वारा अपनी गलती को स्वीकार किये जाने के बाद कश्मीर में इसका राजनैतिक दुरूपयोग भी किये जाने की पूरी संभावनाएं बलवती हो गयी हैं.
                                                             इस घटना के दोनों पहलुओं को देखने के बाद ही कुछ टिप्पणी किये जाने की सम्भावनाये बनती हैं पर राजनैतिक कारणों से केवल युवाओं की मौत को ही गलत साबित किया जा रहा है और सेना को पूरी तरह से दोष दिया जा रहा है. यदि उन युवाओं के दिल में कानून के अनुपालन के प्रति कुछ भी होता तो उन्हें नाका तोड़कर भागने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि पाक प्रायोजित आतंक की चपेट में आये हुए कश्मीर में सेना के लिए हर कदम बहुत ही मुश्किलों भरा ही होता है उसकी सफलता पर उसे राजनेताओं द्वारा उचित प्रशंसा नहीं मिलती पर किसी भी गलती पर सबकी उँगलियाँ उसकी तरफ उठने में देर भी नहीं लगती है ? घाटी में जो भी परिस्थिति है उसके बाद वहां रहने वाले सभी नागरिकों को कम से कम सेना की किसी भी तरह की नाकेबंदी में पूरी तरह सहयोग करना तो बनता ही है क्योंकि सेना के पास कुछ सूचनाएँ होती हैं उसे उनके आधार पर ही काम करना होता है और जो आतंकी अशांति फ़ैलाने आते हैं उनके लिए कोई नियम कानून लागू नहीं होता है तो जन साधारण को भी अपनी ज़िम्मेदारी का पूरी तरह निर्वहन करने के बार में सोचना चाहिए.           
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