मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

बजट सत्र और अध्यादेश

                                        आज से शुरू हो रहे बजट सत्र से देश के साथ ही मोदी सरकार को बहुत सारी आशाएं हैं क्योंकि अभी तक सरकार जिस बजट के माध्यम से पिछले वित्तीय वर्ष में काम कर रही थी वह कहीं न कहीं से मनमोहन सरकार की योजनाओं पर ही बनाया गया था भले बाद में मोदी सरकार ने पूर्ण बजट प्रस्तुत किया हो पर उस पर पिछली सरकार की पूरी छाप दिखाई दे रही थी. इस सत्र में सरकार के पहले पूर्ण बजट के माध्यम से जहाँ उसके काम करने की दिशा निर्धारित होने वाली है वहीं दूसरी तरफ विवादित मुद्दों पर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरने का काम भी किया जाने वाला है. अभी तक विपक्ष को परोक्ष रूप से उपेक्षित कर रही मोदी सरकार को इस बार राज्यसभा में अपनी कमज़ोर स्थिति के कारण महत्व देने के बारे में सोचना पड़ा है जो कि देश के लिए अच्छा ही है क्योंकि पिछले साल सरकार के सत्ता में आने के बाद से सरकार इस राय के साथ आगे बढ़ रही थी कि वह सदन में जो कुछ भी करना चाहेगी आसानी से कर लेगी और कमज़ोर ही सही पर लोकसभा में विपक्ष का सम्मान नहीं कर रही थी पर अब स्थिति बदलती नज़र आ रही है.
                              लोकसभा में सरकार ने अपनी मज़बूत स्थिति का जो लाभ पिछले सत्रों में उठाया और अब महत्वपूर्ण बिलों को पास करवाने में उसको जिस तरह से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत अन्य दलों के सहयोग की ज़रुरत पड़ने वाली है उसने यह समझते हुए पूरी तरह से इस बार अपने होमवर्क को सही तरह से करने का प्रयास किया है वह भारतीय लोकतंत्र की एक अन्य खूबी है. फिलहाल अब इस वर्ष केवल बिहार में ही चुनाव होने हैं और वे भी अभी लगभग छह माह दूर हैं तो सरकार और विपक्ष से यह आशा की जा सकती है कि वे देशहित में आवश्यक विधायी कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर करने का प्रयास करेंगें जिससे जो नीतिगत समस्या पिछली लोकसभा में दिखाई देती थी वह अब सामने आकर सदन को रोकने का काम नहीं करेगी. आज भाजपा को विपक्षी दलों से रचनात्मक और देश के विकास के लिए सहयोग कई आवश्यकता है पर वह यह भूल गयी है कि महत्वपूर्ण बिलों को लटकाने में पिछली लोकसभा में उसका सबसे बड़ा योगदान था जिसके चलते कहीं न कहीं से अल्पमत से चल रही मनमोहन सरकार के लिए निर्णय करना कठिन भी हो जाता था.
                        लोकतान्त्रिक परम्पराओं के चलते सदन में सरकार के साथ विपक्ष भी महत्वपूर्ण हुआ करता है इस बार सरकार ने मजबूरी में ही सही पर इस बात का ध्यान तो रखने की कोशिश की है. सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने जिस तरह से सोनिया गांधी से उनके आवास पर भेंट की और सदन को सुचारू रूप से चलाने में उनके सहयोग को स्पष्ट रूप से माँगा वह भी सही कदम है. खुद नायडू ने भी यह स्वीकार किया कि सोनिया गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर अपनी चिंताएं ज़ाहिर की हैं पर अन्य पांच अध्यादेशों पर सहयोग की बात हो गयी है उससे अब सरकार पर सदन चलाने का दबाव अधिक बढ़ जाने वाला है क्योंकि विपक्षी दल अब केवल इस अध्यादेश में अपने अनुसार बदलाव करने की कोशिशें करने वाले हैं. सरकार के लिए गुलाम नबी आज़ाद का राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष होना भी कारगर हो सकता है क्योंकि अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में आज़ाद ने विधायी कार्यों में सदैव ही सरकार को सहयोग करने की पूरी कोशिश की है आज़ाद आज इस पद पर हैं तो सरकार को इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश भी करनी चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि जिस प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर अन्ना से संघ तक उस पर हमलावर है तो क्या उसे स्वरुप में बदलाव किया जाना देशहित में नहीं होगा ?  
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